Parikrama Rules

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Vrindavan Parikrama
Vrindavan Parikrama

परिक्रमा नियम

  • शस्त्रो के नियमो के अनुसार परिक्रमा पैदल एवं नंगे पैर लगते है। मगर असमथ के लिए वाहनों का प्रयोग कर सकते है। परिक्रमा प्रणाम करके ही प्रारम्भ करना एवं प्रणाम करके ही समाप्त करना चाहिये। जहाँ से परिक्रमा उठाई वहीँ पर परिक्रमा समाप्त करनी है।
  • श्री गोवर्धन पर्वत के ऊपर नही चढ़ाना चाहिए। क्योंकि शात्रो के अनुसार श्री गोवर्धन सिला श्री कृष्ण का अभिन्न स्वरुप है।
  • श्री गोवर्धन को दाये हाथ की तरफ रखते हुए परिक्रमा करनी चाहिये।
  • इसलिये श्री गोवर्धन की दाई तरफ कभी थूकना, शौच एवं लघुसंका नही करना चाहिये।
  • परिक्रमा के कुंड व सरोवर ( मानसी गंगा, श्री राधा कुण्ड एवं श्यामकुण्ड, गोविन्दकुण्ड इत्यादी ) में पाव नही धोने चाहिये। इसके लिए कुंड व सरोवर के तट पर ही नल व कुँओं की व्यवस्था है। वही पर धोने चाहिए।
  • कुंड में स्नान अथवा आचमन किया जा सकता है।
  • कुण्ड या सरोवर में साबुन लगाना, कपड़े धोना, तेल लगाना इत्यादि कार्य नही करने चाहिये।
  • परिक्रमा में श्री गिरिराज महाराज की तरफ पीठ व पैर लंबा करके नही बैठना व लेटना चाहिये।
  • परिक्रमा प्रारंभ व समाप्त करते समय अपने इष्ट देवता का पूजन, ब्राहमण, वैष्णव का पूजन एवं भोजन व दान देना चाहिये।
  • जहां तक हो सके सांसारिक बातों को त्याग कर पवित्र अवस्था में हरिनाम व भजन कीर्तन करते हुए ही परिक्रमा लगानी चाहिये।
  • परिक्रमा देते समय किसी भी प्राणी को दुख नही देना चाहिये।
  • दुघ्द धारा (द्वारा) परिक्रमा करते समय लगातार धारा देनी चाहिये।

दण्डवत् परिक्रमा के नियम

Dandwat Prikrama
Dandwat Prikrama
  • दण्डवत् प्रणाम या (सस्तंग) प्रणाम में इन आठ अंगो का प्रथ्वी और श्री भगवान से सम्पर्क होना चाहिये। दोनों भुजाये, दोनों पाव, दोनों घुटने, छाती, मस्तिष्क, नेत्रों में भगवान का दर्शन, मन से भगवान का (धयान), एवं वाणी से “ हे भगवान “ मैं आप की (सरण) हूँ, मेरी (रख्चा) कीजिये। इस प्रकार शारीर के आठो अंगो को श्री भगवान में (निवेस्ट) कर के दण्डवत् प्रणाम या (सस्तंग) प्रणाम का नियम है।
  • एक-एक दण्डवत् प्रणाम के बाद फिर पूरी तरह उठकर प्रणाम करना चाहिये।
  • दण्डवत् या (सस्तंग) प्रणाम करने के समय कमर के उपर के सब कपडे उतार देने चाहिये। फिर दण्डवत् या (सस्तंग) प्रणाम करना चाहिये।
  • जो (वयक्ति) एक स्थान पर एक, दस, पचास, सो, हजार ऐसा एक-एक स्थान पर दण्डवत् लगाते चलते है। उनको एक जैसी ही दण्डवत् लगानी चाहिये। गिनती की (संकिया) कम या अधिक नही होनी चाहिये।

Questions and Answers about Goverdhan Parikrama

गोवर्धन परिक्रमा कितने किलोमीटर की है?

यह ७ कोस की परिक्रमा लगभग २१ किलोमीटर की है। मार्ग में पड़ने वाले प्रमुख स्थल आन्यौर, गोविन्द कुंड, पूंछरी का लोठा जतिपुरा राधाकुंड, कुसुम सरोवर, मानसी गंगा, दानघाटी इत्यादि हैं।

गोवर्धन परिक्रमा कब की जाती है?

प्रत्येक महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी से पूर्णिमा तक। कुसुम सरोवर, चकलेश्वर महादेव, जतीपुरा, दानघाटी, पूंछरी का लौठा, मानसी गंगा, राधाकुण्ड, उद्धव कुण्ड आदि। भगवन श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी अंगुली पर धारण किया था। गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा २१ किलोमीटर की है।

गोवर्धन परिक्रमा क्यों लगाई जाती है?

गोवर्धन पर्वत को गिरिराज पर्वत के नाम से भी जाना जाता है। गोवर्धन पर्वत की पूजा के पीछे भी धार्मिक कहानी प्रचलित है। मान्यता है कि एक बार इंद्र ने ब्रज क्षेत्र में घनघोर बारिश की। तब लोगों को बचाने के लिए भगवान कृष्ण ने इसे कनिष्ठा यानी सबसे छोटी उंगली पर उठा लिया।

गोवर्धन की परिक्रमा का क्या महत्व है?

कहा जाता है कि गोवर्धन पर्व के दिन मथुरा में स्थित गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। कहा जाता है कि इस दिन मथुरा में स्थित गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा और पूजा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस पर्वत को श्री गिरिराज जी भी कहा जाता है।

गोवर्धन पर्वत की ऊंचाई कितनी है? / गोवर्धन पर्वत कितना बड़ा है?

पांच हजार साल पहले यह गोवर्धन पर्वत 30 हजार मीटर ऊंचा हुआ करता था और अब शायद 30 मीटर ही रह गया है। पुलस्त्य ऋषि के शाप के कारण यह पर्वत एक मुट्ठी रोज कम होता जा रहा है। इसी पर्वत को भगवान कृष्ण ने अपनी चींटी अंगुली पर उठा लिया था। श्रीगोवर्धन पर्वत मथुरा से 22 किमी की दूरी पर स्थित है। गोवर्धन पर्वत को गिरिराज पर्वत भी कहा जाता है।

गिरिराज जी की परिक्रमा में कितनी भीड़ है?

सदियों से यहाँ दूर-दूर से भक्तजन गिरिराज जी की परिक्रमा करने आते रहे हैं। यह ७ कोस की परिक्रमा लगभग २१ किलोमीटर की है। मार्ग में पड़ने वाले प्रमुख स्थल आन्यौर, राधाकुंड, कुसुम सरोवर, मानसी गंगा, गोविन्द कुंड, पूंछरी का लोटा, दानघाटी इत्यादि हैं।

14 COMMENTS

  1. आस्था के अलावा भी बहुत कुछ है पर एक मतानुसार = योग मे अष्टांग योग एक प्रकार है। इसमें सभीआठ अंगों को पृथ्वी पर स्पर्श करना होता है। इससे सभी 8 चक्र क्रियान्वित होते है।

  2. राधे राधे
    हमें गोवेर्धन जी की परिक्रमा कोन सी तिथी को करनी चाहिये
    कृप्या करके हमें बताया जाये
    धन्यवाद

  3. राधे राधे
    हमें गोवेर्धन जी की परिक्रमा कोन सी तिथी को करनी चाहिये
    कृप्या करके हमें बताया जाये
    धन्यवाद

    • जय श्री राधेकृष्णा राजू जी,

      ऐसा कोई नियम नहीं के दंद्वती परिक्रमा के बाद खाड़ी परिक्रमा लगई जाये। श्री गिरिराज महाराज की कृपा से आप कोई भी परिक्रमा कभी भी लगा सकते है।

      बोलिए श्री गिरिराज महाराज की जाये

      • दंडवत के बाद खडी परिक्रमा का नियम हे एसा मैंने दंडवत परिक्रमाँ लगाने वालो ने बताया था मुक्झे जो भक्त राजस्थान से यहाँ परिक्रमा कर रहे थे

        • जय श्री गिरिराज जी पंकज जी,

          ये सब भक्तो का श्री गिरिराज महाराज के प्रीति प्रेम और विश्वास है। आप को गिरिराज जी का जो आदेश हो आप वो कर सकते है।

          जय श्रीराधेकृष्णा

  4. दूध की धारा से गिरराज जी की परिक्रमा लगाने मे कितना दूध लगता है व लगातार धारा की व्यवस्था कैसे होती है

    • 51 किलो दूध का उपयोग होता है और एक बर्तन में छेद करते है जिसमें से लगातार दूध की धारा प्रभाहित होती रहती है

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