भगवान की सेवा के पाँच प्रकार
भगवान की सेवा के कई प्रकार हो सकते हैं, जो व्यक्ति के धार्मिक आदर्शों, संस्कृति और श्रद्धा के साथ जुड़े होते हैं। यह कुछ सामान्य प्रकार हो सकते हैं:
- पहले प्रकार की सेवा वह है जब तुम्हें पता भी नहीं चलता कि तुम सेवा कर रहे हो। तुम उसे सेवा की तरह नहीं देखते क्योंकि वह तुम्हारा स्वभाव है। तुम उसको करे बिना रह ही नहीं पाते ।
- दूसरे प्रकार की सेवा तुम इसलिए करते हो, क्योंकि वह उस परिस्थिति की ज़रूरत है।
- तीसरे प्रकार की सेवा तुम इसलिए करते हो क्योंकि यह तुम्हें आनन्द देती है।
- चौथे प्रकार की सेवा इसलिए की जाती है, क्योंकि तुम पुण्य कमाना चाहते हो। तुम भविष्य में किसी लाभ की अपेक्षा से सेवा करते हो।
- पाँचवे प्रकार की सेवा तुम केवल दिखावे के लिए करते हो, अपनी छवि को अच्छा करना चाहते हो और समाज या राजनीति में अपनी पहचान बनाना चाहते हो। इस प्रकार की सेवा से केवल थकान होती है जबकि प्रथम प्रकार की सेवा से बिल्कुल थकान नहीं होती।
भले ही तुमने जिस भी स्तर से सेवा प्रारम्भ की हे पर अपनी सेवा की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए तुम्हें उच्चतर स्तरों की ओर बढ़ना चाहिए।