श्री चक्रेश्वर महादेव मंदिर गोवर्धन
यह कथा उस समय की है जब भगवान श्री कृष्ण ने देवराज इंद्र की पूजा बंद कराके हमारे ठाकुर श्री गोवर्धन गिरिराज जी की पूजा प्रारंभ कराई।
क्रोध में आकर देवराज इंद्र ने प्रलयकालीन मेघमालाओं को बुलाया और आदेश दे दिया “जाओ जाकर ब्रज को बहा दो”। और देखते ही देखते मूसलाधार बारिश होने लगी। लीलाधारी कृष्ण ने लीला की गोवर्धन गिरिराज पर्वत को अपनी सबसे छोटी उंगली पर उठाया। और समस्त बृजवासियों को बचा लिया।
परंतु? आकाश मार्ग से आने वाले प्रलयकालीन मेघ के जल का आखिर सात दिन और सात रात तक हुआ क्या?
उसको समाप्त करने के लिए पर्वत के एक छोर पर अगस्त्य मुनि (जो प्रभु श्रीराम के समय से जल के प्यासे थे और इस दिन का इंतजार कर रहे थे।), दूसरी ओर भगवान शंकर का त्रिशूल (जिसे भोले नाथ ने चक्र की तरह घुमाया और सारे जल को गर्म तवे की तरह समाप्त किया।) और आखिरी में शेष नाग (जिन्होंने पर्वत के चारों ओर अपना विस्तार करके ऊपर से गिरने वाले जल को चारों ओर विस्तृत किया।)।
उपरोक्त में वर्णित भोले नाथ एवम उनका त्रिशूल (चक्र स्वरूप में) को भगवान श्रीकृष्ण ने अधिक प्रेम दिखाते हुए अपने साथ ही स्थान प्रदान किया। जिन्हें आज हम चक्रेश्वर महादेव (चक्र तीर्थ) के नाम से जानते हैं। भगवान शंकर ने गोवर्धन के ब्रजवासी और बाहर से आने वाले तीर्थ यात्रियों की रक्षा एवम कृपा बरसाने के लिए यह स्वरूप स्वीकार किया और उन्हें ब्रज के कोतवाल (संरक्षक) के रूप में जाना जाने लगा।
नोट :- मंदिर गर्भ गृह में एक, दो, तीन नहीं बल्कि पूरी पांच शिवलिंग सांवले रंग के हैं। इसके पीछे का कारण अत्यंत महत्वपूर्ण है। आइए जानते हैं।
समूर्ण ब्रजमंडल में महादेव पांच स्वरूपों में ब्रज के कोतवाल बनकर विद्यमान हैं। जो मंदिर प्राचीनकाल से विशेष मान्यताओं में स्थापित हैं।
१. मथुरा में भूतेश्वर
२. वृंदावन में गोपेश्वर
३. नंदगांव में नंदीश्वर
४. कामा में कामेश्वर और
५. गोवर्धन में चक्रेश्वर महादेव
गोवर्धन में चक्रेश्वर महादेव नाम से शिव जी का मंदिर हैं। जहां पांचों महादेव की शिवलिंग का एक साथ दर्शनों का पुण्य प्राप्त हो जाता है। यानी द्वापर युग से लेकर आज तक ब्रजभूमि के पांच महादेव का दर्शन एक साथ सिर्फ इसी मंदिर में हैं।
एक टिप्पणी अनुसार…..
भोले नाथ ने इस मंदिर में पंच शिव लिंगों का रूप धारण किया है, जो उनके पांच मुख हैं। यह मंदिर मानसी गंगा के उत्तरी तट पर मौजूद है।
इस मंदिर का निर्माणकार्य भगवान श्री कृष्ण के नाती के बेटे वज्रनाभ जी ने करवाया था। परंतु बार – बार मुस्लिम उपद्रवियों ने इसे नष्ट कर दिया। दर्शन करते समय ध्यान से देखने पर शिव लिंगों के पीछे एक प्राचीन पत्थर संपूर्ण कहानी को बयां करता है आखिर कैसे भगवान श्रीकृष्ण ने अपने भक्तों को गोवर्धन पर्वत धारण कर बचाया। प्रत्येक नक्काशी इस मंदिर की प्राचीनता का साख्य है।