Mahimamayi Brij Mandal

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Mahimamayi Brij Mandal
Mahimamayi Brij Mandal

महिमामयी ब्रजमण्डल

भगवान श्री कृष्ण कहते हैं

मेरे प्यारे मित्र, सखा, बंधु बृजवासियो में आप सभी को ये वचन देता हूं कि ब्रज को छोड़कर में कहीं नहीं जाऊंगा। अगर जाना भी पड़ा तो अनेकों रूपों में चला जाऊंगा लेकिन आपका कृष्ण कन्हैया आपके ही पास रहूंगा।

ब्रज तज अंथ न जायहों, ये हैं मेरे टेक।
भूतल भार उतारहों, धरयों रूप अनेक।

हे मेरे प्यारे ब्रजवासी, मित्र – सखायों आप सब हमेशा मेरे जीवन हो, प्राण हो जैसे मानव शरीर में से प्राण – आत्मा निकल जाने पर फिर उस देह का कोई असतित्व नहीं रहता ऐसे ही मेरा आप सभी से लगाव है, प्यार है, बंधन है। आप लोगों से में तनक भी दूर नहीं जाऊंगा मुझे नंद बाबा की कसम है

ब्रजवासी बल्लभ सदा, मेरे जीवन प्राण।
इन्हें तनक न बिसारियों, मोहे नंद बाबा की आन।।

रसखान जी ने ब्रज रज की महिमा बताते हुए कहा है

एक ब्रज रेणुका पै चिन्तामनि वार डारूँ।

वास्तव में महिमामयी ब्रजमण्डल की कथा अकथनीय है क्योंकि यहाँ श्री ब्रह्मा जी, शिवजी, ऋषि-मुनि, देवता आदि तपस्या करते हैं।

श्रीमद्भागवत के अनुसार श्री ब्रह्मा जी कहते हैं

भगवान्! मुझे इस धरातल पर ब्रज वृंदावन धाम में किसी साधारण जीव की योनि दे देना, जिससे मैं वहाँ की चरण-रज से अपने मस्तक को अभिषिक्त करने का सौभाग्य प्राप्त कर सकूँ।

भगवान शंकर जी को भी यहाँ गोपी बनना पड़ा

नारायण ब्रजभूमि को, को न नवावै माथ।
जहाँ आप गोपी भये श्री गोपेश्वर नाथ।

सूरदास जी ने लिखा है

जो सुख ब्रज में एक घरी, सो सुख तीन लोक में नाहीं।

बृज की ऐसी विलक्षण महिमा है कि स्वयं मुक्ति भी इसकी आकांक्षा करती है

मुक्ति कहै गोपाल सौ मेरि मुक्ति बताय।
ब्रज रज उड़ि मस्तक लगै मुक्ति मुक्त हो जाय॥

श्रीमद् भागवत कथा के अनुसार

उद्धव जी श्रीकृष्ण के प्रिय मित्र और साक्षात देवगुरु बृहस्पति के शिष्य थे। महामतिमान उद्धव वृष्णिवंशीय यादवों के माननीय मन्त्री भी थे।

बृजवासी गोप गोपियों की कृष्णभक्ति से उद्धव इतने प्रभावित हुए कि वे कहने लगे- “मैं तो इन बृजवासी गोप गोपियों की चरण रज की वन्दना करता हूँ। इनके द्वारा गायी गयी श्रीहरि कथा तीनों लोकों को पवित्र करती है। पृथ्वी पर जन्म लेना तो इन गोपांगनाओं का ही सार्थक है। मेरी तो प्रबल इच्छा है कि मैं इस ब्रज  में कोई वृक्ष, लता अथवा तृण बन जाऊँ, जिससे इन गोपियों की पदधूलि मुझे पवित्र करती रहे।”

ऊधौ मोहि ब्रज बिसरत नाहीं।
हंस-सुता की सुन्दर कगरी, अरु कुञ्जनि की छाँहीं।
ग्वाल-बाल मिलि करत कुलाहल, नाचत गहि – गहि बाहीं॥
यह मथुरा कञ्चन की नगरी, मनि – मुक्ताहल जाहीं।
जबहिं सुरति आवति वा सुख की, जिय उमगत तन नाहीं॥
अनगन भाँति करी बहु लीला, जसुदा नन्द निबाहीं।
सूरदास प्रभु रहे मौन ह्‍वै, यह कहि – कहि पछिताहीं॥

तो जिस ब्रज चौरासी कोस वृन्दावन धाम में आज भी ईश्वर भगवान श्री कृष्ण राधा रानी के साथ रहते हैं। आखिर कौन बिरला होगा जो उस भगवान ईश्वरीय शक्ति का रूबरू आनंद अनुभव नहीं लेना चाहेगा।

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