ब्रह्माण्ड घाट गोकुल
ब्रज चौरासी कोस में हर स्थल का अपना एक धार्मिक एवं प्राचीन महत्व है। क्योंकि ब्रज चौरासी कोस में कदम – कदम पर भगवान श्रीकृष्ण व श्रीराधाजी के लीला स्थल हैं। जिन स्थलों के दर्शन कर श्रद्धालु अपना जीवन कृतार्थ (उद्धार) करते हैं। जहां भगवान श्रीकृष्ण को कहीं पेड़े, कहीं माखन-मिश्री, कहीं इलायचीदाना, कहीं रबड़ी, कहीं आलू की जलेवी, कहीं मिठाई आदि का भोग लगाया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं.. यमुना किनारे स्थित अत्यंत रमणीक स्थल “ब्रह्मांड घाट” पर ठाकुर जी को मिट्टी का भोग लगाया जाता है। क्यों? क्योंकि यहां गोप-बालकों के साथ खेलते हुए भगवान श्री कृष्ण ने मिट्टी खाई थी।
इसलिए भगवान की यह लीला अलौकिक और अत्यंत महत्वपूर्ण भी है। तत्पश्चात लीला के अंतर्गत भगवान श्रीकृष्ण ने मैया यशोदा को अपने मुख में समस्त ब्रह्माण्ड के दर्शन भी कराए। तब से यहां भगवान श्रीकृष्ण के स्वरूप ब्रह्मांड बिहारी प्रभु बिराजमान हैं जिनके दर्शन के लिए प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु आते हैं। और यमुना स्नान कर पूजा-अर्चना आदि भी करते हैं। भोग में रखने वाले मिट्टी के पेड़ा, बनाने के लिए वहां के स्थानीय व्यक्ति यमुना मैया (नदी) से मिट्टी लाते हैं। और उसे सुखाकर, कूटकर व छानकर साफ – शुद्ध करके पेडे तैयार करते हैं। उसी यमुना – ब्रज की रज से बने पेड़ों का ठाकुर जी को भोग लगाया जाता है और उसका प्रसाद लिया – दिया जाता हैं।

इसीलिए इस धार्मिक स्थल पर आने वाले श्रद्धालु उस मिट्टी (ब्रज रज) का सम्मान करते हैं क्योंकि भगवान श्रीकृष्ण ने इसे छुआ, इसमें लीलाएं की, इसे ग्रहण किया। भक्त मिट्टी से भरे पैकेट भी अपने साथ ले जाते हैं क्योंकि माना जाता है कि इसमें जादुई उपचार शक्तियाँ हैं, इससे सौभाग्य और सफलता मिलती है। मान्यता अनुसार इसे मलने से घातक बीमारियाँ भी ठीक हो जाती हैं। इसीलिए कहां जाता है, भगवान श्रीकृष्ण का ब्रज में एक ऐसा मंदिर जहां लगता है मिट्टी का भोग।
कैसे कान्हा ने मिट्टी खाने के बहाने मैया यशोदा को समस्त ब्रह्मांडों के दर्शन कराए। आइए शास्त्रानुसार थोड़ा विस्तार से जानते हैं…
एक बार की बात है पृथ्वी माता भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं के दर्शन करते हुए ठाकुर श्री बालकृष्ण प्रभु से प्रार्थना करती हैं कि जिस प्रकार प्रभु आप समस्त गोप, गोपी ब्रजवासियों को प्रसन्नता प्रदान करते हो, उनके साथ लीलाएं करते हो क्या? इसी प्रकार की कृपा थोड़ी मुझपर भी करोगे। तब भगवान श्रीकृष्ण ने पृथ्वी माता की खुशी के लिए, उन्हें सुख पहुंचाने के लिए मिट्टी खाने की लीला की।
एक समय की बात है बालकृष्ण प्रभु गोप-बालकों के साथ लुकाछिपी का खेल खेलते हुए एकांत में छिप गए और देखा मुझे कोई नहीं देख रहा तभी पृथ्वी माता को प्रसन्नता प्रदान करने के क्रम में उन्हें चूमा, जिसमें कुछ मिट्टी उनके मुख में अंदर और कुछ उनके मुख के ऊपर लग गई। जब इस दृश्य को कृष्ण भगवान के सखायों ने देखा और बलदाऊ दादा ने देखा तो उन्होंने समय व्यर्थ ना करते हुए मैया यशोदा के पास जाकर बता दिया।

यशोदा मैया ने वहां पर पहुँच कर श्रीकृष्ण का हाथ पकड़ लिया। उस समय श्रीकृष्ण की आँखें डर के मारे नाच रही थीं। यशोदा मैया ने डाँटकर पूछा-‘लाला क्या तूने मिट्टी खाई?’
भगवान के नेत्र में सूर्य और चन्द्रमा का निवास है। वे कर्म के साक्षी हैं। उन्होंने सोचा कि पता नहीं श्रीकृष्ण मिट्टी खाना स्वीकार करेंगे कि मुकर जायँगे। अब हमारा कर्तव्य क्या है। इसी भावको सूचित करते हुए दोनों नेत्र चकराने लगे।
मैया यशोदा बोली…
कस्मान्मृदमदान्तात्मन्, भवान् भक्षितवान् रहः।
वदन्ति तावका हेते, कुमारास्तेऽग्रजो ऽप्ययम्॥
अर्थ : ‘क्यों रे नटखट ! तू बहुत ढीठ हो गया है। तूने अकेले में छिपकर मिट्टी खायी? देख तो तेरे दल के सारे सखा क्या कह रहे हैं! तेरे बड़े भैया बलदाऊ भी तो उन्हीं की ओर से गवाही दे रहे हैं’। लाला कन्हैया ने उत्तर दिया- नहीं मैया! मैंने मिट्टी नहीं खाईं।
नाहं भक्षितवानम्ब, सर्वे मिथ्याभिशंसिनः।
यदि सत्यगिरस्तर्हि, समक्षं पश्य मे मुखम्॥
अर्थ : भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा- मैया! मैंने मिट्टी नहीं खायी। ये सब झूठ बोल रहे हैं। यदि तुम इन्हीं की बात सच मानती हो तो मेरा मुँह तुम्हारे सामने ही है, तुम अपनी आँखोंसे देख लो। जब मैया ने कन्हैया के मुख में देखा तो स्तब्ध रह गईं : मुख में देखा सब संसार।
जीव चराचर भूत त्रिलोकी, सागर द्वीप अपार।
नदियां गंगा यमुना ब्रज, निज शरीर घर द्वार।
यद्येवं तर्हि व्यादेहीत्युक्तः, स भगवान् हरिः।
अर्थ : मन-इन्द्रिय, पंचतन्मात्राएँ और तीनों गुण श्रीकृष्ण के मुख में दीख पड़े। अनगिनत ब्रह्मांड, ब्रह्मा, विष्णु, महेश आदि दिखाई दीख पड़े।
एतद् विचित्रं सह जीवकाल-स्वभावकर्माशयलिङ्गभेदम्।
सूनोस्तनौ वीक्ष्य विदारितास्ये, व्रजं सहात्मानमवाप शङ्काम्॥
अर्थ : जीव, काल, स्वभाव, कर्म, उनकी वासना और शरीर आदि के द्वारा विभिन्न रूपों में दीखने वाला यह सारा विचित्र संसार, सम्पूर्ण व्रज और अपने-आपको भी यशोदा जी ने श्रीकृष्ण के नन्हे से खुले हुए मुख में देखा। वे बड़ी शंका में पड़ गयीं।
किं स्वप्न एतदुत देवमाया, किं वा मदीयो बत बुद्धिमोहः।
अथो अमुष्यैव ममार्भकस्य, यः कश्चनौत्पत्तिक आत्मयोगः।।
अर्थ : वे सोचने लगीं कि ‘यह कोई स्वप्न है या भगवान् की माया? कहीं मेरी बुद्धि में ही तो कोई भ्रम नहीं हो गया है? सम्भव है, मेरे इस बालक कान्हा में ही कोई जन्मजात योगसिद्धि हो’। या किसीने कन्हैया पर जादू टोना तो नहीं कर दिया।
मैया यशोदा ने घर आकर ब्राह्मणों को बुलाया, इस दैवी प्रकोप की शान्ति के लिए स्वस्ति वाचन आदि अनुष्ठान कराए। ब्राह्मणों को गौदान और दक्षिणा आदि प्रदान की। श्रीकृष्ण के मुख में भगवत्ता के लक्षण स्वरूप अखिल सचराचर विश्व ब्रह्माण्ड को देखकर भी यशोदा मैया ने कृष्ण को स्वयं-भगवान के रूप में ग्रहण नहीं किया। उनका वात्सल्य प्रेम शिथिल नहीं हुआ, बल्कि और भी समृद्ध हो गया।
इस प्रकार अनेकों बार ब्रज में भगवान श्रीकृष्ण की भगवत्तारूप ऐश्वर्य का प्रकाश होने पर भी ब्रजवासियों का प्रेम शिथिल (कम) नहीं होता। वे कभी भी श्रीकृष्ण को भगवान के रूप में ग्रहण नहीं करते। उनका कृष्ण के प्रति मधुर भाव कभी शिथिल (कमजोर) नहीं होता। “दूसरी ओर श्रीकृष्ण का चतुर्भुज रूप दर्शन कर देवकी और वसुदेव का वात्सल्य-प्रेम और विश्वरूप दर्शन कर अर्जुन का सख्य-भाव शिथिल (कमजोर) हो गया था। ये लोग हाथ जोड़कर भगवान श्रीकृष्ण की स्तुति करने लगे थे।

तभी से इस जगह को ब्रह्मांड घाट के नाम से जाना जाता है। ब्रह्मांड दिखाने के कारण यहां मंदिर का नाम ब्रह्मांड बिहारी पड़ गया। जो कि यमुना नदी के किनारे स्थित है और श्रीकृष्ण के जीवन के एक विशेष प्रसंग को समर्पित है। मंदिर परिसर में एक पीपल का पेड़ भी है। मंदिर में आने वाली महिला भक्त अपने पति की लंबी उम्र की कामना करते हुए इसकी शाखाओं पर रंगीन रिबन भी बांधती हैं। स्थान की सुंदरता की बात करें तो यहां यमुना जी के घाटों का नवीनीकरण, सौंदर्यता भक्ति में और चार-चांद लगाती है।
बृजरज (माँटी) का महत्व:
मुक्ति कहे गोपाल सों, मेरी मुक्ति बताय।
ब्रज रज उड़ मस्तक लगे, तो मुक्ति मुक्त है जाय।।
प्रयोग : माँटी का प्रसाद घर ले जायें, सबको खिलावें, तिलक – चन्दन लगावें और जल मिला कर यमुनाजल – चरणामृत बनावें, पूजा स्थान में रखें।
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