नन्दभवन (चौरासी खंभा मंदिर) श्रीधाम गोकुल
गोकुल के हृदय में स्थित मूल नंदभवन (मंदिर) असल में कब निर्मित हुआ, यह सवाल रहस्य बना हुआ है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसका निर्माण कार्य देवताओं के वास्तुकार श्री विश्वकर्मा (जिन्हें समय के आगमन से बहुत पहले ब्रह्मांड का दिव्य वास्तुकार माना जाता है।) ने करीब 5000 वर्ष पूर्व किया। लेकिन मुगल राजा औरंगजेब ने अपने शासनकाल के दौरान देश भर में हिंदू मंदिर विध्वंस गतिविधियों के तहत इस पर आक्रमण किया था। फिर बाद में मूल स्तंभों का उपयोग करके नंद महल का पुनर्निर्माण किया गया।
यहीं पास में भगवान श्रीकृष्ण और उनके भाई बलराम जी का नामकरण संस्कार निकट गौशाला में किया गया था। मैया यशोदा यहीं अपने कृष्ण कन्हैया के लिए भोजन और माखन तैयार करती थी। इसलिए स्तंभ (खंभा) इतने चिकने हैं कि आप माखन और कृष्ण के छोटे हाथों को महसूस कर सकते हैं।

यह मंदिर 84 खंभों पर टिका हुआ है इसलिए इसे “चौरासी खंभा मंदिर” भी बोला जाता है। मंदिर की दीवारें भगवान श्रीबालकृष्ण के बचपन के अद्भुत प्रसंगों को दर्शाती चित्रकारी से सजी हैं। पत्थर के खंभों पर बहुत सुंदर नक्काशी है जो उनकी खूबसूरती को और बढ़ाती है।
यहाँ आप देख सकते हैं कि मंदिर में 84 सीढ़ियाँ हैं, एक भी कम या ज़्यादा नहीं। क्योंकि अपने हिंदू धर्म के धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, संख्या 84 भौतिक दुनिया में जीवन की 84,00,000 (चौरासी लाख) प्रजातियों (योनियों) का प्रतीक है। इसलिए, जब उन्हें एक साथ लिया जाता है, तो माना जाता है कि ब्रह्मांड में मौजूद समस्त जीवन समाहित है।
मंदिर के प्रांगण में एक विशाल वट (बरगद) वृक्ष है। मंदिर में आने वाले भक्त इसकी शाखाओं पर मन्नत का धागा बांधते हैं, इस विश्वास के साथ कि इससे उनकी मनोकामना पूर्ण होंगी। वट वृक्ष के नीचे काली माता का मंदिर है। यहाँ देवी योगमाया के सुन्दर दर्शन हैं।

नंदभवन नन्द बाबा का घर था, रोहिणी जी ने बलराम जी को भी यहीं जन्म दिया, भगवान श्री कृष्ण और बलराम का पालन पोषण भी नन्द भवन में ही हुआ था। गोकुल में भगवान श्रीकृष्ण 11 साल 1 माह और 22 दिन रहे थे। उसके बाद अन्य लीलाओं को पूर्ण करने के लिए बरसाना के समीप नंदगांव चले गए।
गोकुल में भगवान श्रीकृष्ण और बलरामजी की अनेकों लीलाएं हुई हैं, उनमें से एक दिलचस्प लीला तब हुई जब भगवान शिव, विष्णु के आठवें अवतार श्रीबालकृष्णलाल को देखने गोकुल आए। लेकिन यशोदा मैया ने उन्हें कृष्ण को दिखाने से मना कर दिया। भगवान शंकर श्रीकृष्ण के बाल रूप को देखने का मौका नहीं खोना चाहते थे और उन्होंने यशोदा मैया से कहा कि अगर उन्हें कृष्ण को देखने की अनुमति नहीं दी गई तो वे वहीं समाधि ले लेंगे। पर जब भगवान श्रीकृष्ण को पता चला कि भगवान शिव नंद भवन में आ पहुंचे हैं तो वे बहुत रोने लगे। तब अंत में यशोदा मात ने भगवान शंकर की बात मानी और श्रीबालकृष्ण के दर्शन कराए। इस तरह गोकुल में हरि और हर का मिलन हुआ। दुनिया के रक्षक (विष्णु) और संहारक (शिव) का मिलन।

श्री नंदभवन की आध्यात्मिक ऊर्जा और शांति आगंतुक भक्तजनों को आध्यात्मिक आनंद अनुभव प्रदान करती है, लेकिन गाइड, मंदिर के पुजारी और अन्य व्यक्तियों के साथ संभावित बातचीत के बारे में सावधान रहना महत्वपूर्ण है जो भगवान के नाम पर दान मांग सकते हैं। इन छोटी-मोटी चुनौतियों के बावजूद, दिव्यता के साथ गहरा संबंध और भगवान श्रीकृष्ण के पवित्र घर को देखने का अवसर श्रीनंद भवन की यात्रा को वास्तव में यादगार अनुभव बनाता है।
[…] Nand Bhawan Temple Gokul […]