Chinta Nahin Bhagavat Chintan Kee Aavashyakata Hai

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Chinta Nahin Bhagavat Chintan Kee Aavashyakata Hai
Chinta Nahin Bhagavat Chintan Kee Aavashyakata Hai

चिन्ता नहीं भगवत्चिंन्तन की आवश्यकता हैँ

जो होनेवाला है, वह होकर ही रहेगा और जो नहीं होनेवाला है वह कभी नहीं होगा, फिर चिन्ता किस बात की ?

संत तुलसीदास जी कहते है
तुलसी भरोसे राम के निर्भय होके सोय |
अनहोनी होनी नहीं होनी हो सो होय ||
भावार्थ : ऐसा होना चाहिये और ऐसा नहीं होना चाहिये – इसमें ही सब दु:ख भरे हुये हैं |

अत: जिन्दगी की डोर सोंप हाथ दीनानाथ के |
महलों मे राखे चाहे झोंपडी में वास दे ||
भावार्थ : शरीर निर्वाह के लिये तो चिन्ता करने की जरूरत ही नहीं है, पर शरीर छूटने के बाद क्या होगा इसके लिये चिन्ता करने की बहुत जरूरत है |

संत तुलसीदास जी फिर कहते है
प्रारव्ध पहले रचा पीछे रचा शरीर|
तुलसी चिन्ता क्यों करे भज ले श्रीरघुवीर||
भावार्थ : चेत करो ! यह संसार सदा रहने के लिये नहीं है | यहाँ केवल मरने ही मरने वाले रहते हैं | फिर पैर फैलाये कैसे बैठे हो? भगवान का निरन्तर स्मरण करो यही सार है |

भगवान भोलेनाथ भगवती उमा से कहते हैं
उमा कहहुँ मैं अनुभव अपना |
सत हरि भजन जगत सब स्वप्ना ||
भावार्थ : इसी भगवत्स्मरण में लौकिक ,पारलौकिक सभी समस्याऔं का समाधान निहित है |
भगवान की स्मृति सभी विपत्तियों का तत्काल नाश करने वाली है | भगवान को याद करने से सब काम ठीक हो जाते है

इसलिये सच्चे हृदय से भगवान को पुकारिये | भगवान से एक ही बात कहिये कि हे प्रभु ! मैं आपको भूलूँ नहीं | ( आपको सदा स्मरण करता रहूं ) इसलिये मनुष्य को अपने विवेक को महत्व देना चाहिये क्यों कि शरीर और संसार प्रतिक्षण बदलते है, एक क्षण भी स्थिर नहीं रहते अत: यह भोग हमें कभी पूर्ण सुख नहीं दे सकते | प्रत्येक बस्तु प्रतिक्षण नाश की ओर जा रही है – इस बात को सीखना नहीं है प्रत्युत समझना है, अनुभव करना है | सच्चा अनुभव करने पर सुखासक्ति नहीं रहेगी |

तसर्थ: व्यर्थ चिंता छोडदीजिए,
भगवत चिंतन करिये और अपनी मानव देहका सदुपयोग भी

जय श्री सिता राम…जय श्री राधा माधव हरि हरि बोल…. !!
बोलिये वृन्दावन बिहारी लाल की जय।
जय जय श्री राधे।
श्री राधा- कृष्ण की कृपा से आपका दिन मंगलमय हो।
श्री कृष्ण शरणम ममः

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