कंस किला, स्वामी घाट, विश्राम घाट, श्री पुपलेश्वर महादेव, श्री दाउ जी घाट, श्री वटुकभेरब जी, बंगाली घाट, (धुर्व) घाट, ऋषि घाट, श्री रंगेश्वर महादेव मंदिर, पुराना बस स्टैंड, पुरातत्व (संघ्रालाये), के. आर. डिग्री कॉलेज से होते हुये। कंकाली टीले पर श्री कंकाली देवी मंदिर, श्री जन्गनाथ बलभद्र कुण्ड, श्री कृष्ण बलराम मंदिर, श्री भुतेश्वर महादेव मंदिर, श्री गन्धेश्वर कुण्ड, पोतरा कुण्ड, श्री कृष्ण जन्मभूमि, श्री महाविधा देवी मंदिर, श्री सरस्वती देवी मंदिर एवं कुण्ड, रामलीला मैदान, श्री चामुंडा देवी मंदिर, श्री गायत्री तपोभूमि, श्री गोकरण महादेव मंदिर, श्री नीलकंठ महादेव मंदिर, वामनदेव घाट, चक्रतीर्थ एवं चक्रेश्वर महादेव मंदिर, अमवरिश घाट, कृष्ण गंगा घाट, श्री राधा मदन गोपाल जी मंदिर, कंस घाट, चिन्ताहरण महादेव मंदिर, श्री कन्सेश्वर महदेव मंदिर, वहा से कंस किले पर आ कर परिक्रमा समाप्त करता हूँ।
यह परिकर्मा किसी भी स्थान से किसी समय प्रारंभ सकते है। लेकिन जिस स्थान से परिक्रमा प्रारंभ होती है। पुनः उसी स्थान पर परिक्रमा समाप्त करनी चाहिऐ।
मथुरा-परिक्रमा-माहात्म्य
मथुरा में स्नान, देवदर्शन तथा परिक्रमा– ये तीन ही मुख्य कर्म हैं, जिनके विषय में पुराणों में बड़ी महिमा मिलती है।
मथुरां समनुप्राप्य यस्तु कुर्यात् प्रदक्षिणम्।
प्रदक्षिणीकृता तेन सप्तद्वीपा वसुन्धरा।।
(बाराह पुराण : १५९/९४)
अर्थात्: मथुरा की परिक्रमा करने पर सातों द्वीपों वाली इस पृथ्वी की परिक्रमा करने के सदृश फल प्राप्त हो जाता है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार हरिशयनी एकादशी के बाद चार मास के लिए सातों द्वीपों के पुण्यमय तीर्थ और मन्दिर मथुरा में ही निवास करते हैं। अत: देवशयनी और देवोत्थापनी एकादशी को मथुरा-परिक्रमा की आदि-परम्परा रही है। अनेक श्रद्धालुजन इन दोनों तिथियों को मथुरा सहित गरुड़-गोविन्द और वृन्दावन की परिक्रमा भी करते रहे हैं।
वैसाख शुक्ला पूर्णिमा की रात्रि में मथुरा की परिक्रमा करने का पौराणिक उल्लेख मिलता है। प्रत्येक एकादशी और पर्वों के अतिरिक्त कार्तिक शुक्ला नवमी (अक्षय नवमी) को मथुरा की सामूहिक परिक्रमा करने की प्राचीन परिपाटी है। बाराह-पुराण के अनुसार ब्रह्माजी की आज्ञा से सातों ऋषियों ने ध्रुव सहित अक्षय नवमी के दिन ही मथुरा की परिक्रमा की थी। इस दिन मथुरा-परिक्रमा करने वाला अपने समस्त कुटुम्बियों सहित विष्णुलोक को प्राप्त होता है।
एवं प्रदक्षिणां कृत्वा नवम्यां शुक्ल कौमुदे।
सर्व कुलं समादाय विष्णुलोेके महीयते।।
मथुरा-परिक्रमा के प्रभाव से ब्रह्महत्या, सुरापान, गो-हत्या आदि पापों से छूटकर मनुष्य पवित्र होता है।
ब्रह्मघ्नश्च सुरापश्च गोघ्नो भग्नव्रतस्तथा।
प मथुरां तु परिक्रम्य पूतो भवति मानव:।।
( बाराह-पुराण : १५८/३६)
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