सती के त्याग का गवाह है माया देवी शक्तिपीठ
माया देवी शक्तिपीठ उत्तराखंड के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल हरिद्वार में स्थित है। हरिद्वार में त्रिदेव वास करते हैं, लेकिन मोक्ष की इस नगरी में ही एक शक्तिपीठ भी है जो सती के त्याग का गवाह है। यह शक्तिपीठ सती के शिव के प्रति प्रेम का भी गवाह है। हरिद्वार का माया देवी शक्तिपीठ 51 शक्तिपीठों में से एक है, जहां सती की नाभि गिरी थी। ‘धर्मनगरी’ कहे जाने वाले हरिद्वार के मध्य स्थित माया देवी मंदिर, देवी के 51 शक्तिपीठों में सबसे प्रमुख है। हिन्दू धर्म के पुराणों के अनुसार जहाँ-जहाँ सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहाँ-वहाँ शक्तिपीठ अस्तित्व में आये।
ये अत्यंत पावन तीर्थ स्थान कहलाये। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं। ‘देवीपुराण’ में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है। देवनगरी हरिद्वार में पतित पावनी गंगा भक्तों के पाप धोती है। शिव की जटाओं से निकली मोक्षदायिनी गंगा के स्पर्श से महाकुंभ की इस नगरी का महत्व और ज्यादा बढ़ जाता है। कहते हैं यहीं ब्रह्मा, विष्णु और महेश वास करते हैं और इसी धर्म नगरी में बसा है वो स्थान जो सुनाता है सती के क्रोध और शिव का अपमान न झेल पाने के बाद सती के आत्मदाह की कहानी।
मान्यता
पौराणिक मान्यता के अनुसार जब सती ने अपने पिता के यज्ञ में अपने पति को नहीं बुलाए जाने से अपमानित होने पर आत्मदाह कर लिया था और अपने शरीर को वहीं सतीकुंड पर छोड़कर महामाया रूप में हरिद्वार के इसी स्थान पर आ गई थीं। इसीलिए इस जगह का नाम मां मायादेवी पड़ा। इसी के बाद से हरिद्वार को भी मायापुरी के नाम से जाना जाने लगा और ये स्थान देश की सात पुरियों में शामिल हो गया। माया देवी को हरिद्वार की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है, जिसका इतिहास 11 शताब्दी से उपलब्ध है। प्राचीन काल से माया देवी मंदिर में देवी की पिंडी विराजमान है और 18वीं शताब्दी में इस मंदिर में देवी की मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा की गई. इस मंदिर में धार्मिक अनुष्ठान के साथ ही तंत्र साधना भी की जाती है।
कथा
सती और शिव का संबंध अटूट है। भगवान भोले में बसती हैं सती और शक्ति के हृदय में रहते हैं शिव। लेकिन सती की अग्निसमाधि के बाद जब शिव, सती का शरीर लेकर समूचे ब्रह्मांड में भटक रहे थे तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। धरती पर ये टुकड़े जहां-जहां गिरे वो स्थान शक्तिपीठ कहलाए। उन 51 शक्तिपीठों में से एक है हरिद्वार का माया देवी मंदिर जहां गिरी थी सती की नाभि।
प्रचलित कथा के अनुसार, एक बार दक्ष प्रजापति ने हरिद्वार स्थित कनखल में यज्ञ किया। यज्ञ में शिव शंकर के अपमान से कुपित होकर माता सती ने हवनकुंड में आहुति दे दी। इस पर शिव शंकर व्यधित होकर पत्नी के वियोग में खो गए। कहते हैं कि वियोग में भोले शंकर सती के मृत शरीर को लेकर जगह-जगह भटकने लगे। इस पर विष्णु भगवान ने शिव शंकर के वियोग को समाप्त करने के लिए सुदर्शन चक्र से सती की मृत काया के 51 हिस्से कर दिए।
ये हिस्से जहां-जहां गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई। मान्यता है कि माया देवी मंदिर में सती की मृत काया की ‘नाभि’ गिरी थी और यह जगह माया देवी के रूप में विख्यात हुई। इसीलिए मायादेवी मंदिर को सभी 51 शक्तिपीठों में से प्रमुख शक्तिपीठ माना जाता है। मान्यता है कि इसी कारण इस पावन धरा का नाम ‘मायापुरी’ पड़ा। ब्रह्मपुराण में सप्त पुरियों को मोक्षदायिनी बताया है। इनमें मायापुरी भी शामिल है।
ऐतिहासिकता
माया देवी को हरिद्वार की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है, जिसका इतिहास 11 शताब्दी से उपलब्ध है। मंदिर के बगल में ‘आनंद भैरव का मंदिर’ भी है। पर्व-त्योहारों के समय बड़ी संख्या में श्रद्धालु माया देवी मंदिर के दर्शन करने को पहुंचते हैं। प्राचीन काल से माया देवी मंदिर में देवी की पिंडी विराजमान है और 18वीं शताब्दी में इस मंदिर में देवी की मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा की गई।
इस मंदिर में धार्मिक अनुष्ठान के साथ ही तंत्र साधना भी की जाती है। हरिद्वार में भगवती की नाभि गिरी थी, इसलिए इस स्थान को ब्रह्मांड का केंद्र भी माना जाता है। हरिद्वार की रक्षा के लिए एक अद्भुत त्रिकोण विद्यमान है। इस त्रिकोण के दो बिंदु पर्वतों पर मां मनसा और मां चंडी रक्षा कवच के रूप में स्थित हैं तो वहीं त्रिकोण का शिखर धरती की ओर है और उसी अधोमुख शिखर पर भगवती माया आसीन हैं।
पूजा-पाठ
मां के इस दरबार में मां माया के अलावा मां काली और देवी कामाख्या के दर्शनों का भी सौभाग्य भक्तों को प्राप्त होता है। जहां मां काली देवी माया के बायीं और तो वहीं दाहिंनी ओर मां कामाख्या विराजमान हैं। मां माया के आशीर्वाद से बिगड़े काम भी बन जाते हैं और सफलता की राह में आ रही बाधाएं दूर हो जाती हैं। मां के चमत्कारों की कहानी लंबी है और महिमा अनंत। मां माया के द्वार पर एक बार जो आ गया, वो फिर कहीं और नहीं जाता। मां माया देवी मंदिर के साथ ही भैरव बाबा का मंदिर भी मौजूद है और मान्यता है कि मां की पूजा तब तक पूर्ण नहीं मानी जाती, जब तक भक्त भैरव बाबा का दर्शन पूजन कर उनकी आराधना नहीं कर लेते।
भगवती की सुबह शाम होने वाली आरती में जो लोग शामिल होते हैं, वे अखंड पुण्य के भागी होते हैं। आरती की लौ में मां का असीम आशीर्वाद है और आरती के लौ की रौशनी जीवन के तमाम कष्टों का अंधियारा हर कर भक्तों के जीवन में खुशियों का उजियारा लाती है। मां माया देवी के पीठ पर शाम ढले हजारों लाखों भक्त मां के दर्शन करने, उनकी आरती में शामिल होने के लिए घंटों इंतजार करते हैं और जब ढोल, नगाड़ों व घंटे की आवाजों से मां का श्रृंगार और उनकी आराधना होती है तो भक्तों की हर कामना पूरी हो जाती है।
त्रिभुज
माया देवी शक्तिपीठ की एक विशेषता यह भी है कि मनसा देवी और चंडी देवी को मिलाकर यह एक अद्भुत त्रिभुज का निर्माण करता है। मान्यता है इस अद्भुत त्रिभुज का दिव्य लाभ भी यहां आने वाले भक्तों को प्राप्त होता है।
महत्ता
नवरात्र में भक्तजन यहां पर अपनी मनोकामना के साथ देवी मां का आशीर्वा लेते हैं। यह प्रमुख शक्तिपीठ है। नवरात्रों में यहां विशेष पूजा व हवन होता है। इसका आयोजन जूना अखाड़ा करता है। नवरात्र में मां मायादेवी मंदिर में भक्तों की तादाद बढ़ जाती है। यहां आने वाले भक्त मां शक्ति की आराधना करते हैं। माना जाता है कि मां मायादेवी मंदिर में पूजा कभी निष्फल नहीं जाती है। नवरात्रों के दौरान इस मंदिर में पूजा अर्चना का विशेष महत्व है।
यहां आने वाले भक्तों की मां मायादेवी मंदिर के प्रति अगाध श्रद्धा है और मान्यता है कि जिसने भी सच्चे मन से पूजा करके मां के दरबार में गुहार लगायी है, मां ने उसकी पुकार कभी अनसुनी नहीं की। भक्त मुरादें पूरी होने पर मां को श्रद्धा के फूल चढ़ाना भी नहीं भूलते। यूं तो मोक्ष की नगरी में अनगिनत मंदिर हैं, लेकिन मां माया का ये मंदिर अपने चमत्कारों की वजह से पूरे शहर में कुछ अलग ही स्थान रखता है। ये मां की महिमा और भक्तों का यकीन ही है कि यहां हरिद्वार से ही नहीं देश के दूसरे कोनों से भी भक्त उमड़ते हैं और मां के आगे शीश झुकाते हैं।
कैसे पहुँचें
माया देवी शक्तिपीठ हरिद्वार रेलवे स्टेशन से महज दो कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यहां ऑटो, रिक्शा, टेम्पो और तांगे से आसानी से पहुंचा जा सकता है।
बोलिए सच्चे दरबार की जय
सच्ची ज्योता वाली माता तेरी सदा ही जय
जय माँ माया देवी
जय जय श्री राधे।
श्री राधा- कृष्ण की कृपा से आपका दिन मंगलमय हो ।
श्री कृष्ण शरणम ममः