Sankari Khor Leela, Sankari Gali Barsana

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Sankari Khor Barsana Parikrama Marg
Sankari Khor Barsana Parikrama Marg

सांकरी खोर लीला, संकरी गली बरसाना

सांकरी गली वह गली है जिससे केवल एक – यानी एक गोपी ही निकल सकती है। और उस समय उनसे श्याम सुंदर दान लेते हैं। सांकरी खोर पर सामूहिक दान का नियम होता है। हमारे श्याम सुन्दर के साथ ग्वाल बाल भी आते हैं। कभी तो वे दही लूटते, कभी वे दही मांगते, और कभी वे दही के लिए प्रार्थना करते।

साँकरी खोर प्रार्थना मन्त्र:

दधि भाजन शीष्रा स्ताः गोपिकाः कृष्ण रुन्धिताः।
तासां गमागम स्थानौ ताभ्यां नित्यं नमश्चरेत।।

इस मन्त्र का तात्पर्य है कि गोपियाँ अपने सिर पर दही का मटका लेकर चली आ रही हैं और श्री कृष्ण ने उनको रोक रखा है। उस स्थान को प्रतिदिन प्रणाम करना चाहिए, जहाँ से गोपियाँ आ-जा रही हैं।

Sankari Khor Leela, Sankari Gali Barsana
Sankari Khor Leela, Sankari Gali Barsana

यहाँ जो ये राधारानी का पहाड़ है वो गोरा (सफेद) है। सामने वाला पहाड़ श्याम सुंदर – कृष्ण का है और वो शिला कुछ काली है। काले के बैठने से पहाड़ काला हो गया और गोरी के बैठने से कुछ गोरा हो गया। पहले राधा रानी की छतरी है, फिर श्याम सुंदर की छतरी है और नीचे मन्सुखा की छतरी है। यहाँ आज भी दान लीला होती है। यहाँ नन्दगाँव वाले जब दही लेने आये थे एकादशी में तो सखियों ने पकड़कर उनकी चोटी बांध दी थी। श्याम सुंदर की चोटी ऊपर बाँध दी और मन्सुखा की चोटी नीचे बांध दी।

मन्सुखा चिल्लाता है कि हे कन्हैया – लाला इन बरसाने की सखीन नै तो हमारी चोटी बांध दई हैं। जल्दी ते आके छुड़ा भाई, तो श्याम सुंदर प्रभु बोलते हैं कि अरे ससुरे मैं कहाँ ते छुड़ाऊं। मेरीउ तौ चोटी बंधी पड़ी है। राधा जी की सखियाँ ऐसे ही सबकी चोटी बाँध देती हैं। और फिर कहती हैं कि चोटी एसई नाय खुलेगी। राधा रानी की शरण में जाओ तब तुम्हारी चोटी खुलेगी। सब श्री जी की शरण में जाते हैं और प्रार्थना करते, अनुनय विनय करते। तब श्रीजी राधारानी की आज्ञा से सब की चोटी खुलती। राधा जी कहती कि इनकी चोटी खोल दो। मेरे श्याम सुंदर प्यारे को इतना कष्ट क्यों दे रही हो? समस्त गोपियां उपहास करते हुए कहती हैं कि ये चोटी बंधने के ही लायक हैं।

जानते हो इस लीला के बरसाने में कब दर्शन होते है? ये लीला आज भी परंपरा अंतर्गत भाद्रपद शुक्ल राधाष्टमी के बाद (एकादशी) यानि तीन दिन बाद होती है। तथा दधिदान लीला त्रयोदशी में होती है। उस दिन श्याम सुंदर मटकी फोड़ते हैं और नन्दगाँव से सब ग्वाल बाल आते हैं। श्री जी और सभी सखियाँ मटकी लेकर चलती हैं तो श्याम सुन्दर कहते हैं कि तुम दही लेकर कहाँ जा रही हो? तो सखियाँ कहती हैं कि ऐ दही क्या तेरे बाप कौ है? ऐसो पूछ रहे हो जैसे तेरे नन्द बाबा का है। दही तो हमारा है। वहाँ से श्याम सुंदर बातें करते हुए चिकसौली की ओर आते हैं और यहाँ छतरी के पास उनकी दही कि मटकी तोड़ देते हैं। जहाँ मटकी गिरी है वो जगह आज भी चिकनी है। भक्तजन अब भी दर्शन कर सकते है।

Sankari Khor Leela, Sankari Gali Barsana
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यहाँ बीच में (सांकरी खोर में) ठाकुर जी के हथेली व लाठी के चिन्ह भी हैं। ये सब 5000 वर्ष पुराने चिन्ह हैं। ये सांकरी गली दान के लिये पूरे ब्रज में सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है। वैसे तो श्याम सुंदर हर जगह दान लेते थे पर दान की ३ स्थलियाँ विशेष प्रसिद्ध हैं। जैसे …

बरसाने में सांकरी खोर
गोवर्धन में दानघाटी
व वृन्दावन में बंसी वट

पर इन सब में प्रसिद्ध सांखरी खोर है। क्योंकि एक तो यहाँ पर चिन्ह मिलते हैं और दूसरा यहाँ आज भी मटकी लीला चल रही है। राधाष्टमी के पांच दिन बाद नन्दगाँव के गोसाईं बरसाने में आते हैं। यहाँ आकर बैठते हैं उस दिन पद गान होता है।

(बरसानो असल ससुराल हमारो न्यारो नातो — भजन) मतलब बरसाना तो हमारी असली ससुराल है। आज तक नन्दगाँव और बरसाने का सम्बन्ध चल रहा है जो रंगीली होली के दिन दिखाई पड़ता है। सुसराल में होली खेलने आते हैं नन्दलाल और गोपियाँ लट्ठ मारती हैं। वो लट्ठ की मार को ढाल से रोकते हैं और बरसाने की गाली खाते हैं। यहाँ मंदिर में हर साल नन्दगाँव के गोसाईं आते हैं और बरसाने की नारियाँ सब को गाली देती हैं। इस पर नन्दगाँव के लोग कहते हैं “वाह वाह वाह !” इसका मतलब है कि और गाली दो। ऐसी यहाँ की प्रेम की लीला है। बरसाने की लाठी बड़ी खुशी से खाते हैं, उछल – उछल के और बोलते हैं कि जो इस पिटने में स्वाद आता है वो किसी में भी नहीं आता है। बरसाने की गाली और बरसाने की पिटाई से नन्दगाँव वाले बड़े प्रसन्न होते हैं | ऐसा सम्बन्ध है बरसाना और नन्दगाँव का।

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साँकरी खोर दान लीला

साँकरी खोर में गोपियाँ जा रही हैं। दही की मटकी है सर पर। वहाँ श्री कृष्ण मिले। कृष्ण के मिलने के बाद वो कृष्ण के रूप से मोहित हो जाती हैं और लौट के कहती हैं कि वो नील कमल सा नील चाँद सा मुख वाला कहाँ गया? अपनी सखी से कहती हैं कि मैं साँकरी खोर गयी थी।

सखी हों जो गयी दही बेचन ब्रज में, उलटी आप बिकाई।
बिन ग्रथ मोल लई नंदनंदन सरबस लिख दै आई री।
श्यामल वरण कमल दल लोचन पीताम्बर कटि फेंट री।
जबते आवत सांकरी खोरी भई है अचानक भेंट री।
कौन की है कौन कुलबधू मधुर हंस बोले री।
सकुच रही मोहि उतर न आवत बलकर घूंघट खोले री।
सास ननद उपचार पचि हारी काहू मरम न पायो री।
कर गहि वैद्य ठडो रहे मोहि चिंता रोग बतायो री।
जा दिन ते मैं सुरत सम्भारी गृह अंगना विष लागै री।
चितवत चलत सोवत और जागत यह ध्यान मेरे आगे री।
नीलमणि मुक्ताहल देहूँ जो मोहि श्याम मिलाये री।
कहै माधो चिंता क्यों विसरै बिन चिंतामणि पाये री ।।

तो एक गोपी पूछती है कि तू बिक गई? तुझे किसने खरीदा? कितने दाम में खरीदा? बोली मुझे नन्द नन्दन ने खरीद लिया। मुफ्त में खरीद लिया। मेरी रजिस्ट्री भी हो गई। मैं सब लिखकर दे आयी कि मेरा तन, मन, धन सब तेरा है। मैं आज लिख आयी कि मैं सदा के लिए तेरी हो गई।
मैं वहाँ गई तो सांवला सा, नीला सा कोई खड़ा था। नील कमल की तरह उसके नेत्र थे, पीताम्बर उसकी कटि में बंधा हुआ था। मैं जब आ रही थी तो अचानक मेरे सामने आ गया। मैं घूँघट में शरमा रही थी। उसने आकर मेरा घूँघट उठा दिया और मुझसे बोला है कि तू किसकी वधु है? किस गाँव की बेटी है? वो मेरा अता पता पूछने लग गया।

Sankari Khor Leela, Sankari Gali Barsana
Sankari Khor Leela, Sankari Gali Barsana

ये वही ब्रज वृंदावन धाम है प्यारे,
यहाँ चलते – चलते अचानक कृष्ण तुम्हारे सामने आ जाते हैं, इसीलिए तो लोग इस ब्रज में आते हैं।
ये वही ब्रज वृंदावन धाम है प्यारे,
जहां भगवान को ढूंढना नहीं पड़ता वो स्वयं दर्शन देते हैं।
ये वही ब्रज वृंदावन धाम है प्यारे,
लाज के मारे गोपी बोल नहीं रही हैं और कान्हा उनका घूँघट खोल रहे हैं, उनसे अता पता पूछ रहे हैं।
ये वही ब्रज है।

गोपी आगे कहती है कि जिस दिन से हमने उन्हें देखा है हमें सारा संसार जहर सा लगता है। कहाँ जाएं क्या करें? बस एक ही बात है दिन रात हमारे सामने आती रहती हैं। सोती हैं तो, जागती हैं तो उनकी ही प्यारी छवि रहती है हमारे सामने। कौन सी बात? किसकी छवि?
गोपाल की! नंदलाल की!

घर में सास ननद कहती हैं कि हमारी बहु को क्या हो गया है?
वैद्य बुलाया गया कि मुझे क्या रोग है? वैद्य ने नबज देखी और देखकर कहा सब ठीक है। कोई रोग नहीं है। केवल एक ही रोग है – चिंता।
कोई जो मुझे श्याम का रूप दिखा दे तो मैं उसको नीलमणि दूंगी। जो मुझे श्याम से मिला दे, मुझे मेरे प्यारे से मिला दे। उसे मैं सब कुछ दे दूंगी।
बरसाना (श्री गर्ग संहिता अध्याय १५) पृष्ठ ७८-७९

साँकरी खोर की एक और बहुत मीठी लीला सुनो

एक दिन की बात है कि राधा रानी अपने वृषभान भवन में बैठी थीं। श्री ललिता जी व श्री विशाखा जी गईं और बोलीं कि हे लाड़ली जी आप जिनका चिन्तन करती हो वो श्री कृष्ण – श्री नंदनंदन नित्य यहाँ वृषभानुपुर में आते हैं। वे बड़े ही सुन्दर हैं ! श्री राधा रानी बोलीं तुम्हें कैसे पता कि मैं किसका चिंतन करती हूँ? प्रेम तो छिपाया जाता है। ललिता जी व विशाखा जी बोलीं हमें मालूम है आप किनका चिन्तन करती हो। श्रीजी बोलीं कि बताओ किसका चिन्तन करती हूँ? देखो! कहकर उन्होंने बड़ा सुंदर चित्र बनाया श्री कृष्ण का। चित्र देखकर श्री लाड़ली जी प्रसन्न हो गयीं और फिर बोलीं कि तुम हमारी सखी हो। हम तुमसे क्या कहें?

चित्र को लेकर के वो अपने कक्ष – भवन में बिस्तर पर आराम करने लगती हैं और उस चित्र को देखते – देखते उनको नींद आ जाती है। स्वप्न में उनको यमुना का सुन्दर किनारा दिखाई पड़ा। वहाँ भांडीरवन के समीप श्री कृष्ण आये और नृत्य करने लग गये | बड़ा सुंदर नृत्य कर रहे थे की अचानक श्री लाड़ली जी की नींद टूट गई और वो व्याकुल हो गयीं। उसी समय श्री ललिता जी आती हैं और कहती हैं कि अपनी खिड़की खोलकर देखो। सांकरी गली में श्री कृष्ण जा रहे हैं। श्री कृष्ण नित्य बरसाने में आते हैं। एक बरसाने वाली कहती है कि ये कौन आता है नील वर्ण का अदभुत युवक नव किशोर अवस्था वाला, वंशी बजाता हुआ निकल जाता है।

आवत प्रात बजावत भैरवी मोर पखा पट पीत संवारो।
मैं सुन आली री छुहरी बरसाने गैलन मांहि निहारो।
नाचत गायन तानन में बिकाय गई री सखि जु उधारो।
काको है ढोटा कहा घर है और कौन नाम है बाँसुरी वालो कौ।

श्री कृष्ण आ रहे हैं। कभी-कभी वंशी बजाते-बजाते नाचने लग जाते हैं। इसीलिए उन्हें श्रीमद्भागवत में नटवर कहा गया है। नटवर उनको कहते हैं जो सदा नाचता ही रहता है। सखी ये कैसी विवश्ता है कि मैं अधर में खो गई और मिला कुछ नहीं। कौन है? कहाँ रहता है? बड़ा प्यारा है! किसका लड़का है? इस बांसुरी वाले का कोई नाम है क्या?

ललिता सखी कहती हैं कि देखो तो सही, श्री कृष्ण आ रहे हैं। आप अपनी खिड़की से देखो तो सही। वृषभानु भवन से खिड़की से श्री जी झांकती हैं तो सांकरी गली में श्री कृष्ण अपनी छतरी के नीचे खड़े दिखते हैं। उन्हें देखते ही उनको प्रेम मूर्छा आ जाती है। कुछ देर बाद होश में आकर ललिता जी से कहती हैं कि तूने क्या दिखाया? मैं अपने प्राणों को कैसे धारण करू?

ललिता जी श्री कृष्ण जी के पास जाती हैं और उनसे श्री जी के पास चलने का अनुग्रह करती हैं।

ये राधिकायाँ मयि केशवे मनागभेदं न पश्यन्ति हि दुग्धशौवल्यवत् |
त एव में ब्रह्मपदं प्रयान्ति तद्धयहैतुकस्फुर्जितभक्ति लक्षणाः ।।३२।।

तब श्री कृष्ण कहते हैं कि हे ललिते, भांडीरवन में जो श्री जी के प्रति प्रेम पैदा हुआ था वो अद्भुत प्रेम था। मुझमें और श्री जी में कोई भेद नहीं है। दूध और दूध की सफेदी में कोई भेद नहीं होता है। जो दोनों को एक समझते हैं वो ही रसिक हैं। थोड़ी सी भी भिन्नता आने पर वो नारकीय हो जाते हैं।
ये बात शंकर जी ने भी कहा है गोपाल सहस्रनाम में।

गौर तेजो बिना यस्तु श्यामं तेजः समर्चयेत् ।
जपेद् व ध्यायते वापि स भवेत् पातकी शिवे ।।

हे पार्वती! बिना राधा रानी के जो श्याम की अर्चना करता है वो तो पातकी है।

श्री कृष्ण बोले कि हम चलेंगे। उनकी बात सुनकर ललिता जी आती हैं और चन्द्रानना सखी से पूछती हैं कि कोई ऐसा उपाए बताओ जिससे श्री कृष्ण शीध्र ही वश में हो जाँय।
(“गर्ग संहिता” वृन्दावन खंड अध्याय १६)

ब्रज भक्ति विलास के मत में – बरसाने में ब्रह्मा एवं विष्णु दो पर्वत हैं। विष्णु पर्वत विलास गढ़ है शेष ब्रह्मा पर्वत है। दोनों के मध्य सांकरी गली है। जहाँ दधि दान लीला सम्पन्न होती है।
सांकरी – संकीर्ण एवं खोर – गली। सभी आचार्यों ने यहाँ की लीला गाई है।

श्री हित चतुरासी – ४९
ये दोउ खोरि, खिरक, गिरि गहवर, विरहत कुंवर कंठ भुज मेलि।

अष्टछाप में परमानंद जी ने भी सांकरी खोर की लीला गाई है।
परमानन्द सागर – २७३
आवत ही माई सांकरी खोरि।

हित चतुरासी – ५१
दान दै री नवल किशोरी।
मांगत लाल लाडिलौ नागर, प्रगत भई दिन- दिन चोरी ।।

महावाणी सोहिली से
सोहिली रंग भरी रसीली, सुखद सांकरी खोरि ।।

केलिमाल – पद संख्या ६२
हमारौ दान मारयौ इनि । रातिन बेचि बेचि जात ।।
घेरौ सखा जान ज्यौं न पावैं छियौ जिनि ।।
देखौ हरि के ऊज उठाइवे की बात राति बिराति
बहु बेटी काहू की निकसती है पुनि ।
श्री हरिदास के स्वामी की प्रकृति न फिरि छिया छाँड़ौ किनि ।।

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