1दानघाटी का मन्दिर – गिरिराज जी मन्दिर / Danghati Temple – Giriraj Ji Temple
दानघाटी मंदिर मथुरा-डीग मार्ग पर स्थित है। दानघाटी मंदिर को गिरिराज जी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। जब परिक्रमार्थी श्री गोवेर्धन महाराज की परिक्रमा करने आते है। तो सर्वप्रथम, दानघाटी मंदिर में भगवान श्री गोवेर्धन महाराज के दर्सन करते है। फिर वो परिक्रमा के लिए जाते है। कहा जाता है। की भगवान श्री कृष्ण ने अपने सखाओं के साथ गोपियों से दान (टेक्स) लेने की लीला इसी जगह पर ही की थी। इसलिये इस मंदिर का नाम दानघाटी मंदिर हुआ।
2मुखारविंद मंदिर, जतीपुरा, गोवर्धन / Jatipura Mukharvind Temple Govardhan
श्री मानसी गंगा के उत्तरी तट पर गोवर्धन जी का मुखारबिंद दर्शन है। यहाँ श्री गोवर्धन महाराज जी का दर्शन एक बैठी हुई गाय के समान है, जिसका पिछला भाग पूँछरी है। और उन्होंने अपनी गर्दन को घुमा कर मुख मंडल को अपने पेट के निकट रखा हुआ है। उनके दोनों नेत्र राधा कुण्ड और श्याम कुण्ड के सामान हैं। यहाँ श्री गिरिराज जी महाराज के मुखार बिंद के बहुत सुन्दर दर्शन होते हैं एवं प्रतिदिन श्री गोवेर्धन महाराज के मुखारबिंद के अभिषेक पूजन और अन्नकूट का आयोजन होता है।
3श्री हरिदेव मंदिर गोवर्धन / Shri Haridev Temple Govardhan
मानसी गंगा के निकटस्थ इस मन्दिर का निर्माण आमेर नरेश राजा भगवान दास ने कराया था। 20 फीट चौड़े और 68 फीट लम्बे भूविन्यास के आयता कार मन्दिर का गर्भगृह इसी माप के अनुसार बनाया गया। जिसके चारों ओर खुले मध्य भाग में तीन मेहराब बने हुए हैं। जब कि द्वार के निकट चौथे प्रस्तरवाद हिन्दू शैली के सहारे टिका हुआ है। इसके ऊपरी हिस्से में रौशनदान बने हैं जिस की छज्जे से ऊँचाई लगभग 30 फ़ीट है। श्री हरिदेव जी मंदिर वृन्दावन में बनवाये गये गोविन्द देव जी मन्दिर के जैसा ही दिखाई पढता है।
4मानसी गंगा गोवर्धन / Mansi Ganga Govardhan
श्री मानसी गंगा, श्री गोवर्धन गाँव के बीच में स्थित है। एक बार श्री नन्द बाबा और मैया यशोदा एंव सभी ब्रजवासी गंगा स्नान का विचार बनाकर गंगा जी की तरफ चलने लगे। चलते-चलते जब वे गोवर्धन पहुँचे तो वहाँ सन्ध्या हो गयी। अत: रात्रि में रुकने के लिए श्री नन्द बाबा जी ने श्री गोवर्धन में एक मनोरम स्थान देखा। तभी भगवान श्री कृष्ण के मन में विचार आया कि ब्रजधाम में ही सभी-तीर्थों वास करते है, परन्तु ब्रजवासी जन इसकी महान महिमा के बारे में नही जानते है। इसलिये मुझे ही इसका कोई समाधान निकालना होगा। श्री कृष्ण जी के मन में ऐसा विचार आते ही श्री माँ गंगा जी मानसी रुप में गिरिराज की तलहटी में प्रकट हुई। प्रात:काल जब समस्त ब्रजवासियों ने गिरिराज तलहटी में श्री माँ गंगा जी को देखा तो वे आश्चर्यचकित होकर एक दूसरे से वार्तालाप करने लगे। सभी को आश्चर्यचकित देख भगवान श्री कृष्ण बोले कि – इस पावन ब्रजभूमि की सेवा हेतु तो तीनों लोकों के सभी-तीर्थ यहाँ आकर विराजते है। परन्तु फिर भी आप लोग ब्रज छोड़कर गंगा स्नान हेतु जा रहे हैं। इसी कारण माता गंगा आपके सम्मुख प्रकट हुई हैं।
5राधाकुण्ड गोवर्धन / Radha Kund Govardhan
कंस भगवान श्रीकृष्ण का वध करना चाहता था। इसके लिए कंस ने अरिष्टासुर राक्षस को भगवान श्री कृष्ण के वध के लिए भेजा था। अरिष्टासुर बछड़े का रूप बनाकर श्रीकृष्ण की गायों में शामिल हो गया और बाल-ग्वालों को मारने लगा। श्रीकृष्ण ने बछड़े के रूप में छिपे राक्षस को पहचान लिया और उसे पकड़कर जमीन पर पटककर उसका वध कर दिया। यह देखकर राधा ने श्रीकृष्ण से कहा कि उन्हें गो-हत्या का पाप लग गया है और इस पापा की मुक्ति के लिए उन्हें सभी तीर्थों के दर्शन करने चाहिए। ऐसा सुनकर श्रीकृष्ण ने अपनी एड़ी की चोट से एक विशाल कुण्ड का निर्माण कर उसमें भूमण्डल के सारे तीर्थों को आह्वान किया। साथ ही साथ असंख्य तीर्थ जल रूप धारण कर कुंड उपस्थित हुए। और कुंड में स्नान करके भगवान श्री कृष्ण पापमुक्त हो गए। इस कुण्ड को कृष्ण कुण्ड कहते है। इसलिए उन्होंने तुनक-कर पास में ही सखियों के साथ अपने कंकण के द्वारा एक परम मनोहर कुण्ड का निर्माण किया। इस कुंड को राधा कुंड कहते है।