वृन्दावन के प्राचीन मंदिर जहाँ श्रीकृष्ण स्वयं प्रकट हुए
11. Shri Banke Bihari Ji / श्री बांकेबिहारी जी
स्थान जहाँ से मूर्ति मिली : वृंदावन के निधिवन से
स्थान जहाँ मूर्ति स्थापित है : वृंदावन
मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी को स्वामी श्री हरिदास जी की आराधना को साकार रूप देने के लिए श्री बांकेबिहारी जी की प्रतिमा निधिवन मे प्रकट हुई। स्वामी जी ने उस प्रतिमा को वहीं प्रतिष्ठित कर दिया। मुगलिया आक्रमण के समय भक्त इन्हें भरतपुर राजस्थान ले गए। वृंदावन में ‘भरतपुर वाला बगीचा’ नाम के स्थान पर वि. सं 1921 में मंदिर निर्माण होने पर बांकेबिहारी जी एक बार फिर वृंदावन मे प्रतिष्ठित हुए। तब से बिहारीजी यहीं दर्शन दे रहे है।
बिहारी जी की प्रमुख विषेश बात यह है कि इन की साल में केवल एक दिन (जन्माष्टमी के बाद भोर में) मंगला आरती होती है, जबकि अन्य वैष्णव मंदिरों में नित्य सुबह मंगला आरती होने की परंपरा है।
22. Shri Radha Raman Ji / श्री राधारमण जी
स्थान जहाँ से मूर्ति मिली : नेपाल की गंडकी नदी से
स्थान जहाँ मूर्ति स्थापित है : वृंदावन
श्री गोपाल भट्ट गोस्वामी जी को नेपाल की गंडक नदी मे एक शालिग्राम मिले। वे उस शालिग्राम को वृंदावन ले आए और केसीघाट के पास मंदिर मे प्रतिष्ठित कर दिया। एक दिन किसी दर्शनार्थी ने कटाक्ष कर दिया कि चंदन लगाए शालिग्राम जी तो एसे लगते है मानो जैसे कढ़ी में बैंगन पड़े हों। यह सुनकर गोस्वामी जी बहुत दुःखी हुए पर सुबह होते ही शालिग्राम से राधारमण जी की दिव्य प्रतिमा प्रकट हो गई। यह दिन वि. सं 1599 (सन् 1542) की वैशाख पूर्णिमा का था। वर्तमान मंदिर मे इनकी प्रतिष्ठापना सन् 1884 मे कि गई।
उल्लेखनीय है कि मुगलिया हमले के बावजूद यही एक मात्र ऐसी प्रतिमा है जो वृंदावन से कहीं बाहर नहीं गई। इसे भक्तों ने वृंदावन में ही छुपाकर रखा। इस मन्दिर की सबसे विषेश बात यह है कि जन्माष्टमी पर जहाँ दुनिया के सभी कृष्ण मंदिरो में रात्रि बारह बजे उत्सव होता है, वहीं राधारमण जी का जन्म अभिषेक दोपहर बारह बजे होता है। मान्यता है कि ठाकुर जी सुकोमल होते हैं इसलिए उन्हें रात्रि में जागना ठीक नहीं।
33. Shri Radhavallabh Ji / श्री राधावल्लभ जी
स्थान जहाँ से मूर्ति मिली : यह प्रतिमा हित हरिवंश जी को दहेज में मिली थी
स्थान जहाँ मूर्ति स्थापित है : वृंदावन
भगवान श्रीकृष्ण की यह सुदंर प्रतिमा हित हरिवंश जी को दहेज मे मिली थी। उनका विवाह देवबंद से वृंदावन आते समय चटथावल गाव में आत्मदेव नामक एक ब्राह्मण की बेटी से हुआ था। पहले वृंदावन के सेवाकुंज में (वि. सं 1591) और बाद में सुंदरलाल भटनागर द्वारा बनवाया गया लाल पत्थर वाले पुराने मंदिर में प्रतिष्ठित हुए। कुछ लोग इस मंदिर का श्रेय रहीम जी को भी देते है।
मुगलिया हमले के समय भक्त इन्हे कामा (राजस्थान ) ले गए थे। वि. सं 1842 में एक बार फिर भक्त इस प्रतिमा को वृंदावन ले आये और यहा नवनिर्मित मंदिर में प्रतिष्ठित किया। तब से राधावल्लभ जी की प्रतिमा यहीं विराजमान है।
44. Shri Govind Dev Ji / श्री गोविंददेव जी
स्थान जहाँ से मूर्ति मिली : वृंदावन के गौमा टीला से
स्थान जहाँ मूर्ति स्थापित है : जयपुर के राजकीय महल में
श्री रूप गोस्वामी जी को श्री कृष्ण की यह मूर्ति वृंदावन के गौमा टीला स्थान से वि.सं.1535 में मिली थी। रूप गोस्वामी जी उसी स्थान पर छोटी सी कुटिया में इस मूर्ति को स्थापित किया था। इसके बाद श्री रघुनाथ भट्ट गोस्वामी ने गोविंददेव जी की सेवा पूजा संभाली। उन्ही के समय में आमेर नरेश मानसिंह ने गोविंददेव जी का भव्य मंदिर बनवाया था, इस मंदिर में गोविंददेव जी 80 साल तक विराजे थे। औरंगजेब के शासन काल में बृज के मंदिरों पर हुए हमले के समय में गोविंद जी को उनके भक्त जयपुर ले गए। तब से गोविंदजी जयपुर के राजकीय महल के मंदिर में विराजमान हैं।
55. Shri Gopinath Ji / श्री गोपीनाथ जी
स्थान जहाँ से मूर्ति मिली : यमुना किनारे वंशीवट से
स्थान जहाँ मूर्ति स्थापित है : पुरानी बस्ती, जयपुर
भगवान श्रीकृष्ण की यह मूर्ति संत परमानंद भट्ट को यमुना जी के किनारे वंशीवट पर मिली और उन्होंने इस प्रतिमा को निधिवन के पास स्थापित कर मधु गोस्वामी जी को इनकी सेवा पूजा सौंपी। बाद में रायसल राजपूतों ने यहाँ मंदिर बनवाया पर औरंगजेब के आक्रमण के दौरान इस प्रतिमा को भी जयपुर ले जाया गया। तब से गोपीनाथ जी वहाँ पुरानी बस्ती स्थित गोपीनाथ मंदिर में विराजमान हैं।
66. Shri Madan Mohan Ji / श्री मदन मोहन जी
स्थान जहाँ से मूर्ति मिली : वृंदावन के कालीदह के पास द्वादशादित्य टीले से
स्थान जहाँ मूर्ति स्थापित है : करौली (राजस्थान ) में
मदन मोहन जी, यह मूर्ति अद्वैत प्रभु को वृंदावन के द्वादशादित्य टीले से प्राप्त हुई थी। उन्होंने सेवा पूजा के लिए यह मूर्ति मथुरा के एक चतुर्वेदी परिवार को दी थी बाद में सनातन गोस्वामी जी ने यह मूर्ति चतुर्वेदी परिवार से मांग कर वि.सं 1590 (सन् 1533) में फिर से वृंदावन के उसी टीले पर स्थापित किया। मुलतान के नामी व्यापारी रामदास कपूर और उड़ीसा के राजा ने यहाँ मदन मोहन जी का विशाल मंदिर बनवाया। मुगलिया आक्रमण के समय में भक्त इन्हे जयपुर ले गए पर कालांतर मे करौली के राजा गोपाल सिंह ने अपने राजमहल के पास बड़ा सा मंदिर बनवाकर मदनमोहन जी की मूर्ति को स्थापित किया। तब से मदनमोहन जी करौली में स्थापित हैं।
77. Shri Jugal Kishore Ji / श्री जुगलकिशोर जी
स्थान जहाँ से मूर्ति मिली : वृंदावन के किशोरवन से
स्थान जहाँ मूर्ति स्थापित है : पुराना जुगलकिशोर मंदिर, पन्ना (म .प्र)
भगवान जुगलकिशोर की यह मुर्ति हरिराम व्यास को वि. सं 1620 की माघ शुक्ल एकादशी को वृंदावन के किशोरवन नामक स्थान पर मिली। व्यास जी ने प्रतिमा को उसी स्थान पर प्रतिष्ठित किया। बाद मे ओरछा के राजा मधुकर शाह ने किशोरवन के पास मंदिर बनवाया। इस मंदिर में भगवान श्री जुगलकिशोर जी अनेक वर्षो तक विराजे पर मुगलिया हमले के समय उनके भक्त उन्हें ओरछा के पास पन्ना ले गए। आज भी ठाकुर जी पन्ना के पुराने जुगलकिशोर मंदिर मे दर्शन दे रहे है।