श्री गोकुलनाथ जी मंदिर गोकुल
श्री गोकुलनाथ जी मंदिर, मथुरा के गोकुल क्षेत्र में स्थित एक प्रमुख धार्मिक स्थल है, जो विशेष रूप से भक्तों के बीच अपनी आध्यात्मिक महिमा के लिए जाना जाता है। यह मंदिर भगवान श्री कृष्ण के बचपन से संबंधित कई कथाओं और लीलाओं से जुड़ा हुआ है, जिससे यह स्थल धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है।
मंदिर के भीतर भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति के दर्शन होते हैं, जो भक्तों को आध्यात्मिक शांति और आशीर्वाद प्रदान करती है। यहां की वास्तुकला और वातावरण भक्तों को एक दिव्य अनुभव प्रदान करते हैं।

श्री गोकुलनाथजी, चार भुजाओं वाला एक छोटा, सुनहरा श्री कृष्ण स्वरूप है, उनके दोनों ओर दो स्वामिनियां हैं, श्री राधा और श्री चंद्राबलि जी। उनके दाहिने उठे हुए हाथ में गिरिराज गोवर्धन है, जबकि उनके निचले बाएं हाथ में शंख है। वे अपने बाकी दो हाथों से मुरली बजाते हैं। श्री गोकुलनाथजी का यह रूप तब प्रकट हुआ जब श्रीकृष्ण ने समस्त व्रजवासियों की रक्षा के लिए गिरिराज गोवर्धन को उठाया (धारण किया) था।
श्री गोकुलनाथजी श्री वल्लभाचार्य जी की पत्नी के परिवार से ही थे और उन्हें विवाह के समय भेंट किया गया था। श्री गोकुलनाथजी 18वीं शताब्दी में निर्मित अपनी हवेली गोकुल धाम में ही निवास करते हैं। सबसे पहले सेवा श्री आचार्यचरण श्री महाप्रभुजी ने की थी। मूलआचार्य के सेव्य स्वरूप श्रीगोकुलनाथजी हैं। वर्तमान में यह चतुर्थ पीठाधीश्वर 108 श्री देवकीनंदनजी का सेव्य स्वरूप है। श्री गुसांईजी उनके रूप और लीला का वर्णन करते हुए कहते हैं।

श्री गोकुलनाथी ने अपने बाएं हाथ से गिरिराज गोवर्धन को उठाया और फिर उसे अपने दाहिने हाथ से थाम लिया और अपने अन्य दो हाथों से उनकी बांसुरी बजाते हुए सभी व्रजवासियों को अत्यंत आनंद से भर दिया। कभी-कभी वे अपनी बांसुरी के सिरे पर गिरिराजजी को भी धारण करते थे। श्री गोकुलनाथजी के निचले बाएं हाथ में शंख है, जो जल का दिव्य रूप है।
प्रतिवर्ष श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को यहां पाट उत्सव बहुत ही धूम धाम से मनाया जाता है।
मंदिर के मुख्य द्वार पर रुद्र कुंड है।
गोकुलनाथ जी मंदिर की यात्रा के लिए सबसे उपयुक्त समय अक्टूबर से अप्रैल तक का है, जब मौसम ठंडा और सुखद होता है। इस दौरान आप मंदिर के दर्शन के साथ-साथ आसपास के अन्य धार्मिक स्थलों की भी यात्रा कर सकते हैं।
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