तीन वन परिक्रमा
उत्तर प्रदेश के मथुरा में तीन वन की 18 कोसी ( 55 किलोमीटर ) परिक्रमा करने के लिए ब्रजवासियों एवं तीर्थयात्रियों में एक प्रकार से होड़ मच जाती है। किंवदंतियों के मुताबिक कंस के वध के प्रायश्चित के लिए भगवान श्रीकृष्ण यह परिक्रमा की थी। इस परिक्रमा में बृजधाम के मथुरा, गरुड़ गोविंद और वृंदावन स्थान आते है। यह परिक्रमा आधी रात के बाद प्रारंभ होती है।
मथुरा-वृन्दावन की परिक्रमा दो वन या जुगल-परिक्रमा कहलाती है। इसमें गरुड़-गोविन्द को भी परिधि में लेकर परिक्रमा करने पर उसे तीन वन की परिक्रमा कहते हैं। वृन्दावन-निवासी स्त्री-पुरुषों द्वारा कार्तिक शुक्ला नवमी (अक्षय नवमी) को तथा मथुरा-निवासियों द्वारा देवोत्थान एकादशी के दिन यह परिक्रमा सम्पन्न की जाती है।
मथुरा-परिक्रमा-मार्ग में सरस्वती कुण्ड से उत्तर-दिशा में मथुरा-दिल्ली-राजमार्ग पर चलते हुए परिक्रमार्थी गाँव छटीकरा स्थित गरुड़गोविन्द नामक स्थान पर पहुँचते हैं। यहाँ गरुड़ भगवान और श्रीविष्णुभगवान का प्राचीन मन्दिर है। यह प्रतिमा बङ्कानाभ द्वारा स्थापित बतायी जाती है।
वाराह पुराण, के अनुसार गरुड़जी यहाँ भगवान श्रीकृष्ण के दर्शनार्थ पधारे तो उन्हें सभी ब्रजवासी चतुर्भुजी विष्णु के रूप में दिखाई पड़े थे। बाद में भगवान श्रीकृष्ण ने बारह-भुजा विष्णु-स्वरूप का दर्शन देकर गरुड़ का भ्रम दूर किया।
ब्रह्मवैवर्त पुराण, के अनुसार एक बार गरुड़जी कालिया नाग को मारने के लिए उसका पीछा करते हुए यहाँ तक आये। किन्तु मार्ग में सौभरि ऋषि ने उन्हें रोकते हुए कहा कि मेरी इस तपस्थली में कालियनाग को मारोगे तो भस्म हो जाओगे। परिणामस्वरूप कालियनाग तो यमुना में जाकर सुख से रहने लगा और गरुड़जी इस स्थान पर उसकी प्रतीक्षा में डटे रहे।
अन्य भी कई कथाएँ इस प्राचीन-स्थल के विषय में पुराणों में मिलती हैं। गरुड़-गोविन्द के दर्शन के बाद परिक्रमार्थीगण वृन्दावन की ओर प्रस्थान करते हैं और रमणरेती से ही वृन्दावन परिक्रमा मार्ग पर चलते हुए भतरोड़ बिहारी, अश्वघाट, गणेशतीर्थ आदि मथुरा-वृन्दावन मार्ग के प्राचीन स्थलों का दर्शन करते हुए पुन: मथुरा-परिक्रमा की धारा में सम्मिलित हो जाते हैं।