रमणरेती गोकुल कथा, महिमा, इतिहास
रमणरेती वही स्थान है। जहाँ पर भगवान बालकृष्ण अपने गोप मित्रो के साथ में खेला करते थे। श्री कृष्ण का बाल रूप इसी मिट्टी में खेलते कुंदते हुये बिता है। इसी कारण जब भक्त लोग रमण रेती आते है तो वह श्री कृष्ण के स्पर्श को महसूस करते है। और इस ब्रजरज में लेट कर अपने को धन्य पाते है। यहां जो भी कृष्ण भक्त आता है, बिना रेत में लोटे नहीं जाता। क्योंकि मान्यता है कि भगवान कृष्ण ने बाल रूप में इस रेत पर लीलाएं की थीं। इसलिए भक्तों की आस्था कि इस रेत से बीमारियां दूर हो जाती हैं।

इस स्थान पर रमण बिहारी जी का मंदिर है। माना जाता है कि संत रसखान ने यहां तपस्या की थी। यहां पास ही में इनकी समाधि भी बनी हुई है। रमण बिहारी जी के प्राचीन मंदिर के जर्जर होने के कारण नए मंदिर में रमण बिहारी जी को विराजमान किया गया है। मंदिर में राधा कृष्ण की अष्टधातु की मूर्ति है। 1978 में आए बाढ़ से पहले रमण रेती में रेत ही रेत हुआ करती थी। मान्यता है कि किसी समय इस वन में एक सिद्घ संत आत्मानंद गिरि आए। जिनको भगवान श्री कृष्ण ने साक्षात् दर्शन दिए। इसलिए यह स्थान सिद्घ स्थान भी माना जाता है। यहां आने वाले दर्शनार्थी रमण रेती की मिट्टी से तिलक करके श्री कृष्ण के चरण रज को माथे से लगाने की अनुभूति करते हैं।

रमणरेती, गोकुल एक बड़ा विशाल रेतीला परिसर है। जहाँ श्री कृष्ण और राधाजी ने एक साथ अपनी कई लीलाएँ की थीं, भगवान श्री कृष्ण ने देवी राधा और श्री बलराम जी के साथ इस पर अपने पैर रखे थे। भगवान कृष्ण ने अपने ग्वाल बाल मित्रों और भाई बलराम के साथ यहां रेत में खेला था। क्योंकि रमण का अर्थ है दिव्य लीलाएं और रेती का अर्थ है रेत।

यहां ऋषियों की झोपड़ियाँ (संत आवास), सुंदर फूल और कदंब, पीपल आदि के वृक्ष की शोभा एवं सुंदर कृष्ण लीलाओं की कलाकृतियां भगवान श्रीकृष्ण की सुंदर सुंदर लीलाओं का स्मरण कराती हैं। यहां हिरण एवं पक्षी अभयारण्य का भी अद्भुत दृश्य है, जहाँ आप हिरणों को घूमते हुए और एमू व हंसों को तालाब में मस्ती करते हुए देख सकते हैं।

ऐसा माना जाता है कि रमण रेती की स्थापना 18 वीं शताब्दी के संत ज्ञानदासजी महाराज ने की थी। इसलिए इसे ज्ञानदासजी महाराज का तीर्थ स्थल भी बोला जाता है। एक बार जब रमण बिहारी (श्रीकृष्ण) खेल रहे थे, तब गोपियों ने उनकी गेंद चुरा ली। तब उन्होंने रेत की ही गेंद बना ली। इसलिए आज भी रेत की गेंद बनाकर एक-दूसरे को मारने से पुण्य मिलता है (सारे दुख दूर हो जाते हैं)।
- यहां लोग रेत का घर भी बनाते हैं। मान्यता है कि इससे ब्रज में अपना घर बनाने की इच्छा पूरी होती हैं।
- मंदिर के रेत में लोग नंगे पैर चलते हैं। कोई भी जूता, चप्पल पहनकर रेत में नहीं जा सकता है। क्योंकि रेत को पूजनीय माना जाता है।
- रेत में कंकड़ नहीं हैं। इसलिए नंगे पांव चलने से कोई असुविधा नहीं होती है और अच्छा लगता है।
- भक्त मानते हैं कि यहां की रेत को घुटने व जोड़ों में लगाने पर दर्द खत्म हो जाता है।
- मुंबई से आए अजय कुमार जी ने बताया- उनके घुटने में दर्द रहता था। लेकिन रेत को पैरों पर रखकर कुछ समय बैठकर उनका दर्द दूर हो गया। उन्होंने कहा कि पिछले साल भी ऐसा करने से पैरों का दर्द दूर हो गया था।





























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