देवी माँ स्वयं को सभी रूपों में प्रत्यक्ष करती है और सभी नाम को ग्रहण करने वाली है। माता के हर रूप और हर नाम में दैवीय शक्ति को पहचानना ही नवरात्रि मनाना है। आनन्द और हर्षोल्लास के नौ दिनों का समापन, रामनोमि के साथ होता है। कैलाश पर्वत पर भगवान महादेव शिव की अर्धांगिनी मां सती ही दूसरे जन्म में पार्वती के रूप में विख्या हुई उन्हें ही शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायिनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री आदि नामो से जाना जाता है।
शैलपुत्री | ब्रह्मचारिणी | चन्द्रघंटा | कूष्माण्डा | स्कंदमाता | कात्यायनी | कालरात्रि | महागौरी | सिद्धिदात्री