मेरा एक परम भक्त था, लोग उसे पत्थर मार मार रहे थे
एक बार भगवान कृष्ण भोजन के लिये बैठे, राधा जी उनके पास ही बैठी थीं और पंखा कर रही थी। अभी भगवान ने पहला निवाला उठाया ही था कि पता नही क्या सोच कर भोजन छोड़ कर एक दम से महल के बाहर भागे, पीछे पीछे राधा जी भी भागीं। राधा जी को बहुत अचम्भा हुआ कि ऐसा क्या हुआ कि स्वयं दीना नाथ को भोजन छोड़ कर भागना पड़ा ? अभी सब लोग सोच विचार कर ही रहे थे कि कि भगवान वापस आते हुये दिखायी दिये, और आते ही वापस भोजन के लिये बैठ गये।
राधा जी के मुख पर प्रश्नवाचक भाव था। जब राधा जी को कुछ जवाब नही मिला तो भोजनोपरान्त उन्होने आखिर पूछ ही लिया ”नाथ आप का जाना और फिर रास्ते से ही वापस आना कुछ समझ नही आया।” भगवान मुस्कुराये और जबाब दिये कि ”मेरा एक परम भक्त था, लोग उसे पत्थर मार मार रहे थे, मै उसे बचाने के लिये भागा, पर मेरे पहुॅचने के पहले उसने स्वयं पत्थर हाथ मे ले लिया। जब वह स्वयं मुकाबले मे आ गया तो मेरी आवश्यकता ही समाप्त हो गयी और मै वापस आ गया।”
सही बात है, हमे लगता है कि हम सब कुछ करते हैं, और जब तक हम इस अहंकार मे रहते हैं, हमे सही मार्ग नही मिलता, हमे परमात्मा से सहयोग नही मिलता, हमे ज्ञान नही मिलता। जब आप अपना अहंकार , कि मै ही सब कुछ करता हॅू, भूल कर परमात्मा की शरण मे पूरी तरह आ जाते हैं तो फिर परमात्मा अपनी जिम्मेदारी समझ कर आप की रक्षा करता है, आप को मार्ग दिखाता है।
जीवन मे जब भी आप को कुछ समझ न आये, आप को रास्ता न मिले तो आप परमात्मा पर छोड़ कर देखिये। परमात्मा स्वयं तो नही आता, पर आप को रास्ता दिखाने के लिये किसी न किसी रूप मे आता अवश्य है, आप चाहें समझ सकें या न समझ सकें। असल मे जिस क्षण हम अहंकार शून्य होते हैं, उसी समय से परमात्मा की शरण मे आ जाते हैं।
बोलिये द्वारकाधीश महाराज की जय।
बोलिये वृन्दावन बिहारी लाल की जय।
जय जय श्री राधे।
श्री राधा- कृष्ण की कृपा से आपका दिन मंगलमय हो ।
श्री कृष्ण शरणम ममः