पूंछरी का लोठा मंदिर गोवर्धन
श्रीकृष्ण के श्रीलोठाजी नाम के एक मित्र थे। श्रीकृष्ण ने द्वारिका जाते समय लौठाजी को अपने साथ चलने का अनुरोध किया। इसपर लौठाजी बोले- हे प्रिय मित्र ! मुझे ब्रज त्यागने की कोई इच्छा नहीं हैं।परन्तु तुम्हारे ब्रज त्यागने का मुझे अत्यन्त दु:ख हैं। अत: तुम्हारे पुन: ब्रजागमन होने तक मैं अन्न-जल छोड़कर प्राणों का त्याग यही कर दूंगा। जब तू यहाँ लौट आवेगा, तब मेरा नाम लौठा सार्थक होगा।
श्रीकृष्ण ने कहा- सखा ! ठीक है मैं तुम्हें वरदान देता हूँ कि बिना अन्न-जल के तुम स्वस्थ और जीवित रहोगे। तभी से श्रीलौठाजी पूंछरी में बिना खाये-पिये तपस्या कर रहे हैं।
धनि-धनि पूंछरी के लौठा।अन्न खाय न पानी पीवै ऐसेई पड़ौ सिलौठा।
उसे विश्वास है कि श्रीकृष्णजी अवश्य यहाँ लौट कर आवेंगे। क्योंकि श्रीकृष्णजी स्वयं वचन दे गये हैं। इसलिये इस स्थान पर श्रीलौठाजी का मन्दिर प्रतिष्ठित है। श्री गोवर्धन का आकार एक मोर के सदृश है। श्रीराधाकुंड उनके जिहवा एवं कृष्ण कुण्ड चिवुक हैं। ललिता कुण्ड ललाट है। पूंछरी नाचते हुए मोर के पंखों-पूंछ के स्थान पर हैं। इसलिये इस ग्राम का नाम पूछँरी प्रसिद्ध हैं।
इसका दूसरा कारण यह है, कि श्रीगिरिराजजी की आकृति गौरुप है। आकृति में भी श्रीराधाकुण्ड उनके जिहवा एवं ललिताकुण्ड ललाट हैं एवं पूंछ पूंछरी में हैं। इस कारण से भी इस गांव का नाम पूँछरी कहते हैं। इस स्थान पर श्रीगिरिराजजी के चरण विराजित हैं। ऐसा भी कहते है कि जब सभी गोप गोपियाँ गोवर्धन की परिक्रमा नाचते गाते कर रहे थे,तभी एक मोटा तकड़ा गोप वही गिर गए तभी पीछे से एक सखी ने कहा अरे सखी पूछ री कौ लौठा, अर्थात “कौन लुढक गया” इस लिए भी इसे पूंछरी लौठा कहते है।
!! हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे !!
!! हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे !!
बूरज की भूमि धन्य है जहाँ कण-कण में भगवान कृष्ण के चरण रज विद्यमान हैं ।एक कण का भी यदि कोई आश्रय ले ले तो जन्म जन्मान्तर के लिये धन्य हो जाय।
Hanuman Ji ka roop hai