भजन: मेरा गरीब खाना, तुमको बुला रहा है
मेरी अर्जी न ठुकराना, न और मुझे तरसाना ।
कभी आ भी जा घर मेरे, मेरा कोई सिवा न तेरे ।।
मेरा गरीब खाना, तुमको बुला रहा है।
दो पल ही, माँ आ जाओ, तुमको अग़र हो फुर्सात।।
दो पल ही, माँ आ जाओ, तुमको अग़र हो फुर्सात।
यह भगत तेरी राह में, पलकें बिछा रहा है।।
मेरा गरीब खाना…
माँ हो के बच्चों से तुम, यूँ दूर कैसे हो गई।
दुनियाँ की तुम हो मालिक, मजबूर कैसे हो गई।।
अनमोल नेम्तों से, सबको ही भर दिया है।
हम बदनसीबों से माँ, मुँह फेर क्यों लिया है।।
मायूस ज़िंदगी है, सर पे माँ हाथ रख दो।
देखो यह लाल तेरा, आँसू बहा रहा है।।
मेरा गरीब खाना…
पत्थरों में रहकर दिल क्यों, पत्थर सा कर लिया है।
इस लाडले का जीवन, काँटों से भर दिया है।।
रस्ते में अब न रुकना, कहीं देर हो न जाए।
तेरी देर से भवानी, अंधेर हो न जाए।।
दुनिया की बेरूखी का, क्यों कर गिल्ला करूँ।
अपना नसीब जब माँ, नजरें चुरा रहा है।।
मेरा गरीब खाना…
ये वक्त बेवफा है, जिसने है साथ छोड़ा।
अब तुम को क्या कहूँ माँ, तुम ने भी हाथ छोड़ा।।
ममता की तुम हो देवी, कुछ तो ख्याल करती।
मेरा कोई तो मैय्या, पुरा सवाल करती।।
तुम रहम की हो गंगा, कैसे यह मान लूँ मै।
तेरे होते जग ये मुझपे, बड़े ज़ुल्म ढाह रहा है।।
मेरा गरीब खाना…