प्राचीन ठाकुर श्री गोवर्धन गिरिराज जी महाराज मुकुट मुखारविंद मंदिर, श्रीधाम गोवर्धन

जहां भगवान श्रीकृष्ण के विचार करने मात्र से उत्पन्न हुईं गंगा, कहलाईं मन से प्रगटी !! मानसी गंगा !!

वहीं उत्तरी तट पर विराजमान हैं ठाकुर श्री गोवर्धन गिरिराज जी महाराज का मुकुट मुखारविंद मंदिर। इसमें दर्शन के लिए ठाकुर जी के दो स्वरूप है जिसमें एक खड़े हुए और दूसरे बैठे हुए। यानी भक्तों की मानें तो एक रूप जिससे खड़े होकर भगवान श्रीकृष्ण ने बैठे हुए भगवान श्रीकृष्ण की पूजा कराई। इन दोनों स्वरूप का दर्शन किसी अन्य स्थल पर नहीं है।

यहां मंदिर में लाखों ही नहीं करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु भक्त दर्शनार्थ आते हैं। भक्तों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए अभी मंदिर में 4 रास्ते प्रवेश एवम निकास के लिए हैं। यह मंदिर और मानसी गंगा गोवर्धन गांव के बीच मध्य भाग में स्थित है।

Shri Mukut Mukharvind Temple Govardhan

Shri Mukut Mukharvind Temple Govardhan

गोवर्धन गिरिराज जी पूजन के वक्त अधिक मात्रा में योग्य पवित्र जल की आवश्यकता को देखते हुए भगवान श्रीकृष्ण जी ने समस्त ब्रजवासियों के देखते हुए, उनकी सुविधा के लिए मानसी गंगा को वहीं प्रकट कर दिया।

सभी तीर्थ जब ब्रज चौरासी कोस में विराजमान हैं तो गंगा क्यूं नहीं भगवान श्रीकृष्ण के मन में ऐसा संकल्प हुआ और श्री गंगा मां को मानसी गंगा के रूप में गोवर्धन गिरिराज जी की तलहटी में प्रकट कर दिया। जो आज भी भक्तों का कल्याण कर रहीं हैं।

Ganga Maiya Mandir Temple Govardhan

Ganga Maiya Mandir Temple Govardhan

प्रात:काल जब समस्त ब्रजवासियों ने गिरिराज तलहटी में मां गंगा को देखा तो वे आश्चर्यचकित हो गए। सभी को विस्मित देखकर अन्तर्यामी भगवान श्रीकृष्ण बोले कि इस पावन ब्रजभूमि की सेवा के लिए तो तीनों लोकों के सभी तीर्थ यहां आकर विराजते हैं। अब गंगा मां भी विराजमान होंगी। और समस्त भक्तों का उद्धार करेंगी।

तभी समस्त ब्रजवासियों ने स्नान, आचमन एवम रात्रि के वक्त दीपदान आदि धार्मिक कार्य किए। और यह परंपरा नियमित जारी हो गई।

इसके अतिरिक्त, मानसी गंगा प्रादुर्भाव की दो कथाएं और भी हैं।

१. भगवान श्री कृष्ण ने गोपियों एवं बाबा नंद के कहने पर वत्सासुर (बछड़े के रूप असुर) की हत्या के पाप से मुक्त होने के लिए, अपने मन से मानसी गंगा को प्रकट किया तथा इसमें स्रान करके पाप मुक्त हुए थे।
२. एक बार यमुना ( कालिंदी ) जी ने अपनी बड़ी बहन भागीरथी गंगा के ऊपर कृपा करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण का आवाहन किया। श्रीकृष्ण जी ने यमुना जी की प्रार्थना सुनकर उसी समय जाह्नवी गंगा का आवाहन किया और गोपियों के साथ जल-विहार कर उन्हें कृतज्ञ किया।

manasi-ganga-temple-goverdhan

कार्तिक मास की अमावस्या को श्री मानसी गंगा यहां प्रकट हुई थीं। आज भी इस तिथि को याद कर लाखों भक्त स्रान-पूजा-अर्चना-दीपदान एवं सवा लाख दीपदान करते हैं। श्री भक्ति विलास के अनुसार,

गंगे दुग्धमये देवी, भगवन्मानसोदवे।

यानी भगवान श्रीकृष्ण के मन से प्रकट होने वाली दुग्धमयी गंगा माँ आपको हम नमस्कार करते हैं।

दूध की मानसी गंगा

करीब 200 वर्ष पूर्व गोवर्धन गिरिराज जी के लटीराम नाम के तीर्थपुरोहित (पंडा जी) ने नेपाल देश के राजा श्रीसुरेंद्र वीर विक्रम शाहदेव को भरी सभा में मानसी गंगा जल को दूध की सिद्ध करके दिखाया। और आज भी समय – समय पर मानसी गंगा के मध्य सभी के देखते हुए दूध की धार कुछ अल्प समय के लिए प्रगट होती है जिसका बृजवासी भक्तजन बर्तनों में लेकर प्रसाद भी ग्रहण करते हैं।

मानसी गंगा में आज भी साक्षात भगवान श्रीराधाकृष्ण अपनी सखियों के साथ यहां नौका-विहार की लीला किया करते हैं। कहा जाता है कि मानसी गंगा में एक बार स्रान, आचमन करने से जो फल प्राप्त होता है वह हजारों अश्वमेध यज्ञों तथा सैकड़ों राजसूय यज्ञों के करने पर भी प्राप्त नहीं होता।