Satsang Ka Prabhav Veshya Ka Hriday Hua Vishudh

0
70
Satsang Ka Prabhav Veshya Ka Hriday Hua Vishudh
Satsang Ka Prabhav Veshya Ka Hriday Hua Vishudh

सत्संग क प्रभाव वेश्या का हृदय हुआ विशुद्ध

रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने बंगला में एक सुन्दर खण्डकाव्य लिखा है। कबीर पर, उसके अनुसार कबीरदास जी मगहर में रहते थे और वहाँ के बाजार में कपड़ा बेचने आते थे। उनका बड़ा नाम हो गया था कि बहुत बड़े महात्मा हैं, इसलिये उनकी कुटिया पर भीड़ होने लगी। उनकी साधना में विघ्न पड़ने लगा। उन्हें अपने भगवान से एकान्त में बात करने का समय ही नहीं मिलता।

एक दिन उन्होंने मन ही मन भगवान से प्रार्थना की कि महाराज ! मुझे आप बचाइये। मैं तो दिन-रात भीड़ में ही फँसा रहता हूँ, कब मैं आपसे मिलू, कब आपसे एकान्त में बाते किया करूं। भगवान जी ने उनकी प्रार्थना सुन ली। और कुछ लोगों ने षडयन्त्र रचा और उसमें यह तय हुआ कि एक वेश्या को राजी किया जाय और वह वेश्या बीच बाजार में कबीर को जलील करे। जब कबीर कपड़ा बेचने बाजार में आये तो उस वेश्या ने आकर कबीर का पल्ला पकड़ लिया। जिन लोगों ने साजिश रची थी वे पहले से ही वहाँ खड़े थे।

वेश्या ने कहा कि नालायक ! तुमने इतने दिनों तक मुझे रखा और इस हालत में मुझे छोड़ दिया। सिखायी हुई दो-चार बातें और कहीं। कबीर हँस पड़े और मन-ही-मन सोचने लगे कि भगवान ने मेरी प्रार्थना सुन ली। वहाँ खड़े एकत्रित सभी लोग हँस पड़े और बोले-देखो इन महात्मा को। इनका यह रूप है। अब इनकी पोल खुल गयी। सभी लोग ताली पीटने लगे और उपहास करने लगे। जो वहाँ कबीर जी के भक्त थे, उन्हें भी शरम आयी। कोई उसमें शामिल हो गये और कोई भाग गये। कबीर का कोई साथी नहीं रहा। बाजार में कबीर को नमस्कार करने वाले सभी हट गये। वे अकेले रह गये, बचे बाकी सब हँसने वाले।

कबीर जी ने वेश्या से कहा-हाँ, ठीक तो है। मुझसे बड़ी भूल हो गई, अब तू मेरे साथ चल। इस पर सभी लोगों को विश्वास हो गया और बोले कि देखा सच्ची बात न होती तो ये विरोध करते, इनकार करते, साथ न ले जाते। कबीर जी उसे अपने साथ कुटिया पर ले गये और एक माला देकर बोले- बेटी ! माला फेर बैठी-बैठी। दूसरे दिन महात्मा के संग से उसके मन में चैतन्य आया कि राम-राम इतना बड़ा पाप किया। ये इतने बड़े विशुद्ध फकीर, जिनके मन में कोई वासना नहीं आयी और मैंने उन पर कलंक लगा दिया। उसने कबीर को प्रणाम किया और कहा-महाराज ! मुझे क्षमा करो। मैं बहुत बड़ी अपराधिनी हूँ, पापिनी हूँ। मुझे आज्ञा दो, मैं जाऊँ।

कबीर ने कहा कि तुम तो भगवान की भेजी हुई मेरी रक्षाकवच हो। मैं तुम्हें जाने नहीं दूंगा। तुम यहीं रहो और नाम जपो। वह नाम जपने लगी। उसका हृदय विशुद्ध हो गया। उस समय तार आदि थे नहीं। इसलिये यह खबर दूर तक नहीं फैली। मगहर में फैल गयी, परंतु बनारस तक नहीं पहुँची।
इसी समय काशी नरेश ने कबीर को बुलाने के लिये अपने मन्त्रियों को भेजा। वे जब आये तो कबीर ने कहा हम नहीं जायँगे। देख लो, हमारी तो यह हालत है। मन्त्रियों ने कहा कि आप नहीं जायँगे तो महाराज नाराज होंगे। इस पर कबीर मान गये लेकिन कहा कि जायँगे तो इसे साथ ले जायँगे। इस पर वे तैयार हो गये। तब उस वेश्या को साथ लेकर संत कबीर काशी पहुँचे।

रास्ते में लोग कबीर को देखने आते तो साथ में वेश्या को देखकर हट जाते। इससे कबीर ने सोचा कि देखो पिण्ड छूट रहा है नहीं तो यह भी रास्ते में साथ लग जाते। कबीर काशी नरेश के दरबार में पहुँचे। दरबार लगा हुआ था। कबीर को आते देख नरेश से, लोगों ने पहले ही कह दिया था कि उनके साथ एक स्त्री आयेगी। महाराज चौकन्ने थे ही। उनके साथ एक नवयुवती सुन्दर तरुणी को देखकर राजा ने इशारे से कहा-इन्हें दरबार से निकाल दो। कबीर बाहर निकलकर राजमार्ग पर आ गये। वेश्या के मन में बड़ा पश्चात्ताप हुआ। उसने सोचा कि राजमान्य कबीर जिनके चरणों में राजाओं के मुकुट पड़ते, उन कबीर को इस प्रकार अपमानित कराकर मैंने निकलवाया है। मेरे जीवन को धिक्कार है। वह उनके चरणों में पड़ गयी और कहा-महाराज ! मुझे क्षमा करो। मैं नहीं रहूँगी।

उन्होंने कहा तू अगर नहीं रहती तो मेरी रक्षा क्या यहाँ होती ? तूने मुझे बचाया, माँ ! तू मेरी माँ हैं। तू मेरी रक्षा करने वाली देवी हैं। तू मेरे लिये भगवान का भेजा हुआ उपहार है। ऐसा आदर्श हो। इस प्रकार से साधक को करना नहीं है। ऐसा करने पर कमजोर लोग गिर सकते हैं। यह कबीर के स्तर की बात है। इसकी नकल हम नहीं कर सकते हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here