गहवर वन, श्रीधाम बरसाना
गहवर शब्द का अर्थ दुर्गम, छिपा हुआ, गुप्त, घना, कंदरा, गुफा, देवालय
रसिक सन्त श्री नेह नागरीदास बाबा ने यहाँ वास करते हुए राधा कृष्ण की दिव्य लीलाओं को अनेकानेक सुन्दर पदों में गाया है। ठाकुर श्री बांकेबिहारी जी के प्राकट्यकर्ता स्वामी हरिदास जी ने भी गहवर वन की लीलाओं का अनेक प्रकार से वर्णन किया है।
जब बाबा नागरीदास जी से उनका कोई परिचय पूछता तो कुछ इस तरह वो अपने बारे में बताते….
सुन्दर श्री बरसानो निवास और बास बसों श्री वृन्दावन धाम है।
देवी हमारी श्री राधिका नागरी, गोत सौं श्री हरिवंश नाम है॥
देव हमारे श्रीराधिकावल्लभ, रसिक अनन्य सभा विश्राम है।
नाम है नागरीदासि अली, वृषभान लली की गली को गुलाम है॥
॥वृषभान लली की गली को गुलाम है॥
श्री स्वामी हरिदास जी के शब्द….
श्री स्वामी हरिदास की, सरिवर रसिक न और।
निरखै नित्यविहार सुख, सबही के सिरमौर।।
श्री रूप सखी, सिद्धांत के दोहा (36)
क्योंकि गहबर वन हमारी लाडली किशोरी श्री राधारानी की मधुर लीलाओं की ऐकान्तिक नित्यविहार स्थली है।
गहवर वन के बास की, आस करें शिव शेष।
याकी महिमा कौन कहे, यहाँ श्याम धरै सखी वेश॥
यह दिव्य वन उजड़ा हुआ पडा था। परन्तु विरक्त संत श्री रमेश बाबा के 46 वर्ष के संघर्ष के वाद यह आरक्षित वन घोषित हुआ। लेकिन फिर भी इसका स्वरूप दयनीय था। 2006-2010 में द ब्रज फाउण्डेशन ने इण्डियन ऑयल कॉरपोरेशन के आर्थिक सहयोग से इसका जीर्णोद्धार कराया। इसकी चार दीवारी, अन्दर के परिक्रमा मार्ग, ड्रिप-इरिगेशन व बैन्चों को बनवाया एवं कोलकाता के श्री कृष्णकुमार दम्माणी के आर्थिक सहयोग से यहाँ सखियों सहित जुगलजोडी के विग्रहों को स्थापित किया गया।
यहां राधा रानी का सिंहासन है।
राधा सरोवर भी यहां स्थित है।
नागरीदास बाबा की भजन कुटीर भी यहीं है।
यहीं जमीन में 10 फीट नीचे मिली पुरानी रासलीला स्थली भी है।
यहीं से मान मन्दिर के लिए रास्ता जाता है।
यहीं से राधा रानी मंदिर के लिए रास्ता जाता है।
बरसाना की दिव्य परिक्रमा का मार्ग भी यहीं से गुजरता है।
गहवरवन ब्रज क्षेत्र का वह अद्वितीय वन है, जिसमें श्यामा श्याम की लीलाओं के अनगिनत रहस्य छिपे हैं। यह दिव्य वन गहन और सघन होने के साथ-साथ दुर्गम और रहस्यमय भी है, इसलिए यह भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं का पसंदीदा स्थान था। इस घने जंगल में आज भी कई पेड़ हैं जो कृष्ण राधा की उपस्थिति को दर्शाते हैं। कहा जाता है कि यह जंगल परमपिता परमात्मा की अंतरंग लीलाओं का भी साक्षी रहा है। दिव्य रास लीलाओं के दौरान, गहवरवन का प्रत्येक पेड़ एक गोपी बन जाता था और दिव्य नृत्य के दौरान श्री राधा रानी और श्री कृष्ण को घेर लेता था।
परन्तु वन की खूबसूरती सिर्फ इसकी सघनता में ही नहीं बल्कि इसके आकार में भी है। वन का आकार सभी तीर्थयात्रियों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है। क्योंकि गहवरवन का आकार शंख के समान है। इस घने जंगल में कई तरह के पेड़, लताएँ और उपवन हैं। पेड़ों के कई जोड़े एक दूसरे से लिपटे हुए हैं। माना जाता है कि ये पेड़ श्री राधा कृष्ण स्वरूप हैं। इन पेड़ों को भगवान के रूप में देखा जाता है जो अंतरंगता के साथ नृत्य, गायन और रास करते हैं।
इस गहवर वन के आसपास कई प्रसिद्ध संतों के स्थान हैं। भजनानंदी संतों ने मधुर गीत गाकर श्री राधा कृष्ण की सेवा करने के लिए इस स्थान को चुना था और अपने तरीके से भगवान की स्तुति की थी। श्री वल्लभाचार्य जी ने भी यहां आसन लगाया था। क्योंकि पवित्र होने के साथ, यह ऐतिहासिक रूप से प्रसिद्ध पीठ भी है जहां महाप्रभु जी ने भगवान कृष्ण की स्तुति में अपने शिष्यों को श्रीमद् भागवत कथा भी सुनाई थी। एक शब्द में समझें तो यह वह स्थान है जो शांति और विश्वास की तलाश में यहां आने वाले प्रकृति प्रेमियों की आत्मा को सुकून देता है।
एक प्रसंग के अंतर्गत गहवर वन ही वो जगह है, जहां पहुंचकर श्री कृष्ण स्वयं को कृतार्थ मानने लगे थे। पहले श्री कृष्ण ने अपने को कृतार्थ नहीं माना था। जबकि बहुत अवतार हुए, बहुत सी लीलाएं हुईं, बहुत से उनके भक्त हुए, लेकिन गहवर वन बरसाना पहुंचकर वो खुद को धन्य मानने लगे थे। और राधा रानी भी इस जगह को बहुत पसंद किया करती थीं।
एक बार की बात है।
राधा रानी गहवर वन में खेल रही थीं और श्री कृष्ण उनको ढूंढ़ते-ढूंढ़ते नन्द गाँव से बरसाना गहबर वन जा पहुंचे। जब यहां पहुंचते हैं, तो ललिता सखी कहती हैं कि हे नन्दलाल आप कैसे आये यहाँ? श्याम सुंदर कहते हैं कि ललिता जी हम श्री राधा रानी के दर्शन के लिये आये हैं। ललिता जी कहती हैं कि अभी आपको दर्शन तो नहीं मिल पाएंगे, क्योंकि श्री किशोरी जी अभी महल से आई नहीं हैं। तो भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि आप लोगों ने हमारा नाम चोर रखा है, तो चोर से चोरी नहीं चलती है।
सखी ललिता जी पूछती हैं कि हमारी चोरी क्या है? श्री कृष्ण बोले अरे लाड़ली जी तो यहीं हैं। बोलीं, कैसे पता? भगवान कृष्ण बोले कि किशोरी जी जहां होती हैं, वहां उनके शरीर की महक चारों ओर फैल जाती है, और वो सुगन्ध बता देती है कि वो यहीं हैं. तुम नहीं छिपा सकती हो राधिका रानी को।
गहवर वन कोई बड़ा वन नहीं है, बहुत ही छोटा सा वन है, पर इसकी बड़ी विशेषता? ये दोनों राधा माधव के मन को हरन कर लेने वाला वन है। इसमें इतनी आकर्षण शक्ति क्यों हैं? क्योंकि स्वयं साक्षात राधारानी ने अपने हाथों से इस वन को बनाया है। सब लता, पताओं को अपने हाथों से लगाया है और इसे विलास रस से सींचा है। इसीलिए ये गहवर वन अत्यधिक महत्वपूर्ण वन है। ऐसा सौभाग्य किसी भी और ब्रज के वनको नहीं मिला जो गहवर वन को मिला। राधा रानी ने इसे अपने हाथों से बनाया, सजाया है इसलिए इस स्थान पर प्रिया प्रियतम आज भी नित्य लीला करते हैं।