गोपाल जी, एक महिला और बृजवासी की कहानी
कल दोपहर, मैं काम से बाजार में पंसारी की दुकान पर गया। मुझसे पहले उसकी दुकान पर एक महिला वहा पर खड़ी थी। उस महिला के हाथ में एक डलिया (टोकरी) में लड्डू गोपाल जी थे। हालांकि जो वस्तु मुझे चाहिए थी वह उनकी दुकान पर नहीं थी। परन्तु मैं डलिया में ठाकुर जी को देखकर रुक गया। मुझे गोपाल जी कुछ व्याकुल से देखे।
मैंने ठाकुर जी से पूछा:- ओर मेरी सरकार कहाँ घूम रहे हो आप ?
ठाकुर जी बोले:- मत पूछ बाबा, बाबा आजकल उनको कहा जाता है जो पूजा पाठ कथा आदि किया करते हैं।
ठाकुर जी बोले :- पिछले दो घंटे से बाजार में भूखा प्यासा घुमा रही हैं। प्यास के मारे मेरा कंठ सुखा जा रहा है। आपने स्वयं गन्ने का जूस पी लिया। दो प्लेट दही भल्ले भी खा लिए। और मेरी बारी मे अपरस की सेवा है।
मैंने कही :- सरकार जल की व्यवस्था तो मैं कर दुंगा। परन्तु इस महिला का कैसे करें। इस महिला के सामने कैसे जल पिलाऊँगा ?
ठाकुर जी बोले:- बाबा तू जल लेकर आ। मैं कुछ उपाय बताता हूँ। मैं पास मे ही एक दुकान पर गया और एक पानी की बोतल ले आया।
ठाकुर जी बोले :- अब इस महिला को बोल यह अपना पर्स चाट वाले की दुकान पर भूल कर आई है।
मैंने महिला से बोला :- आप अभी दही भल्ले खाकर आए हो क्या ? महिला इधर-उधर अपने कपड़े देखने लगी। वो सोच रही थी। कही मेरे कपड़ो पर कोई चटनी तो नहीं लगी है।
महिला ने मुझसे पूछा :- आपको कैसे पता ?
मैंने कहा :- जी मैं अभी उधर से ही आ रहा हूँ। वो चाट की दुकान वाला मेरा जानकार हैं। उसी ने मुझे बताया, कि बाबा एक महिला जिनके हाथ में ठाकुर जी हैं। यदि आपको दिखें तो उसको कहना कि वो अपना पर्स मेरी दुकान पर भूल गई हैं।
अब उस महिला की सांस रुक गई, वो कहने लगी :- हाय राम ! मेरे पर्स में तो कुछ गहने और दस हजार रुपये हैं। उसने आव देखा ना ताव गोपाल जी को पंसारी के काऊंटर पर रख तुरंत भागी। अब मुझे मोका मिल गया था। मैंने तुरंत पानी की बोतल खोली। उस समय तुलसी दल की व्यवस्था ना होने के कारण मैंने ठाकुर जी की कंठी माला से जल का स्पर्श करवाया और ठाकुर जी को जल धरा दिया।
ठाकुर जी बोले :- बाबा अब जान में जान आई। कुछ देर में वो महिला सामने से आती दिखाई दी।
मैंने ठाकुर से कही :- सरकार यदि आप की आज्ञा हो तो इसे दो चार अच्छी-अच्छी सुना दूँ ?
ठाकुर जी बोले :- रहने दे बाबा, तू किस-किस को सुनाएगा। यहाँ तो अधिकतर लोगों का यही हाल है। कहीं जाना हो तो हमे साथ में ले जाते हैं और खाने पीने घूमने का शौक किया करते हैं। मुझे तो अब आदत सी हो गई है। तू अब जा। यदि यहीं खड़ा रहा तो तेरा इससे झगड़ा हो जाएगा। मैं ठाकुर जी के कहने से आ तो गया। परन्तु मन सारा दिन व्याकुल रहा।
मेरा आप सभी से हाथ जोड़ कर विनर्म निवेदन करता है। की कहीं ऐसा तो नहीं कि आप भी ऐसा ही कर रहे हो। क्योंकि सेवा में किसी प्रकार का अपराध करने से तो अच्छा है कि सेवा ना ली जाए। क्यों झूठे हाथ, झूठे मुह, गंदी सड़को पर, मेरे ठाकुर को लेकर घूमते हो, केवल आडम्बर के लिए, एक दूसरे की देखा देखी। मत दुःखी करो यू डलिया मे ले जा कर, मेरे गोपाल जी को।