पुरुषोत्तम मास परमा एकादशी और पद्मिनी एकादशी व्रत
पुरुषोत्तम मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को परमा एकादशी या हरिवल्लभ एकादशी के नाम से भी जानते हैं। इस दिन नरोत्तम भगवान विष्णु की पूजा से दुर्लभ सिद्धियों की प्राप्ति होती जाती है। जिस प्रकार संसार में चार पैर वालों में गौ, देवताओं में इन्द्रराज श्रेष्ठ हैं, उसी प्रकार मासों में पुरुषोत्तम मास श्रेष्ठ है। इस मास में पंचरात्रि अत्यन्त पुण्य देने वाली है। अधिक (पुरुषोत्तम) मास में दो एकादशी होती है वो परमा एकादशी और पद्मिनी एकादशी के नाम से जानी जाती है।
इस महीने में पुरुषोत्तम एकादशी श्रेष्ठ है। उसके व्रत से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और पुण्यमय लोकों की प्राप्ति होती है। इस दिन व्रत और दान को उत्तम बताया गया है।
परमा एकादशी व्रत कथा
काम्पिल्य नगरी में सुमेधा नाम का एक धर्मात्मा ब्राह्मण रहता था। उसकी धर्मपत्नी अत्यन्त पवित्र तथा पतिव्रता थी। पूर्व में किये किसी पाप के कारण यह दम्पति अत्यन्त दरिद्र था। सुमेधा की पत्नी अपने पति की सेवा करती रहती थी तथा अतिथि को अन्न देकर स्वयं भूखी रह जाती थी। एक बार सुमेधा अपनी पत्नी से बोला: हे प्रिये ! गृहस्थी धन के बिना नहीं चलती है इसलिए मैं परदेश जाकर कुछ उद्योग कर लेता हूँ।
ब्राह्मण पत्नी बोली: हे प्राणनाथ ! पति अच्छा हो या बुरा जो कुछ भी कहे, पत्नी को वही करना चाहिए। मनुष्य को पूर्वजन्म के कर्मों का फल मिलता ही है। विधाता ने भाग्य में जो कुछ भी लिखा है, वह टाले से नहीं टलता है। हे प्राणनाथ ! आपको कहीं भी जाने की आवश्यकता नहीं, जो कुछ भी भाग्य में होगा, वह यहीं मिल जायेगा। पत्नी की सलाह मानकर सुमेधा ब्राह्मण परदेश नहीं गया। एक दिन कौण्डिन्य मुनि उस जगह आये। उन्हें देखकर सुमेधा और उसकी पत्नी ने उन्हें प्रणाम किया और बोले: आज हम धन्य हुए ऋषिवर। आपके दर्शन से हमारा जीवन आज सफल हुआ। मुनिवर को उन्होंने आसन तथा भोजन दिया।
भोजन के पश्चात् ब्राह्मणी बोली: हे मुनिवर ! हमारे भाग्य से आप आ गये हैं। मुझे पूर्ण विश्वास है कि अब हमारी दरिद्रता शीघ्र ही नष्ट होने वाली है। आप हमारी दरिद्रता नष्ट करने के लिए कोई उपाय बतायें।
इस पर कौण्डिन्य महाऋषि बोले : “अधिक मास” की कृष्णपक्ष की “परमा एकादशी” व्रत करने से समस्त पाप, दु:ख और दरिद्रता आदि नष्ट हो जाते हैं। जो भी मनुष्य इस व्रत को करता है, वह धनवान हो जाता है। इस व्रत में हरीनाम कीर्तन, भजन आदि सहित रात्रि जागरण करना चाहिए। महादेवजी ने कुबेर को भी इसी व्रत के करने से धनाध्यक्ष बना दिया है।
फिर महाऋषि कौण्डिन्य ने उन्हें “परमा एकादशी” के व्रत की विधि कह सुनायी। मुनि बोले: हे ब्राह्मणी ! इस दिन प्रात: काल नित्यकर्म से निवृत्त होकर विधि पूर्वक पंचरात्रि व्रत आरम्भ करना चाहिए। जो मनुष्य इस एकादशी में पाँच दिनों तक निर्जल व्रत करते हैं, वे अपने कुठुभ सहित स्वर्गलोक को जाते हैं। हे ब्राह्मणी ! तुम अपने पति के साथ मिलकर इस व्रत को करो। इससे तुम्हें अवश्य ही सुख, सिद्धि और अन्त में स्वर्ग की प्राप्ति होगी।
कौण्डिन्य महाऋषि के कहे अनुसार उन्होंने “परमा एकादशी” का पाँच दिन तक व्रत किया। व्रत के समाप्त होने पर ब्राह्मण की पत्नी ने एक राजकुमार को अपने घर आते हुए देखा। उस राजकुमार ने ब्रह्माजी की प्रेरणा से उन्हें आजीविका के लिए एक गाँव और एक उत्तम घर जो कि सब वस्तुओं से परिपूर्ण था, रहने के लिए दान में दिया। दोनों इस व्रत के प्रभाव से इस लोक में अनन्त सुख भोगकर अन्त में स्वर्गलोक को चले गये।
परमा (हरिवल्लभ) एकादशी व्रत पूजन विधि
इस व्रत के दिन भगवान विष्णु का ध्यान करके उनके निमित्त व्रत रखना चाहिए। एकादशी व्रत करने वाले व्यक्ति को एकाद्शी के दिन प्रात: उठना चाहिए। प्रात:काल की सभी क्रियाओं से मुक्त होने के बाद उसे स्नान कार्य में मिट्टी, तिल, कुश और आंवले के लेप का प्रयोग करना चाहिए। इस स्नान को किसी पवित्र नदी, तीर्थ या सरोवर अथवा तालाब पर करना चाहिए। स्नान करने के बाद साफ वस्त्र धारण करने चाहिए व्रत करने वाले को घी का दीपक जलाकर फल, फूल, तिल, चंदन एवं धूप जलाकर भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। इस व्रत में विष्णु सहस्रनाम एवं विष्णु स्तोत्र के पाठ का बड़ा महत्व है। व्रत करने वाले को जब भी समय मिले इनका पाठ करना चाहिए। सात्विक भोजन करना चाहिए। सात्विक भोजन में मांस, मसूर, चना, शहद, शाक और मांगा हुआ भोजन नहीं करना चाहिए।
क्योकिं इस व्रत की अवधि अधिक होती है इसलिये कुछ कठिन होता है। परन्तु मानसिक रुप से स्वयं को इस व्रत के लिये तैयार करने पर व्रत को सहजता के साथ किया जा सकता है। इस व्रत से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और पुण्यमय लोकों की प्राप्ति होती है। जो लोग किसी कारण यह व्रत नहीं कर सकते उन्हें व्रत का पुण्य प्राप्त करने के लिए धर्मिक पुस्तक, अनाज, फल, मिठाई का दान करना चाहिए।