हिन्दू धर्म में पीपल को क्यों पूजा जाता है? आये जानते है
पीपल का वृक्ष भगवान विष्णु स्वरूप माना जाता है। सभी महात्मा जन इस वृक्ष की सेवा करते हैं और यह वृक्ष मनुष्यों के सभी पापों को नष्ट करने वाला है। इसके साथ ही पीपल में पितरों और तीर्थों का निवास भी होता है। यही वजह है कि पीपल के पेड़ की पूजा और पीपल का पेड़ लगाना शुभ और लाभकारी माना जाता है।
पीपल के वृक्ष के लिए स्कंद पुराण में एक सुंदर श्लोक है।
अश्वत्थमेकम् पिचुमन्दमेकम्
न्यग्रोधमेकम् दश चिञ्चिणीकान्।
कपित्थबिल्वाऽऽमलकत्रयञ्च
पञ्चाऽऽम्रमुप्त्वा नरकन्न पश्येत्।।
अश्वत्थः = पीपल (100% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)
पिचुमन्दः = नीम (80% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)
न्यग्रोधः = वटवृक्ष (80% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)
चिञ्चिणी = इमली (80% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)
कपित्थः = कविट (80% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)
बिल्वः = बेल (85% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)
आमलकः = आवला (74% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)
आम्रः = आम (70% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)
(उप्ति = पौधा लगाना)
अर्थात् – जो कोई इन वृक्षों के पौधो का रोपण करेगा, उनकी देखभाल करेगा उसे नरक के दर्शन नही करने पड़ेंगे। इस सीख का अनुसरण न करने के कारण हमें आज इस परिस्थिति के स्वरूप में नरक के दर्शन हो रहे हैं। अभी भी कुछ बिगड़ा नही है, हम अभी भी अपनी गलती सुधार सकते हैं। गुलमोहर और निलगिरी जैसे वृक्ष अपने देश के पर्यावरण के लिए घातक हैं।
पश्चिमी देशों का अंधानुकरण कर हमने अपना और अपने देश का बड़ा नुकसान कर लिया है। पीपल, बरगद और नीम जैसे वृक्ष रोपना बंद होने से सूखे की समस्या भी बढ़ रही है। ये सभी वृक्ष वातावरण में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाते है। साथ ही, धरती के तापनाम को भी कम करने में सहायक होते हैं।
हमने इन वृक्षों के पूजने की परंपरा को अन्धविश्वास मानकर फटाफट संस्कृति के चक्कर में इन वृक्षो से दूरी बनाकर यूकेलिप्टस (नीलगिरी) के वृक्ष सड़क के दोनों ओर लगाने की शुरूआत की। यूकेलिप्टस झट से बढ़ते है लेकिन ये वृक्ष दलदली जमीन को सुखाने के लिए लगाए जाते हैं। इन वृक्षों से धरती का जलस्तर घट जाता है। विगत ४० वर्षों में नीलगिरी के वृक्षों को बहुतायात में लगा कर पर्यावरण की हानि की गई है।
हिन्दू धर्म के शास्त्रों में पीपल को वृक्षों का राजा कहा गया है।
मूले ब्रह्मा त्वचा विष्णु शाखा शंकरमेवच।
पत्रे पत्रे सर्वदेवायाम् वृक्ष राज्ञो नमोस्तुते।।
भावार्थ -जिस वृक्ष की जड़ में ब्रह्मा जी तने पर श्री हरि विष्णु जी एवं शाखाओं पर देव आदि देव महादेव भगवान शंकर जी का निवास है और उस वृक्ष के पत्ते, पत्ते पर सभी देवताओं का वास है ऐसे वृक्षों के राजा पीपल को नमस्कार है। आगामी वर्षों में प्रत्येक 500 मीटर के अंतर पर यदि एक-एक पीपल, बड़, नीम आदि का वृक्षारोपण किया जाएगा, तभी अपना भारत देश प्रदूषणमुक्त होगा।
हमें अपने घरों में तुलसी के पौधे लगाने होंगे। हम अपने भविष्य में भरपूर मात्रा में नैसर्गिक ऑक्सीजन मिले इसके लिए आज से ही अभियान आरंभ करने की आवश्यकता है।
आइए हम पीपल, बड़, बेल, नीम, आंवला एवं आम आदि वृक्षों को लगाकर आने वाली पीढ़ी को निरोगी एवं “सुजलां सुफलां पर्यावरण” देने का प्रयत्न करें।