Magh Purnima Ka Mahatva Aur Vrat Katha

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Sharad Purnima Darshan Bhagwan Shri Radha Raman Ji
Sharad Purnima Darshan Bhagwan Shri Radha Raman Ji

माघ पूर्णिमा का महत्व और व्रत कथा

माघ मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को माघी पूर्णिमा कहा जाता है, जो विशेष धार्मिक महत्व रखती है। इस दिन का विशेष महत्व नदियों में स्नान करने और दान-पुण्य करने से जुड़ा हुआ है। शास्त्रों के अनुसार माघ पूर्णिमा के दिन नदियों में स्नान करने से माघ माहभर के स्नान का पुण्य प्राप्त होता है। इसे विशेष रूप से भगवान विष्णु के वास स्थान के रूप में जाना जाता है, और इस दिन भगवान सत्यनारायण की पूजा एवं कथा का आयोजन करना अत्यंत लाभकारी माना जाता है।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, माघी पूर्णिमा के दिन विशेष रूप से घर की सफाई, गंगाजल का छिड़काव, और तुलसी पूजा करना शुभ होता है। घर के द्वार पर आम के पत्तों का तोरण और हल्दी-कुमकुम का छिड़काव करने से घर में सुख-समृद्धि का वास होता है। इसके साथ ही दान का भी महत्वपूर्ण स्थान है। इस दिन तिल, घी, कंबल, फल, आदि का दान करके पुण्य अर्जित किया जाता है।

माघी पूर्णिमा का दिन विशेष रूप से भगवान श्री कृष्ण की पूजा का भी दिन है। भगवान श्री कृष्ण को सफेद फूल, सफेद मोती, और सफेद वस्त्र अर्पित करना इस दिन की विशेष पूजा विधि में शामिल है। इससे भगवान श्री कृष्ण की कृपा प्राप्त होती है, और जीवन में समृद्धि आती है।

माघ पूर्णिमा व्रत कथा

माघी पूर्णिमा के दिन एक प्रसिद्ध कथा भी जुड़ी हुई है, जिसमें एक ब्राह्मण दंपत्ति की कहानी है। कांतिका नगर में धनेश्वर नामक ब्राह्मण अपनी पत्नी के साथ रहता था, लेकिन उनके कोई संतान नहीं थी। एक दिन ब्राह्मणी को नगर में भिक्षा मांगने के दौरान ताने सुने और उसे बांझ कहकर भिक्षा देने से मना कर दिया गया। यह सुनकर वह अत्यधिक दुखी हुई और उसने किसी से सुना कि अगर वह 16 दिन तक मां काली की पूजा करेगी तो वह संतान सुख प्राप्त कर सकती है।

ब्राह्मणी और उसके पति ने पूरी श्रद्धा और नियमों के साथ मां काली की पूजा की। 16 दिनों के बाद, मां काली ने प्रसन्न होकर ब्राह्मणी को गर्भवती होने का वरदान दिया और साथ ही यह निर्देश दिया कि हर पूर्णिमा को दीपक जलाया जाए, और यह दीपक धीरे-धीरे बढ़ता जाए। जब तक दीपकों की संख्या 32 न हो जाए, तब तक यह पूजा और व्रत लगातार किया जाए।

ब्राह्मण दंपति ने माता काली के आदेशानुसार पूर्णिमा के दिन दीपक जलाना और व्रत करना शुरू किया। समय के साथ ब्राह्मणी गर्भवती हुई और उसने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम देवदास रखा। हालांकि देवदास की आयु कम थी, लेकिन जब उसे काशी भेजा गया, तो वहां एक दुर्घटना में उसका विवाह हो गया। कुछ समय बाद, जब काल देवदास की प्राण लेने आया, तो ब्राह्मण दंपति ने पूर्णिमा का व्रत रखा था। इस कारण काल ने देवदास का कुछ भी बिगाड़ा नहीं और उसे जीवनदान मिला।

यह कथा यह सिद्ध करती है कि माघी पूर्णिमा का व्रत व्यक्ति के जीवन में सुख, समृद्धि और संकटों से मुक्ति लाता है। इस दिन व्रत करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं और जीवन में सुख-शांति का वास होता है।

जय जय श्री राधे

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