बलदेव गाँव का इतिहास

यह स्थान मथुरा जनपद में ब्रजमंडल के पूर्वी छोर पर स्थित है। मथुरा से 21 कि॰मी॰ दूरी पर एटा-मथुरा मार्ग के मध्य में स्थित है। मार्ग के बीच में गोकुल एवं महावन जो कि पुराणों में वर्णित ‘वृहद्वन’ के नाम से विख्यात है, पड़ते हैं। यह स्थान पुराणोक्त ‘विद्रुमवन’ के नाम से निर्दिष्ट है।
इसी विद्रुभवन में भगवान श्री बलराम जी की अत्यन्त मनोहारी विशाल प्रतिमा तथा उनकी सहधर्मिणी राजा ककु की पुत्री ज्योतिष्मती रेवती जी का विग्रह है। यह एक विशालकाय देवालय है जो कि एक दुर्ग की भाँति सुदृढ प्राचीरों से आवेष्ठित है। मन्दिर के चारों ओर सर्प की कुण्डली की भाँति परिक्रमा मार्ग में एक पूर्ण पल्लवित बाज़ार है। इस मन्दिर के चार मुख्य दरवाजे हैं, जो क्रमश:
1. सिंहचौर,
2. जनानी ड्योढी,
3. गोशाला द्वार,
4. बड़वाले दरवाज़े के नाम से जाने जाते हैं।
मन्दिर के पीछे एक विशाल कुण्ड है जो कि बलभद्र कुण्ड के नाम से पुराण में वर्णित है। आजकल इसे ‘क्षीरसागर’ के नाम से पुकारते हैं।

Baldev Temple Holi Mathura

ऐतिहासिक तथ्य

मगधराज जरासंध के राज्य की पश्चिमी सीमा यहाँ लगती थीं, अत: यह क्षेत्र कंस के आतंक से प्राय: सुरक्षित था। इसी निमित्त नन्द बाबा ने बलदेव जी की माता रोहिणी को बलदेव जी के प्रसव के निमित इसी विद्रुमवन में रखा था और यहीं बलदेव जी का जन्म हुआ जिसके प्रतीक रूप रीढ़ा (रोहिणेयक ग्राम का अपभ्रंश तथा अबैरनी, बैर रहित क्षेत्र) दोनों ग्राम आज तक मौजूद हैं।

Holi In Mathura

ब्रिटिश शासन

इसके बाद अंग्रेज़ों का जमाना आया। मन्दिर सदैव से देश-भक्तों के जमावड़े का केन्द्र रहा। उनकी सहायता एवं शरण-स्थल का एक मान्य-स्रोत भी। जब ब्रिटिश शासन को पता चला तो उन्होंने मन्दिर के मालिकान पण्डों को आगाह किया कि वे किसी भी स्वतन्त्रता प्रेमी को अपने यहाँ शरण न दें परन्तु आत्मीय सम्बन्ध एवं देश के स्वतन्त्रता प्रेमी मन्दिर के मालिकों ने यह हिदायत नहीं मानी, जिससे चिढ़-कर अंग्रेज़ शासकों ने मन्दिर के लिये जो जागीरें भूमि एवं व्यवस्थाएं पूर्व शाही परिवारों से प्रदत्त थी।

उन्हें दिनाँक 31 दिसम्बर सन 1841 को स्पेशल कमिश्नर के आदेश से कुर्की कर जब्त कर लिया गया और मन्दिर के ऊपर पहरा बिठा दिया जिससे कोई भी स्वतन्त्रता प्रेमी मन्दिर में न आ सके, परन्तु किले जैसे प्राचीरों से आवेष्ठित मन्दिर में किसी दर्शनार्थी को कैसे रोक लेते? अत: स्वतन्त्रता संग्रामी दर्शनार्थी के रूप में आते तथा मन्दिर में निर्बाध चलने वाले सदावर्त एवं भोजन व्यवस्था का आनन्द लेते ओर अपनी कार्य-विधि का संचालन करके पुन: अभीष्ट स्थान को चले जाते। अत: प्रयत्न करने के बाद भी गदर प्रेमियों को शासन न रोक पाया।

क्षीर सागर, बलदेव मान्यताएं

बलदेव एक ऐसा तीर्थ है जिसकी मान्यताएं हिन्दू धर्मावलम्बी करते आये हैं। धर्माचार्यों में श्रीमद वल्लभाचार्य जी के वंश की तो बात ही पृथक् है। निम्बार्क, माध्व, गौड़ीय, रामानुज, शंकर कार्ष्णि, उदासीन आदि समस्त धर्माचार्यो, में बलदेव जी की मान्यताएं हैं। सभी नियमित रूप से बलदेव जी के दशनार्थ पधारते रहे हैं और यह क्रम आज भी जारी है।

Huranga In Dauji Baldev Gaon

ग्राउस के अनुसार

इसके साथ ही एक धक्का ब्रिटिश राज में मंदिर को तब लगा जब एफ॰ एस॰ ग्राउस यहाँ का कलेक्टर नियुक्त हुआ। ग्राउस महोदय का विचार था कि बलदेव जैसे प्रभावशाली स्थान पर एक चर्च का निर्माण कराया जाय क्योंकि बलदेव उस समय एक मूर्धन्य तीर्थ स्थल था। अत: उसने मंदिर की बिना आज्ञा के चर्च निर्माण प्रारम्भ कर दिया। शाही जमाने से ही मंदिर की 256 एकड़ भूमि में मंदिर की आज्ञा के बगैर कोई व्यक्ति किसी प्रकार का निर्माण नहीं करा सकता था।

क्योंकि उपर्युक्त भूमि के मालिक जमींदार श्री दाऊजी हैं। तो उनकी आज्ञा के बिना कोई निर्माण कैसे हो सकता था? परन्तु उन्मादी ग्राउस महोदय ने बिना कोई परवाह किये निर्माण कराना शुरू कर दिया। मंदिर के मालिकान ने उसको बलपूर्वक ध्वस्त करा दिया जिससे चिढ़-कर ग्राउस ने पंडा वर्ग एवं अन्य निवासियों को भारी आतंकित किया। आगरा के एक मूर्धन्य सेठ एवं महाराज मुरसान के व्यक्तिगत प्रभाव का प्रयोग कर वायसराय से भेंट कर ग्राउस का स्थानान्तरण बुलन्दशहर कराया।

जिस स्थान पर चर्च का निर्माण कराने की ग्राउस की हठ थीं। उसी स्थान पर आज वहाँ ‘बेसिक प्राइमरी पाठशाला’ है जो पश्चिमी स्कूल के नाम से जानी जाती है। ग्राउस की पराजय का मूक साक्षी है।

Samaj Gathering During Lathmar Hoil

Vishav Prasid Dauji Huranga Images

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