श्री गोवर्धन गिरिराज जी की सम्पूर्ण परिक्रमा सात कोस 14 मील (21 किमी०) की है। कोई कोई भक्त अपनी सुविधा अनुसार गोवर्धन गिरिराज जी परिक्रमा को दो भागो में विभाजित कर दो दिन में लगाते हैं। इन दोनों परिक्रमा को छोटी व बड़ी परिक्रमा के नाम से जाना जाता है। परिक्रमा के मध्य में गोवर्धन गाँव पड़ता है। इसके उत्तर दिशा मे राधाकुण्ड गाँव एवं दक्षिण दिशा में पुछरी एवम् जतीपुरा गाँव स्थित है। गोवर्धन दानघाटी से आन्यौर, पूछरी, जतिपुरा होते हुए पुनः गोवर्धन आने की परिक्रमा बड़ी परिक्रमा कहलाती है। जो की चार कोस (12 किमी०) की होती है।

Govardhan Parvat

फिर गोवर्धन से उद्धव कुण्ड, राधाकुण्ड, कुसुम सरोवर होते हुए पुनः वापस गोवर्धन आने वाली परिक्रमा, छोटी परिक्रमा कहलाती है। यह परिक्रमा 3 कोस (9 किमी) में सम्पन्न होती है। परिक्रमा भक्त लोग अपनी इच्छा अनुसार देते है। इनमें से सम्पूर्ण परिक्रमा (सात कोस) एक ही दिन में एक साथ समाप्त करना अच्छा है। सप्तकोसीय श्री गोवर्धन गिरिराज जी परिक्रमा में बहुत सी छोटी-छोटी परिक्रमाएं है। जैसे मानसी गंगा, राधा कुण्ड, गोविन्द कुण्ड आदि।

Manasi Ganga Temple Goverdhan

श्री गोवर्धन गिरिराज जी परिक्रमा में अनेकों कुंड विद्यमान है जैसे कि…

राधा रानी चरणामृत कुंड, चरणामृत कुंड, दनी बर्तन कुंड, काशनी कुंड, संकर्षण कुंड, गोविंद कुंड, अप्सरा कुंड, ऐरावत कुंड, हरजी कुंड, रूद्र कुंड, उद्धव कुंड, ब्रह्मचारीमयम कुंड, राधा कुंड कृष्ण कुंड, कुसुम सरोवर, नारद कुंड, श्याम कुटीर, ग्वाल पोखरा, मानसी गंगा आदि अनेकों कुंड हैं। शास्त्रों की मान्यता अनुसार व ब्रजवासियों के कथन अनुसार तो श्री गोवर्धन गिरिराज जी परिक्रमा मार्ग में 108 कुंड विद्यमान है।

Govardhan Parvat Leela

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गोवर्धन परिक्रमा कितने किलोमीटर की है?

यह ७ कोस की परिक्रमा लगभग २१ किलोमीटर की है। मार्ग में पड़ने वाले प्रमुख स्थल आन्यौर, गोविन्द कुंड, पूंछरी का लोठा जतिपुरा राधाकुंड, कुसुम सरोवर, मानसी गंगा, दानघाटी इत्यादि हैं।

गोवर्धन परिक्रमा कब की जाती है?

प्रत्येक महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी से पूर्णिमा तक। कुसुम सरोवर, चकलेश्वर महादेव, जतीपुरा, दानघाटी, पूंछरी का लौठा, मानसी गंगा, राधाकुण्ड, उद्धव कुण्ड आदि। भगवन श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी अंगुली पर धारण किया था। गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा २१ किलोमीटर की है।

गोवर्धन परिक्रमा क्यों लगाई जाती है?

गोवर्धन पर्वत को गिरिराज पर्वत के नाम से भी जाना जाता है। गोवर्धन पर्वत की पूजा के पीछे भी धार्मिक कहानी प्रचलित है। मान्यता है कि एक बार इंद्र ने ब्रज क्षेत्र में घनघोर बारिश की। तब लोगों को बचाने के लिए भगवान कृष्ण ने इसे कनिष्ठा यानी सबसे छोटी उंगली पर उठा लिया।

गोवर्धन की परिक्रमा का क्या महत्व है?

कहा जाता है कि गोवर्धन पर्व के दिन मथुरा में स्थित गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। कहा जाता है कि इस दिन मथुरा में स्थित गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा और पूजा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस पर्वत को श्री गिरिराज जी भी कहा जाता है।

गोवर्धन पर्वत की ऊंचाई कितनी है? / गोवर्धन पर्वत कितना बड़ा है?

पांच हजार साल पहले यह गोवर्धन पर्वत 30 हजार मीटर ऊंचा हुआ करता था और अब शायद 30 मीटर ही रह गया है। पुलस्त्य ऋषि के शाप के कारण यह पर्वत एक मुट्ठी रोज कम होता जा रहा है। इसी पर्वत को भगवान कृष्ण ने अपनी चींटी अंगुली पर उठा लिया था। श्रीगोवर्धन पर्वत मथुरा से 22 किमी की दूरी पर स्थित है। गोवर्धन पर्वत को गिरिराज पर्वत भी कहा जाता है।

गिरिराज जी की परिक्रमा में कितनी भीड़ है?

सदियों से यहाँ दूर-दूर से भक्तजन गिरिराज जी की परिक्रमा करने आते रहे हैं। यह ७ कोस की परिक्रमा लगभग २१ किलोमीटर की है। मार्ग में पड़ने वाले प्रमुख स्थल आन्यौर, राधाकुंड, कुसुम सरोवर, मानसी गंगा, गोविन्द कुंड, पूंछरी का लोटा, दानघाटी इत्यादि हैं।