Krishna Ka Srnagat Arjun

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Krishna Ka Srnagat Arjun
Krishna Ka Srnagat Arjun

श्रीकृष्ण का शरणागत अर्जुन

महाभारत के युद्ध में ,कायरपने के भावावेश में आकर व्याकुल अर्जुन ने अपना क्षत्रिय धर्म छोड़ दिया , और विषम परिस्थितियों से घबरा कर उसने शंकर जी से प्राप्त अपना अजेय गांडीव धनुष भी धरती पर डाल दिया; किंकर्तव्यविमूढ़ हो अति कातर वाणी में वह श्री कृष्ण से बोला

“कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः —————–मां त्वां प्रपन्नं ”
(श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय .२ ,श्लोक – ७ )

भावार्थ

कायरपन से नष्ट हुआ मम सदस्वभाव है मोहित मन ने भुला दिया निज धर्म भाव है शरणागत हो, शिष्य बना मैं पड़ा सरन में निश्चित कहो, करूं क्या भगवन, मैं ऐसे में अर्जुन जब पूर्ण रूप से श्री कृष्ण के शरणागत हुआ तभी योगेश्वर ने अपने भ्रमित सखा को उसके लिए निश्चित कल्याणकारी सूत्र बतलाये! शरणागत होते ही कृष्ण ने उसे अपनाया और विशेष कृपा कर के उसका मार्ग-दर्शन किया, उसे दिव्य दृष्टि दी और पूर्णत: समर्पित हो कर अपना कर्म करते रहने की प्रेरणा दी और उसे विश्वास दिलाया कि

अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जना: पयुर्पासते !
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम् !!
(गीता ,अध्याय १८, श्लोक २२)

भावार्थ

जो जन मुझे भजते सदैव अनन्य भावापन्न हो !
उनका स्वयम मैं ही चलाता योग-क्षेम प्रसन्न हो !!
मत्कर्मकृन्मत्परमो मद भक्त : संग वर्जित: !
निरबैर: सर्व भूतेषु य: स मामेति पांडव :!!
(गीता – अध्याय ११ ,श्लोक ५५ )

भावार्थ मेरे लिए ही कर्म करते और मेरे भक्त हैं !
वे मिलेंगे मुझे जो जन वैरहीन विरक्त हैं!!

भक्तवत्सल श्रीकृष्ण ने तो अपने उपरोक्त आश्वासन से सभी उन शरणागत भक्तों के लिए निज धाम के द्वार खोल दिए जो पूर्ण निष्ठा व समर्पण के साथ अपना स्वधर्म निभातेहैं, निष्काम भाव से अपने सभी कर्तव्य कर्म तत्परता से करते हैं तथा जो सभी प्राणियों से प्रीति करते हुए भी पूर्णतः विरक्त हैं ,आसक्ति रहित हैं और जो पूर्णत :अपने इष्टदेव के आश्रित हैं !! भगवान ने ये मानव तन दिया, जो बहुत मूल्यवान है।

मानव तन पाकर भगवान का नाम लेना कोई आश्चर्य की बात नहीं, अपितु आश्चर्य की बात तो तब है, जब आप भगवान का नाम नहीं लेते। जिह्वा पाकर भी यदि भगवान का नाम नहीं जप पाये तो मानो आपने अपने सामने पड़ी स्वर्ग की सीढी छोड़कर नर्क रूपी सीढी पकड़ ली है। संसार की बातों मे कितना विश्वाश करते हो, और जब कार्य सिद्ध नहीं होता तो रोते हो संसार पर विश्वाश करके तो आप ने देख लिया लेकिन एक बार मेरे गोविंद पर विश्वाश करके तो देखो, आप को कभी रोना ही नहीं पड़ेगा।

दुनिया तो आप के आसुओं को देखकर अपने आसूं बहाती है, लेकिन मेरे प्रभु तो आप के आखो के आसुओं को पोंछते हैं। बंधुओं सच कहे तो संसार मे कड़वा पन है, चारों और केवल कड़वाहट है। लेकिन श्री हरी गोविंद पर विश्वास, उनके प्रति श्रद्धा, आप का धैर्य, हरि नाम जाप, भगवान की स्मृति आदि से यह कड़वा संसार भी मिठास से युक्त लगेगा। इसलिए भगवान के लिए अपना समय मत देखो। जब समय लगे तभी उसका नाम लो । उसीके नाम की औषधि से अपने जीवन को स्वस्थ करने का प्रयत्न करो । उसी के नाम मे ही हमारी भलाई है। जीवन का रस नीरस है, उसके नाम मे ही रस है।

एक घटना के अनुसार एक गुरु महाराज के पास एक व्यक्ति आया और कहने लगा की अब आप बूढ़े हो चलें हैं, अब तो शरीर भी अस्वस्थ है तो फिर आराम क्यों नहीं करते। गुरुदेव ने कहा भईया “बात तो तुम्हारी ठीक है पर क्या करूँ। भले ही शरीर का सारा बल घट जाए, लेकिन यदि मेरी श्रद्धा युवा है, तो इन सब के घटने से मेरा क्या घट जाएगा” इस संसार मे कोई और आश्रय नहीं, सब आश्रय की तलाश मे है, आश्रय पाना है तो मेरे गोविंद के चरणों मे जाना ही पड़ेगा।

हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे
बोलिये वृन्दावन बिहारी लाल की जय ।
जय जय श्री राधे।
श्री राधा- कृष्ण की कृपा से आपका दिन मंगलमय हो ।
श्री कृष्ण शरणम ममः

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