अपरा एकादशी व्रत कथा
हमारे देश में हिंदू धर्म के मानने वाले लोग एकादशी का व्रत रखा करते हैं। इस व्रत का हिन्दू धर्म में महत्वपूर्ण स्थान है। ज्येष्ठ मास कृष्ण पक्ष की एकादशी को ‘अपरा एकादशी’ या ‘अचला एकादशी’ कहा जाता है।
अपरा एकादशी व्रत कथा
महीध्वज नामक एक धर्मात्मा राजा था। राजा का छोटा भाई वज्रध्वज बड़े भाई से द्वेष रखता था। एक दिन अवसर पाकर इसने राजा की हत्या कर दी और जंगल में एक पीपल के नीचे गाड़ दिया। अकाल मृत्यु होने के कारण राजा की आत्मा प्रेत बनकर पीपल पर रहने लगी। मार्ग से गुजरने वाले हर व्यक्ति को आत्मा परेशान करती। एक दिन एक ऋषि इस रास्ते से गुजर रहे थे। इन्होंने प्रेत को देखा और अपने तपोबल से उसके प्रेत बनने का कारण जाना।
ऋषि ने पीपल के पेड़ से राजा की प्रेतात्मा को नीचे उतारा और परलोक विद्या का उपदेश दिया। राजा को प्रेत योनी से मुक्ति दिलाने के लिए ऋषि ने स्वयं अपरा एकादशी का व्रत रखा और द्वादशी के दिन व्रत पूरा होने पर व्रत का पुण्य प्रेत को दे दिया। एकादशी व्रत का पुण्य प्राप्त करके राजा प्रेतयोनी से मुक्त हो गया और इस पुण्य के प्रभाव से राजा की प्रेत योनि से मुक्त होकर ॠषि को धन्यवाद देता हुआ दिव्य देह धारण कर पुष्पक विमान में बैठकर स्वर्ग को चला गया।
श्रीकृष्ण ने बताया है महत्व
श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया कि अपरा एकादशी पुण्य प्रदाता और बड़े-बड़े पातकों का नाश करने वाली है। ब्रह्मा हत्या से दबा हुआ, गोत्र की हत्या करने वाला, गर्भस्थ शिशु को मारने वाला, परनिंदक, परस्त्रीगामी भी अपरा एकादशी का व्रत रखने से पापमुक्त होकर श्री विष्णु लोक में प्रतिष्ठित हो जाता है।
ऐसा मिलता है धार्मिक फल
माघ में सूर्य के मकर राशि में होने पर प्रयाग में स्नान, शिवरात्रि में काशी में रहकर व्रत, गया में पिंडदान, वृष राशि में गोदावरी में स्नान, बद्रिकाश्रम में भगवान केदार के दर्शन या सूर्यग्रहण में कुरुक्षेत्र में स्नान और दान के बराबर जो फल मिलता है, वह अपरा एकादशी के मात्र एक व्रत से मिल जाता है। अपरा एकादशी को उपवास करके भगवान वामन की पूजा से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है। इसकी कथा सुनने और पढ़ने से सहस्र गोदान का फल मिलता है।
एकादशी व्रत का पारण
एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना अति आवश्यक है। यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गयी हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के बाद ही होता है। द्वादशी तिथि के भीतर पारण न करना पाप करने के समान होता है।
एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिए। जो श्रद्धालु व्रत कर रहे हैं उन्हें व्रत तोड़ने से पहले हरि वासर समाप्त होने की प्रतिक्षा करनी चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि है। व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल होता है। व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्यान के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए। कुछ कारणों की वजह से अगर कोई प्रातःकाल पारण करने में सक्षम नहीं है तो उसे मध्यान के बाद पारण करना चाहिए।
कभी कभी एकादशी व्रत लगातार दो दिनों के लिए हो जाता है। जब एकादशी व्रत दो दिन होता है तब स्मार्त-परिवारजनों को पहले दिन एकादशी व्रत करना चाहिए। दूसरे दिन वाली एकादशी को दूजी एकादशी कहते हैं। संन्यासियों, विधवाओं और मोक्ष प्राप्ति के इच्छुक श्रद्धालुओं को दूजी एकादशी के दिन व्रत करना चाहिए। जब-जब एकादशी व्रत दो दिन होता है तब-तब दूजी एकादशी और वैष्णव एकादशी एक ही दिन होती हैं।
श्री हरी आपका दिन मंगलमय् करें