Pawan Vat Savitri Vrat Katha

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Pawan Vat Savitri Vrat Katha
Pawan Vat Savitri Vrat Katha

पावन वट सावित्री व्रत कथा

ज्येष्ठ मास की अमावस्या को वट सावित्री पर्व मनाया जाता है। इस दिन सौभाग्यवती महिलाएं अखंड सौभाग्य प्राप्त करने के लिए वट सावित्री व्रत रखकर वट वृक्ष तथा यमराज की पूजा करती हैं। सनातन हिंदू संस्कृति में यह व्रत आदर्श नारीत्व का प्रतीक है।

सावित्री कथा के बारे में जानने के लिए महाभारत के वनपर्व में प्रवेश करते हैं। देवी सावित्री की कृपा से राजा अश्वपति को एक सुकन्या प्राप्त हुई थी, इसलिए राजा ने उस कन्या का नाम सावित्री रखा था। जब सावित्री ने यौवनावस्था में कदम रखा , तो उसके पिता ने कहा – अपने योग्य कोई वर खोज लो। पिता की आज्ञा का का पालन करती हुई सावित्री वर ढूंढ़कर जब वापस आई, उस समय उसके पिता के साथ नारद जी बैठे हुए थे। सावित्री ने कहा कि मैंने शाल्वदेश के निष्कासित दृष्टिहीन राजा द्युमत्सेन के कुमार को पतिरूप से वरण किया है।

नारद जी ने कहा – इस कुमार के पिता सत्य बोलते हैं और माता भी सत्यभाषण ही करती हैं। इसी से ब्राह्मणों ने इस कुमार का नाम सत्यवान रखा है। सत्यवान गुणों का सागर है। उसमें केवल एक ही दोष है। वह यह कि आज से एक वर्ष बाद उसकी आयु समाप्त हो जाएगी और वह देह त्याग देगा।

यह सुनकर राजा अश्वपति ने अपनी पुत्री सावित्री को किसी दूसरे वर की खोज करने को कहा। तब सावित्री ने कहा – पिताजी ! जिसे मैंने एक बार वरण कर लिया , वह दीर्घायु हो या अल्पायु तथा गुणवान हो या गुणहीन – वही मेरा पति होगा। किसी अन्य पुरुष को मैं नहीं वर सकती, तब राजा ने अपनी पुत्री का विवाह सत्यवान से कर दिया। सावित्री अपने पति सत्यवान के साथ आश्रम में साधारण वेशभूषा में रहने लगी। जब उसने देखा कि अब चौथे दिन उनका देहांत हो जाएगा , तो उसने तीन दिन का व्रत धारण किया। इसलिए आज भी बहुत सी सौभाग्यवती महिलाएं तीन दिन का व्रत करती हैं।

चौथे दिन जब सत्यवान समिधा लाने को तैयार हुआ , तब सावित्री भी उसके साथ वन को चल पड़ी। लकड़ी काटते-काटते सत्यवान अस्वस्थ हो गया तथा सोने लगा। तब सावित्री वट वृक्ष (बरगद पेड़) की छाया में अपने पति के सिर को गोद में रखकर धरती पर बैठ गई। तभी वहां यमराज उपस्थित हुए। सावित्री ने धीरे से पति का सिर जमीन पर रख दिया और खड़े होकर कहने लगी – मैंने सुना है कि मनुष्य को लेने के लिए यमदूत आते हैं , परंतु आप स्वयं क्यों पधारे ? यमराज ने कहा – सत्यवान धर्मात्मा और गुणों का सागर है। यह मेर दूतों द्वारा ले जानेयोग्य नहीं है। अतः मैं स्वयं आया हूं।

जब यमराज सत्यवान के जीव को लेकर चला, तब सावित्री भी पीछे-पीछे चल पड़ी। यमराज ने सावित्री को वापस लौटने को कहा, पर सावित्री नहीं लौटी। तब सावित्री की दृढ़ता एवं अदम्य साहस को देखकर यमराज ने उससे सत्यवान के जीवन के अतिरिक्त वर मांगने को कहा। सावित्री के द्वारा चार वर मांगे गए थे। सत्यवान के द्वारा मेरे एक सौ पुत्र हों – यह चौथा वर सावित्री ने यमराज से मांग लिया।

विवश होकर एवं सावित्री की धर्मानुकूल गंभीर अर्थयुक्त बातों को सुनकर सत्यवान को यमराज ने अपने बंधन से मुक्त कर दिया। इस प्रकार अपने पातिव्रत्य से सावित्री ने अपने पति को वापस पा लिया। यमराज द्वारा प्रदत्त तीन वरों के फलस्वरुप सावित्री के अंधे ससुर को दृष्टि प्राप्त हो गई। वे पुनः राजा बने तथा सत्यवान युवराज बनाए गए। परवर्ती काल में सावित्री पुत्रवती हुई।

वैशम्पायन जी राजा जनमेजय को कहते हैं – जो व्यक्ति इस परम पवित्र सावित्री चरित्र को श्रद्धापूर्वक सुनेगा , वह समस्त मनोरथ के सिद्ध होने से सुखी होगा और कभी दुःख में नहीं पड़ेगा।

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