क्यों कहते है कृष्ण को बाँके बिहारी
क्यों कहते है कृष्ण को बाँके बिहारी, जानिए राधा की सखी ललिता के पुनः जन्म से हैं
पौराण मे बाँके का अर्थ होता है टेढ़ा और बिहारी का मतलब होता है सबसे ज्यादा आनंद लेने या देने वाला, इन शब्दार्थो से इस नाम का काफी बड़ा सम्बन्ध है। दरअसल भगवान के शरीर में तीन जगह से टेढ़ापन था इसलिए उन्हें बांकेबिहारी के नाम से बुलाया जाता है इतना ही नही इसी कारण उनकी चाल नट की जैसी मतवाली होती थी। तभी से बाँके बिहारी नाम से वृन्दावन में मंदिर स्थित है जिसकी स्थापना स्वामी हरिदास ने की थी जो की राधा रानी की सखी ललिता के दूसरे जन्म के रूप में माने जाते है।
जन्म से ही वो सात्विक थे और भगवान कृष्ण के ध्यान में ही रहते थे, उद्धव को दिए श्राप के वजह से उन्हें भी वापस आना पड़ा था और इस जन्म में इस कारण वो शुरू से ही भक्त प्रवर्ति के थे। उनका जन्म अष्ठमी के दिन हुआ और उनकी पत्नी का राधाष्टमी के दिन, उनका जन्म श्री अशुधिर नाम के स्थान पे हुआ और वो गर्ग ऋषि के वंश से थे। जिन्होंने कृष्ण का नामकरण कराया था। अचानक एक दिन वो अपना गृह नगर छोड़कर वृन्दावन चले गए और वंहा पे बांकेबिहारी मंदिर बनवाया, वंही पास में ही निधिवन है।
जो की उनके आने के बाद ही चमत्कारिक हो गया। निधिवन में आज भी कृष्ण गोपियों संग रास लीला करते है और मंदिर में और इस वन में रात को किसी को प्रवेश की अनुमति नही है और अगर कोई ऐसा चोरी से भी जानें की कोशिश करता है तो या तो वो अँधा हो जाता है या फिर पागल निधिवन में जो पेड़ है वो रात में गोपियों का रूप धारण कर लेती है। इसलिए इन पेड़ो की डालो को भी कोई तोड़ता नही है और न ही कोई जाता है।
बोलिये वृन्दावन बिहारी लाल की जय ।
जय जय श्री राधे।
श्री राधा- कृष्ण की कृपा से आपका दिन मंगलमय हो ।
श्री कृष्ण शरणम ममः
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