किसान और जमींदार
एक बार की बात है। एक गरीब किसान एक जमींदार के पास गया और बोला –आप एक साल के लिए अपना एक खेत मुझे उधार दे दीजिये। मैं उस खेत में मेहनत करके अपने लिए अनाज उगाऊँगा। जमींदार एक दयालु व्यक्ति था। उसने उस किसान को एक खेत एक साल के लिए उधार दे दिया। साथ ही साथ उस किसान की मदद के लिए उसने पाँच व्यक्ति भी दिए। वह किसान उन पाँच व्यक्तियों को लेकर घर आ गया और उस खेत में काम करने लगा। एक दिन उस किसान ने सोचा। जब पाँच लोग इस खेत में काम कर रहे है तो मैं क्यों करूं?
किसान काम छोड़कर अपने घर वापस आ गया और मीठे- मीठे सपने देखने लगा। एक साल बाद मेरे खेत में आनाज ऊगेगा। उसे बेचने पर मेरे पास बहुत से पैसे आयेंगे और उन पैसों से मैं बहुत कुछ खरीदूँगा। उस किसान को जो पाँच व्यक्ति मिले थे। वे खेत में अपनी मर्जी से काम कर रहे थे। जब उनका मन करता था। वे खेत में पानी दे देते थे। जब मन करता था। वे खेत में खाद डाल देते थे। उस खेत में लगी फसल धीरे–धीरे बड़ी हो रही थी लेकिन वह किसान अपनी फसलों को देखने खेत में नहीं आया। वह हर रोज सपने देखता रहता था।
अब फसल काटने का समय आ चुका था। किसान अपने सपनों के साथ खेत में पहुँचा। फसल देखते ही वह चौंक गया क्योकि फसल अच्छी नहीं थी। उस फसल से उसे उतना पैसा भी नहीं मिल रहा था। जो उसने फसल उगाने में खर्च किया था।एक साल पूरा हो चुका था। वह जमींदार किसान से अपना खेत लेने वापस आया। उस जमींदार को देखकर वह किसान रोने लगा और फिर से एक साल का वक़्त माँगने लगा। किसान की बात सुनकर जमींदार बोला यह, मौका बार – बार नहीं मिलता। यह कहकर वह जमींदार वहाँ से चला गया।
वह दयालु जमींदार भगवान था। वह गरीब किसान हम सभी व्यक्ति है। वह खेत हमारा शरीर है। पाँच व्यक्ति जो किसान की मदद के लिए दिए गए थे। वे हमारी पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ है। अब आप इन पाँच ज्ञानेन्द्रियों का उपयोग किस तरीके से करते है, ये हम पर निर्भर है। एक समय ऐसा भी आयेगा। जब भगवान् हमसे यह शरीर वापस माँगेंगे। उस समय वह आपसे पूछेंगे–मैंने तुम्हे पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ दी। मुझे बताओ तुमने इनका किस तरीके से उपयोग किया। बात को गांठ बांध लीजिए यह मनुष्य जीवन बार – बार नहीं मिलता।
संदेश – मनुष्य जीवन एकमात्र उद्देश्य आत्म-साक्षात्कार करना है। मनुष्य की आत्मा परम सत्य को जानने के बाद जीवन मुक्ति की अधिकारी हो जाती है और मनुष्य इस संसार समुद्र से पूर्णतया मुक्त होकर पुनः संसार चक्र में नहीं फँसता।
जय जय सियाराम