
The complete Bhagavad Gita recited in Hindi
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Shrimad Bhagavad Gita Chapter-01 (Part-01) in Hindi.mp3
भागवत गीता भाग १ सारांश / निष्कर्ष :- संशय विषाद योग
गीता क्षेत्र – क्षेत्रज्ञ के युद्ध का निरूपण है। यह ईश्वररिय विभूतियों से संपन्न भगवत स्वरुप को दिखाने वाला गायन है। यह गायन जिस क्षेत्र में होता है वह युद्ध क्षेत्र शरीर है। जिसमें दो प्रवृतियां हैं धर्मक्षेत्र और कुरुक्षेत्र, उन सेनाओं का स्वरुप और उनमें बल का आधार बताया। शंख ध्वनि से उनके पराक्रम की जानकारी मिली।
तदंतर जिस सेना से लड़ना है उनका निरीक्षण हुआ जिसकी गणना 18 अक्षरिय अथात् लगभग साढॆ ६ अरब कही जाती है। किंतु वस्तुतः वे अनंत है।
Shrimad Bhagavad Gita Chapter-02 (Part-02) in Hindi.mp3
भागवत गीता भाग २ सारांश / निष्कर्ष :- कर्म – जिज्ञासा
प्रायः कुछ लोग कहते है, कि दूसरे अध्याय में गीता पूरी हो गयी। किन्तु केवल कर्म का नाम मात्र लेने से कर्म पूरा हो जाता हो। तब तो गीता का समापन माना जा सकता है। इस अध्याय में योगेश्वर श्रीकृष्ण ने यही बताया है कि अर्जुन निष्काम कर्म के विषय में सुन, जिसे जानकर तू संसार बंधन से छुट जायेगा। कर्म करने में तेरा अधिकार है, फल मे कभी नहीं।
कर्म करने मे तेरी (असरधा) भी न हो। निरन्तर करने के लिए तत्पर हो जाता है। इसके परिणाम में तू परम पुरुष का दर्शन कर स्थितप्रज्ञ बनेगा।
Shrimad Bhagavad Gita Chapter-03 (Part-03) in Hindi.mp3
भागवत गीता भाग ३ सारांश / निष्कर्ष :- शत्रुविनाश – प्रेरणा
बहुधा गीता प्रेमी व्याख्याताओं ने इस अध्याय को कर्म योग का नाम दिया है, किन्तु ये सांगत नहीं है। दुसरे अध्याय में योगेश्वर ने कर्म का नाम लिया है। उन्होंने कर्म के महत्व का प्रतिपादन कर उसमे कर्मजिज्ञासा जाग्रत की और इस अध्याय में उन्होंने कर्म को परिभाषित किया कि यज्ञ की प्रक्रिया ही कर्म है। सिद्ध है कि यज्ञ कोई निर्धारित दिशा है।
इसके अतिरिक्त जो कुछ भी किया जाता है, वह इसी लोक का बंधन है। श्रीकृष्ण जिसे कहेंगे, वह कर्म “मोक्ष्यसेऽशुभात्” संसार बंधन से छुटकारा दिलाने वाला कर्म है।
Shrimad Bhagavad Gita Chapter-04 (Part-04) in Hindi.mp3
भागवत गीता भाग ४ सारांश / निष्कर्ष :- यज्ञकर्म स्पष्टीकरण
इस अध्याय के आरम्भ में योगेश्वर श्रीकृष्ण ने कहा कि इस योग को आरम्भ में मैने सूर्य के प्राप्ति कहा, सूर्य ने मनु से और मनु ने इक्ष्वाकु के प्रति कहा और उन से राजर्षियों ने जाना। मैंने अथवा अव्यक्त स्थितिवाले ने कहा। महापुरुष भी अव्यक्त स्वरूपवाला ही है। शरीर तो उसके रहने का मकान मात्र है। ऐसे महापुरुष की वाणी में परमात्मा ही पर्वह्वित होता है।
ऐसे किसी महापुरुष से योग सूर्य द्वारा संचारित होता है। उस परम प्रकाश रूप का प्रसार सूरा के अन्तराल में होता है इसलिये सूर्य के प्रति कहा है।
Shrimad Bhagavad Gita Chapter-05 (Part-05) in Hindi.mp3
भागवत गीता भाग ५ सारांश / निष्कर्ष :- यज्ञभोक्ता महापुरुषस्थ महेश्वर
इस अध्याय के आरम्भ में अर्जुन ने प्रश्न किया कि कभी तो आप निष्कर्म कर्मयोग की प्रशंसा करते है और कभी आप सन्यास मार्ग से कर्म करने की प्रशंसा करते है, अत: दोनों में एक को, जो आपने सुनिश्चित किया हो, परमकल्याणकारी हो, उसे कहिये। श्रीकृष्ण ने बताया – अर्जुन परमकल्याण तो दोनों में है।
दोनों में वही निर्धारित यज्ञ की क्रिया ही की जाती है, फिर भी निष्काम कर्मयोग विशेष है। बिना इसे किये सन्यास ( (शुभाशुभ कर्मो का अंत ) नहीं होता।
Shrimad Bhagavad Gita Chapter-06 (Part-06) in Hindi.mp3
भागवत गीता भाग ६ सारांश / निष्कर्ष :- अभ्यासयोग
इस अध्याय के आरम्भ मे योगेश्वर श्रीकृष्ण ने कहा कि फल के आश्रय से रहित होकर जो “कार्यम् कर्म” अर्थात् करने योग्य प्रक्रिया-विशेष का आचरण करता है। वही सन्याशी है और उसी कर्म को करने वाला ही योगी है। केवल क्रियाओं अथवा अग्नि को त्यागनेवाला योगी अथवा सन्यासी नहीं होता।
संकल्पों का त्याग किये बिना कोई भी पुरुष सन्याशी अथवा योगी नहीं होता। हम संकल्प नहीं करते – ऐसा कह देने मात्र से संकल्प पिंड नहीं छोड़ते।
Shrimad Bhagavad Gita Chapter-07 (Part-07) in Hindi.mp3
भागवत गीता भाग ७ सारांश / निष्कर्ष :- समग्र जानकारी
इस सातवें अध्याय में योगेश्वर श्रीकृष्ण ने बताया की – अनन्य भाव से मुझमें समर्पित होकर, मेरे आश्रित होकर जो योग में लगता है वह समग्र रूप से मुझे जनता है। मुझे जानने के लिये हजारो में कोई विरला ही प्रयत्न करने वालो में विरला ही कोई जानता है। वह मुझे पिण्ड रूप में एक देशीय नहीं वरन सर्वत्र वियाप्त दिखता है।
Shrimad Bhagavad Gita Chapter-08 (Part-08) in Hindi.mp3
भागवत गीता भाग ८ सारांश / निष्कर्ष :- अक्षर ब्रह्मयोग
इस अध्याय में पाच प्रमुख बिंदुओं पर विचार किया गया। जिनमें सर्वप्रथम अध्याय सात के अंत में श्रीकृष्ण द्वारा बीजोरोपित प्रश्नो को स्पष्ट समझाने की जिज्ञासा से इस अध्याय के आरम्भ में अर्जुन ने सात प्रश्न किये कि – भगवन! जिसे आपने कहा, वह ब्रह्म क्या है? वह आत्मा क्या है? वह सम्पूर्ण कर्म क्या है? अधिदेव, अधिभुत और अधियज्ञ क्या है
और अन्तकाल में आप किस प्रकार जानने में आते है कि कभी विस्मृत नहीं होते? योगेश्वर श्रीकृष्ण ने बताया की जिसका विनाश नहीं होता वही परब्रह्म है।
Shrimad Bhagavad Gita Chapter-09 (Part-09) in Hindi.mp3
भागवत गीता भाग ९ सारांश / निष्कर्ष :- राजविद्या-जागृति
इस अध्याय के आरम्भ मै श्रीकृष्ण ने कहा – अर्जुन! तुझ दोषरहित भक्त के लिये मैं इस ज्ञान को विज्ञानं सहित कहूँगा, जिसे जानकर कुछ भी जानना शेष नहीं रहेगा। इसे जानकर तू संसार बंधन से छुट जायेगा। यह ज्ञान सम्पूर्ण विधियाओ का राजा है विद्या वह है जो परमब्रह्म में प्रवेश दिलाये। यह ज्ञान उसका भी राजा है अथार्त निश्चय ही कल्याण करने वाला है।
यह सम्पूर्ण गोपनीयों का भी राजा है, गोपनीय वस्तु को भी प्रत्यक्ष करने वाला है। यह प्रत्यक्ष फलवाला, साधन करने मै सुगम और अविनाशी है। इसका थोडा साधन आप को पार लगा जाये तो इसका कभी नाश नहीं होता वरन इसके प्रभाव से वह परमश्रेय तक पहुचं जाता है,
Shrimad Bhagavad Gita Chapter-10 (Part-10) in Hindi.mp3
भागवत गीता भाग १० सारांश / निष्कर्ष :- विभूति-वर्णन
इस अध्याय में श्रीकृष्ण ने कहा कि – अर्जुन! मैं तुझे पुनः उपदेश करूँगा, क्योकि तू मेरा अतिशय प्रिय है। पहले कह चुके है, फिर भी कहने जा रहे है, क्योकि पूर्तिपर्यन्त सदगुरु से सुनने की आवश्यकता रहती है। मेरी उत्पति को न देवता और न महर्षिगण ही जानते है क्योकि मैं उनका भी आदि कारण हूँ।
अव्यक्त स्थिति के पश्चात की सार्वभौम अवस्था को वही जनता है, जो हो चुका है। जो मुझे अजन्मा, अनादी और सम्पूर्ण लोको के महान ईश्वर को साक्षात्कारसहित जानता है वही ज्ञानी है।
Shrimad Bhagavad Gita Chapter-11 (Part-11) in Hindi.mp3
भागवत गीता भाग ११ सारांश / निष्कर्ष :- विश्वरूप-दर्शन योग
इस अध्याय के आरम्भ में अर्जुन ने कहा – भगवन! आपकी विभूतियों को मैंने विस्तार से सुना, जिससे मेरा मोह नष्ट हो गया, अज्ञान का शमन हो गया, किन्तु जैसा आपने बताया कि मैं सर्वत्र हूँ, इसे मैं प्रत्यक्ष देखना चाहता हूँ। यदि मेरे द्वारा देखना संभव हो, तो कृपया उसी रूप को दिखाइये।
अर्जुन प्रिय सखा था, अनन्य सेवक था अतएव योगेश्वर श्रीकृष्ण ने कोई प्रतिवाद न कर तुरन्त दिखाना प्रारम्भ किया कि अब मेरे ही अन्दर खड़े सप्तऋषि और उनसे भी पूर्व होने वाले ऋषियों को देख, सर्वत्र फेले मेरे तेज को देख
Shrimad Bhagavad Gita Chapter-12 (Part-12) in Hindi.mp3
भागवत गीता भाग १२ सारांश / निष्कर्ष :- भक्तियोग
गत अध्याय के अन्त में योगेश्वर श्रीकृष्ण ने कहा कि- अर्जुन! तेरे सिवाय न कोई पाया है, न कोई पा सकेगा। जैसा तू ने देखा, किन्तु अनन्य भक्ति अथवा अनुराग से जो भजता है, वह इसी प्रकार मुझे देख सकता है, तत्व के साथ मुझे जान सकता है और मुझमें प्रवेश भी पा सकता है। अथार्त परमात्मा ऐसी सत्ता है, जिसको पाया जाता है। अत: अर्जुन भक्त बन।
Shrimad Bhagavad Gita Chapter-13 (Part-13) in Hindi.mp3
भागवत गीता भाग १३ सारांश / निष्कर्ष :- क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग
गीता के आरम्भ में धर्मक्षेत्र, कुरुक्षेत्र का नाम तो लिया गया, किन्तु वह क्षेत्र वस्तुत: है कहा? वह स्थल बताना शेष था, जिसे स्वयं शास्त्रकार ने प्रस्तुत अध्याय में स्पष्ट किया। कौन्तेय! यह शरीर ही एक क्षेत्र है। जो इसको जनता है, वह क्षेत्रज्ञ है। वह इसमें फँसा नहीं बल्कि निर्लेप है। इसका संचालक है। ” अर्जुन! सम्पूर्ण क्षेत्रों में मैं भी क्षेत्रज्ञ हूँ। ”
अन्य महापुरुषो से अपनी तुलना की। इससे स्पष्ट है कि श्रीकृष्ण भी एक योगी थे क्योकि जो जनता है वह क्षेत्रज्ञ है, ऐसा महापुरुषो ने कहा है। मैं भी क्षेत्रज्ञ हूँ अथार्त अन्य महापुरुषों की तरह मैं भी हूँ।
Shrimad Bhagavad Gita Chapter-14 (Part-14) in Hindi.mp3
भागवत गीता भाग १४ सारांश / निष्कर्ष :- गुणत्रय विभाग योग
इस अध्याय के आरम्भ में योगेश्वर श्रीकृष्ण ने कहा कि- अर्जुन! ज्ञानो में भी अति उतम परमज्ञान को मैं फिर भी तेरे लिए कहूँगा, जिसे जान कर मुनिजन उपासना के द्वारा मेरे स्वरूप को प्राप्त होते है, फिर सृष्टि के अदि में वे जन्म नहीं लेते किन्तु शरीर का निधन तो होना ही है, उस समय वे व्यथित नहीं होते। प्राप्ति जीते जी होती है, किन्तु शरीर का अन्त होते समय भी वे व्यथित नही होते।
Shrimad Bhagavad Gita Chapter-15 (Part-15) in Hindi.mp3
भागवत गीता भाग १५ सारांश / निष्कर्ष :- पुरुषोत्तम योग
इस अध्याय के आरम्भ में योगेश्वर श्रीकृष्ण ने बताया कि संसार एक वृक्ष है, पीपल जैसा वृक्ष है। पीपल एक उदहारण मात्र है। ऊपर इसका मूल परमात्मा और नीचे प्रकृतिपर्यन्त इसकी शाखा-प्रशाखाएँ है। जो इस वृक्ष को मूल सहित विदित कर देता है, वह वेदों का ज्ञाता है।
इस संसार वृक्ष की शाखाएँ ऊपर और नीचे सर्वत्र व्याप्त है और मूलानि – उसकी जड़ो का जाल भी ऊपर और नीचे सर्वत्र व्याप्त है, क्योकि वह मूल ईश्वर और वही बीज रूप से प्रत्येक जीव ह्र्दय में निवास करता है।
Shrimad Bhagavad Gita Chapter-16 (Part-16) in Hindi.mp3
भागवत गीता भाग १६ सारांश / निष्कर्ष :- दैवासुर सम्पद् विभाग योग
इस अध्याय के आरम्भ में योगेश्वर श्रीकृष्ण ने दैवी सम्पद का विस्तार से वर्णन किया। जिसमें ध्यान में स्थिति, सर्वस्व का समर्पण, अन्त: करण की शुद्धि इन्द्रियों का दमन, मन का समन, स्वरूप को स्मरण दिलाने वाला अध्ययन, यज्ञ के लिये प्रयत्न, मनसहित इन्द्रियों को तपाना, अक्रोध, चित्त का शान्त प्रवाहित रहना इत्यादि छब्बीस लक्षण बताये, सब के सब तो इष्ट के समीप पहुचें हुए योग-साधना में प्रवृत्त किसी साधक में सम्भव है। आंशिक रूप से सब में है।
Shrimad Bhagavad Gita Chapter-17 (Part-17) in Hindi.mp3
भागवत गीता भाग १७ सारांश / निष्कर्ष :- ॐतत्सत् व श्रद्धात्रय विभाग योग
अध्याय के आरम्भ में ही अर्जुन ने प्रश्न किया कि भगवन! जो शास्त्रविधि को त्याग कर और श्रद्धा से युक्त होकर यजन करते है ( लोग भुत, भवानी अन्यान्य पूजते ही रहते है) तो उनकी श्रद्धा कैसी है? सात्त्विकी है, राजसी है अथवा तामसी? इस पर योगेश्वर श्रीकृष्ण ने कहा। अर्जुन! यह पुरुष श्रद्धा का स्वरुप है, कही न कही उसकी श्रद्धा होगी ही।
जैसी श्रद्धा वैसा पुरुष, जैसी वृत्ति वैसा पुरुष। उनकी वह श्रद्धा सात्विक, राजसी और तामसी तीनो प्रकार की होती है। सात्विक श्रद्धा वाले देवताओं को, राजसी श्रद्धा वाले यक्ष ( जो यश, शौर्य प्रदान करते है ), राक्षसों ( जो सुरक्षा दे सके ) का पीछा करते है और तामसी श्रद्धा वाले भूत प्रेतों को पूजते है।
Shrimad Bhagavad Gita Chapter-18 (Part-18) in Hindi.mp3
भागवत गीता भाग १८ सारांश / निष्कर्ष :- संन्यास योग
यह गीता का समापन अध्याय है आरम्भ में ही अर्जुन का प्रश्न है प्रभो! मैं त्याग और संन्यास के भेद और स्वरूप को जानना चाहता हूँ। योगेश्वर श्रीकृष्ण ने इस पर प्रचलित चार मतों की चर्चा की। इनमे एक सही भी था। इससे मिलता जुलता ही निर्णय योगेश्वर श्रीकृष्ण ने दिया कि यज्ञ, दान और तप किसी काल में त्यागने योग्य नहीं है। ये मनुष्यों को भी पवित्र करने वाले है।
इन तीनो को रखते हुए इनके विरोधी विचारो का त्याग करना ही वास्तविक त्याग है। यह सात्विक त्याग है। फल की इच्छा के साथ त्याग राजस है, मोहवश नियत कर्म का ही त्याग करना तामस त्याग है और संन्यास त्याग की ही चरमोत्कृष्ट अवस्था है नियत कर्म और ध्यान जनित सुख सात्त्विक है। इन्दिर्यो और विषयों का भोग राजस है और तृप्ति दायक अन्न की उत्पति से रहित दु:खद सुख तामस है।