श्रीकृष्ण पर अटूट श्रद्धा की अद्भुत कहानी
हे कृष्ण गोविंद हरे मुरारी, हे नाथ नारायण वासुदेवा!
एक दिन एक वृद्धा सब्जी मंडी में आई। चेहरा थका हुआ था, कपड़े साधारण, पर आंखों में गहरी शांति थी। वो सीधे एक दुकानदार के पास गई और बड़ी विनम्रता से बोली, बेटा, घर में खाने को कुछ नहीं है। क्या थोड़ी सी सब्जी उधार दे दोगे?
दुकानदार चिढ़ गया, बोला – उधार? क्या है तुम्हारे पास देने को बदले में?
वृद्धा ने मुस्कुरा कर कहा – मेरे पास श्रीकृष्ण का नाम है।
दुकानदार हँस पड़ा, फिर मज़ाक में बोला – अच्छा! तो चलो, कुछ वजन तोलते हैं। रख दो श्रीकृष्ण को तराजू में, और जितना भारी पड़ेगा, उतनी सब्जी ले जाना!
वृद्धा ने अपनी फटी-पुरानी पोटली से एक छोटा सा कागज़ निकाला। उस पर कुछ लिखा और बड़े प्रेम से तराजू के एक पलड़े में रख दिया।
जैसे ही कागज़ रखा गया… चमत्कार! तराजू का वो पलड़ा भारी हो गया। दुकानदार ने थोड़ा-थोड़ा करके सब्जी डालनी शुरू की, लेकिन पलड़ा हल्का होने का नाम ही नहीं ले रहा था।
अंत में परेशान होकर उसने वो कागज़ उठाया और पढ़ा — हे श्रीकृष्ण! तू सब जानता है, अब सब कुछ तेरे भरोसे।
बस इतना ही लिखा था… पर दुकानदार स्तब्ध रह गया। कभी सोचा भी नहीं था कि किसी की आस्था इतनी गहरी हो सकती है कि भगवान खुद उसे तोलने आ जाएं।
पास खड़े एक ग्राहक ने धीमे से कहा – भाई, ये तराजू नहीं झुका है, ये भगवान की कृपा का पलड़ा है। श्रीकृष्ण जानते हैं सच्चे विश्वास का भार कितना भारी होता है।
सच्ची प्रार्थना कभी खाली नहीं जाती। ईश्वर से जुड़ने के लिए घंटों बैठना ज़रूरी नहीं, बस एक सच्चे दिल की पुकार चाहिए। माँगना ही नहीं, धन्यवाद देना भी प्रार्थना है। प्रार्थना मन के विकारों को धोती है, भीतर एक दिव्य ऊर्जा भर देती है।
जब भी प्रार्थना करें — ईर्ष्या, क्रोध, द्वेष जैसे भावों को मन से बाहर निकाल दें। तभी कृष्ण मुस्कराते हैं… और जीवन में चुपचाप चमत्कार हो जाता है।
जय श्री कृष्ण