मानसी गंगा कुंड गोवर्धन
मानसी गंगा गोवर्धन गाँव के बीचो बीच में स्थित है। परिक्रमा करने के मार्गे में दायीं और पड़ती है और पूंछरी से लौटने पर बायीं और इसके दर्शन होते हैं।
जिस समय गोवर्धन गिरिराज जी महाराज जी की पूजा अर्चना सभी बृजवासी, भगवान श्री कृष्ण जी के कहने पर करने को तैयार हुए। तो वहां पर सभी ब्रज वासियों ने कन्हैया जी से कहा, लाला इतने बड़े लंबे चौड़े गोवर्धन गिरिराज जी की पूजा अर्चना हम करेंगे। लेकिन सर्वप्रथम किसी भी देव की पूजा करने से पहले उन्हें स्नान कराना होता है तो स्नान कराने के लिए हमारे पास पवित्र जल की पर्याप्त व्यवस्था तो है ही नहीं।
अगर गिरिराज जी की पूजा करने के क्रम में जल गंगा जी का लाया जाएगा तो यह बेहतर होगा। इससे अच्छा और कुछ नहीं। लेकिन गंगा जी तो यहां से बहुत दूर हैं, हम सब लोग वहां कैसे जाएंगे और कैसे आएंगे। इतना जल वहां से किस तरह से संचय कर के लाया जा पाएगा। क्योंकि तेरे गोवर्धन गिरिराज जी का आकार तो बहुत बड़ा है ना इसलिए तू ही बता हम क्या करें।
भगवान श्रीकृष्ण बोले आपने बिल्कुल सही कहा लेकिन इस समस्या का समाधान तो निकालना पड़ेगा। अच्छा एक बात बताओ अगर गंगा जी यही हमारे समक्ष हमारे नजदीक आ जाएं तो कैसा है। हमारे पास गंगा जी का जल होगा और हम आराम से गोवर्धन गिरिराज जी की पूजा अर्चना शांतिपूर्वक कर पाएंगे। सभी बृजवासी मजाक समझ कर बोले लाला, यह समय हास परिहास करने का नहीं अपितु कर्म करने का है।
कन्हैया जी बोले अच्छा सुनो आप एक काम करो। आप सब लोग आंख बंद करो मैं गंगा जी का आवाहन करता हूं, हो सकता है गंगा जी यहीं पर आ जाएं। सब लोगों ने आंख बंद की कन्हैया जी ने गंगा जी का आवाहन किया और देखते ही देखते कुछ ही देर में एक धार जमीन के अंदर से और एक गोवर्धन पर्वत के ऊपर से गिरने लगी, और कुछ ही समय में वह एक तालाब के आकार में विराजमान हुई। मन से स्मरण करके गंगा जी का आवाहन किया तो नाम पड़ा मानसी गंगा।