Shri Nath Ji Temple, Poonchari Ka Lauta, Govardhan

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Shri Nath Ji Temple, Poonchari Ka Lauta, Govardhan
Shri Nath Ji Temple, Poonchari Ka Lauta, Govardhan

श्री नाथ जी मंदिर, पूंछरी का लौटा, गोवर्धन

श्री श्रीनाथ जी कथा महात्म्य

श्री श्रीनाथ जी मंदिर, पूंछरी का लौठा, जतीपुरा श्री गोवर्धन गिरिराज जी परिक्रमा मार्ग में स्थित है।

इस स्थान पर अनेकों चमत्कार भगवान श्रीकृष्ण जी के हुए जैसे कि अभी करीब 500 वर्ष पूर्व की बात है, राघव पंडित (साधु भक्त) जी से हमारे ठाकुर जी श्रीनाथ जी आमने सामने बात करते थे। उनके साथ अनेकों लीलाएं करते थे। यहां आज भी राघव पंडित बाबा की गुफा मौजूद है।

करीब 100 वर्ष पूर्व

एक पंडित बाबा और की भी कथा मिलती है जो साथ में खेलते थे श्रीनाथ जी से ब्रज का प्रसिद्ध खेल अंटा गोली। जो पंडित बाबा जयपुर राज परिवार के पुरोहित भी थे। और ठाकुर श्री श्रीनाथ जी से उनके पसंदीदा खेल भी खेलते थे।

इनके बाद जगन्नाथ बाबा हुए। जो 80 वर्ष भजन किए, ठाकुर जी की सेवा किए। 100 वर्ष के पूरे होकर शरीर त्याग किया। अभी इस गुफा में 2 साल पहले तक बाबा रासबिहारी रहते थे जिनका अब शरीर पूरा हो गया।

Bhagwan Shri Nath Ji Darshan Govardhan
Bhagwan Shri Nath Ji Darshan Govardhan

मंदिर के पीछे है ये गुफा

एकदम अदभुत झलक के साथ विराजमान ठाकुर श्री श्रीनाथ जी का स्वरूप अत्यंत आकर्षण से पूर्ण है।

श्रीनाथजी का नाथद्वारा पधारने का इतिहास

राजस्थान का नाथद्वारा शहर पुष्टिमार्गीय वैष्णव सम्प्रदाय का प्रधान पीठ है, जहाँ भगवान श्रीनाथजी का विश्व प्रसिद्ध मंदिर स्थित है।

प्रभु श्रीनाथजी का प्राकट्य ब्रज के गोवर्धन पर्वत पर जतीपुरा गाँव के निकट हुआ था। महाप्रभु वल्लभाचार्य जी ने यहां जतीपुरा गाँव में मंदिर का निर्माण करा सेवा प्रारंभ की थी।

Bhagwan Shri Nath Ji Darshan Govardhan
Bhagwan Shri Nath Ji Darshan Govardhan

भारत के मुगलकालीन शासक अकबर से लेकर औरंगजेब तक का इतिहास पुष्टि संप्रदाय के इतिहास के समानान्तर यात्रा करता रहा। सम्राट अकबर ने पुष्टि संप्रदाय की भावनाओं को स्वीकार किया था। मंदिर गुसाईं श्री विठ्ठलनाथजी के समय सम्राट की बेगम बीबी ताज श्रीनाथजी की परम भक्त थी तथा तानसेन, बीरबल, टोडरमल भी पुष्टि मार्ग, भक्ति मार्ग के उपासक रहे थे। इसी काल में कई मुसलमान रसखान, मीर अहमद इत्यादि ब्रज साहित्य के कई कवि भी श्रीकृष्ण के भक्त रहे हैं। भारतेन्दु हरिशचन्द्र ने यहाँ तक कहा है – “इन मुसलमान कवियन पर कोटिक हिन्दू वारिये”।

किन्तु मुगल शासकों में औरंगजेब अत्यन्त असहिष्णु था। कहा जाता है कि वह हिन्दू देवी देवताओं की मूर्तियों तोड़ने का कठोर आदेश दिया करता था। उसके आदेशों से हिन्दुओं के सेव्य, मंदिर विशेष खण्डित होने लगे। मूर्तिपूजा के विरोधी इस शासक की वक्र दृष्टि ब्रज में विराजमान श्रीगोवर्धन गिरि पर स्थित श्रीनाथजी पर भी पड़ने की संभावना थी। ब्रजजनों के परम आराध्य व प्रिय श्रीनाथजी के विग्रह की सुरक्षा करना महाप्रभु श्रीवल्लभाचार्य के वंशज गोस्वामी बालकों का प्रथम कर्तव्य था।

Shri Govardhan Giriraj Ji Darshan
Shri Govardhan Giriraj Ji Darshan

इस दृष्टि से महाप्रभु श्रीवल्लभाचार्य जी के वंशज ने श्रीनाथजी के विग्रह को लेकर प्रभु आज्ञा से ब्रज छोड़ देना उचित समझा और श्रीनाथजी को लेकर वि. सं. १७२६ आश्विन शक्ल १५ शुक्रवार की रात्रि के पिछले पहर रथ में पधारकर ब्रज से प्रस्थान किया। श्रीनाथजी का स्वरूप ब्रज में १७७ वर्ष तक रहा था। श्रीनाथजी अपने प्राकट्य संवत १५४६ से लेकर सं. १७२६ तक ब्रज में सेवा स्वीकारते रहे।

उधर गोवर्धन से श्रीनाथजी के विग्रह से सजे रथ के साथ सभी भक्त आगरा की ओर चल पड़े। बूढ़े बाबा महादेव आगे प्रकाश करते हुए चल रहे थे। वे सब आगरा हवेली में अज्ञात रूप से पहुँचे। यहां से कार्तिक शुक्ला २ को पुनः लक्ष्यविहीन यात्रा पर चले। श्रीनाथजी के साथ रथ में परम भक्त गंगाबाई रहती थी। तीनों भाईयों में एक श्री वल्लभजी डेरा-तम्बू लेकर आगामी निवास की व्यवस्था हेतु चलते। साथ में रसोइया, बाल भोगिया, जलरिया भी रहते थे।

Bhagwan Shri Nath Ji Sringar Darshan Govardhan
Bhagwan Shri Nath Ji Sringar Darshan Govardhan

श्री गोविन्द जी श्रीनाथजी के रथ के आगे घोड़े पर चलते और श्रीबालकृष्णजी रथ के पीछे चलते। बहू-बेटी परिवार दूसरे रथ में पीछे चलते थे। सभी परिवार मिलकर श्रीनाथजी के लिए सामग्री बनाते व भोग घरातै। मार्ग में संक्षिप्त अष्टयाम सेवा चलती रही। आगरा से चलकर ग्वालियर राज्य में चंबल नदी के तटवती दंडोतीधार नामक स्थान पर मुकाम किया। वहां कृष्णपुरी में श्रीनाथजी बिराजे। तदुपरान्त कोटा से चलकर पुष्कर होते हुए कृष्णगढ़ (किशनगढ़) से दो मील दूर पहाड़ी पर पीताम्बरजी में विराजे। इसके पश्चात कृष्णगढ़ से चलकर जोधपुर राज्य में बंबाल और बीसलपुर स्थानों से होते हुए चौपासनी पहुँचे, जहाँ श्रीनाथजी चार-पांच माह तक बिराजे तथा संवत १७२७ के कार्तिक माह में अन्नकूट उत्सव भी किया गया।

Shri Nath Ji Temple, Poonchari Ka Lauta, Govardhan
Shri Nath Ji Temple, Poonchari Ka Lauta, Govardhan

अंत में मेवाड़ राज्य के सिंहाड़ नामक स्थान में पहुँचकर स्थाई रूप से बिराजमान हुए। उस काल में वीरभूमि मेवाड़ के महाराणा की राजसिंह सर्वाधिक शक्तिशाली हिन्दू राजा थे। उन्होंने औरंगजेव की उपेक्षा कर पुष्टि संप्रदाय के गोस्वामियों को आश्रय और संरक्षण प्रदान किया था।

श्रीनाथजी को गिरिराज जी के मन्दिर से पधारकर सिहाड़ के मन्दिर में विराजमान करने तक दो वर्ष चार माह सात दिन का समय लगा था। श्रीनाथजी के नाम के कारण ही मेवाड़ का वह सिंगाड ग्राम भी अब श्रीनाथद्वारा नाम से विश्वविख्यात हो रहा है।

Shri Nath Ji Temple Govardhan Address and Location with Google Map

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