नंदगाँव का सांस्कृतिक परिचय
यार नहीँ ब्रजराज कुँवर सौ।
तौ प्यार नहीँ ब्रजवासिन कौ सौ।।
हेत नहीँ हरि भक्ति बराबर।
देश नहीँ ब्रजमण्डल जैसौ।।
नाम रटें यहाँ कृष्ण राधिका।
निर्मल है यमुना जल जैसौ।।
नाम नहीँ मन मोहन कौ सौ।
और गाँव नहीँ नंदगाँव के जैसौ।।
भगवान का जन्म मथुरा कंस के कारागार में हुआ और वासुदेव जी ने रातों रात उनको नन्द जी के यहाँ यमुना पार करके गोकुल पहुँचाया। वहां यशोदा मइया के पास बालकृष्ण को सुलाकर देवी योगमाया को ले आये। गोकुल में कंस के राक्षकों के अत्याचार से दुखी हो नंदबाबा ने गोकुल गाँव को छोड़ दिया और अपने नाम से नंदगांव की स्थापना की। ये वही नंदगांव है जिसकी महिमा का बखान सभी वेद और शास्त्र भी नित्यप्रति किया करते हैं।
नंदमहल कौ भूषण माहिं।
यशोदा कौ लाल…, वीर हलधर कौ।।
राधारमण परम् सुखदायी।।
शिव कौ धन सन्तन कौ सरबस।
जाकी महिमा वेद पुराणन गायी।।
नंददास कौ जीवन गिरधर।
गोकुल गाँव कौ कुँवर कन्हाई।।
ये स्थान ही नंदबाबा ने क्यूँ चुना–??
ब्रज में तीनों देवता ब्रम्हा , विष्णु और महेश पर्वत स्वरूप् में वास करते हैं। ब्रह्मा जी का पर्वत बरसाना जहाँ श्री राधा रानी वास करती हैं। विष्णु जी का पर्वत श्री गोवर्धन गिरिराज जी जहाँ भक्त सात कोसी परिक्रमा लगा कर पुण्य कमाते हैं। और शंकर का पर्वत जहाँ नंदबाबा अपने परिवार सहित विराजमान हैं। इस पर्वत को नदीश्वर पर्वत के नाम से भी जाना जाता है।
बृज में शिव के 5 नाम हैँ।
मथुरा में भूतेश्वर
गोवर्धन में चकलेश्वर
वृन्दावन में गोपेश्वर
कामवन ( कामां ) में कामेश्वर
नंदगांव में नंदीश्वर
नंदबाबा के गुरु मुनि सांडिल्य ऋषि ने इस पर्वत पर हज़ारों वर्ष तपस्या करके कंस के लिए श्राप लगाया था कि यहाँ कंस या कंस का कोई भी राक्षस आएगा तो सीमा से बाहर ही पाषाण पत्थर का हो जायेगा इसमें भीतर प्रवेश नहीँ कर पायेगा। इसलिए नंदबाबा अपने परिवार को लेकर यहाँ आये और अपने नाम के आधार पर श्री नंदगांव धाम की स्थापना की।
यहीँ वो सरोवर है जो पावन सरोवर के नाम से जाना जाता है। यहाँ बाबा ने ठाकुर जी को सर्वप्रथम स्नान करा के नंदोत्सव मनाया और 2 लाख गायों का साधू ब्राह्मणों को दान किया। यहीं पर ठाकुर जी के बालस्वरूप के दर्शन की लालसा लेकर कैलाश पर्वत वासी शिव आये। आज वो स्थान आशेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है।
यहीं ठाकुर जी का वो कदम्ब का वृक्ष है जिस पर बैठ के ठाकुर जी अपनी मधुर बांसुरी बजाते हैं। इस स्थान को टेर कदम्ब के नाम से जाना जाता है।
यहीं पर उद्धव जी आये मथुरा से गोपियों को ज्ञान देने और प्रेम की शिक्षा लेकर गए।
ऊधौ सूधौ है गयौ ।
सुन गोपिन के बोल ।।
ज्ञान बजाई दुंदुबी।
बजौ प्रेम को ढोल।।
इस स्थान को उद्धव वन के नाम से जाना जाता है।
यहीं पर नंद जी गौशाला स्थित है और मइया यशोदा का दूध बिलोने वाला मटका आज भी सुरक्षित है। यहाँ चरण पहाड़ी नामक स्थान पर आज भी प्राचीन समय के ठाकुर जी के चरण चिन्ह बने हैं। नन्दगाँव में 56 कुण्ड और 12 वनों के दर्शन आज भी मौजूद हैं। यहीं रहकर भगवान ने साड़ी लीलाऐं कीं।
महारास करने नंदगांव से गए।
कंस को मारने के लिए भी नंदगांव से गए।
गाय चराने भी नंदगांव से ही जाते थे।
यहाँ के एक कृष्ण भक्त कवि श्री रामशरण जी ने क्रमबद्ध करके इसको एक भजन स्वरूप प्रदान किया है।
गिरी शंकर शिखर नंदगांव है।
नंदलाला को ये तो निज धाम है।।
पर्वत शंकर पे वरदान ऐसौ।
असुर है जाये पाषाण जैसौ।।
वृषभान सुझायौ ऐसौ गाँव है।
नंदलाला को ये तो निज धाम है।।
गाँव गोलाकार बीच भवन है।
परिवार सहित दर्शन है।।
नंदीश्वर विराजें आठों याम हैं।
नंदलाला को ये तो निजधाम है।।
बाबा नन्द यशोधा मइया।
बीच बलदाऊ कृष्ण कन्हैया।।
आजू बाजू में राधा, सखा श्याम हैं।
नंदलाला को ये तो निज धाम है।।
आशेश्वर पे आस्था भारी।
छप्पन कुण्डन की शोभा है न्यारी।।
पावन नहाये नसायें दुष्काम हैं।
नंदलाला को ये तो निजधाम है।।
टेर कदम्ब की शोभा है प्यारी।
बारह वनन में उद्धव क्यारी।।
चरण पहाड़ी पे चिन्ह अविराम हैं।
नंदलाला को ये तो निज धाम है।।
श्याम त्रिभुवन में राज करैया।
नंदगांव में गाय चरैया।।
याकी ‘शरण’ चरण में मुकाम हैं।
नंदलाला को ये तो निजधाम हैं।।
हम सभी नंदगांव वासी नंदजी की इस पावन नगरी में पधारे सभी भक्तों का हार्दिक अभिनन्दन करते हैं और कामना करते हैं कि नंदलाला आपको बार बार अपने दर्शनों का सौभाग्य प्रदान करते रहें।।
जय नंदलाला की