शनि कुल मिलाकर निखारता भी है।
शनि की व्रत उपासना व्यक्ति को पापकर्मो की ओर जाने से बचाती है। वैसे इसके साथ काष्ट, कठिनाईयो, रोग का जिक्र किया जाता है। मगर स्थिति का दूसरा पहलू यह भी है। कि शनि सत्कर्मों का पुरस्कार भी देता है। साढे साती के विवेचन से इसको समझा जा सकता है। एक राशि से गुजरने में यह ढाई वर्ष का समय लेता है। लेकिन अगली पिछली राशियो को भी प्रभावित करने के कारण यह साढे सात वर्ष तक एक राशि में रहता है। इसलिये शनि की इस अवधि को शनि की साढे साती कहते है।
इस अवधि में माना जाता है। कि व्यक्ति को विपरीत परिणामो का सामना करना पढता है, लेकिन यह सही नही है। शनि योग कारक है। तो व्यक्ति को परेशान नही करता है। अधिकतर लोगो को साढे साती के तीन दोर से चरणों से गुजरना होता है। चोथे चरण का सामना बहुत कम लोगो को करना पडता है।
कुछ बिन्दुओ पर ध्यान देना चाहिये। जैसे शनि कुंडली में शुभ है या अशुभ, दशा कोन सी चल रही है। जन्म कुंडली में नक्षत्रों पर शनि का क्या प्रभाव है। ऐसी कुछ स्थितियो के आकलन के आधार पर ही शनि के आचे बुरे प्रभाव को जाना जा सकता है। विपरीत परिणामो का सामना करना होता है। परन्तु पूरी तरहा स्वीकार करना सही नही है। शनि के साढे साती में व्यक्ति को अनेको सफलताओ और असफलताओ का सामना करना पडता है। इस स्थिति में होने वाले परिणाम अच्छे हो या बुरे शनि के दशा-अंतदर्शा व्यक्ति को निखरती है।
जय शनि महाराज।
बोलिये वृन्दावन बिहारी लाल की जय।
जय जय श्री राधे।
श्री राधा- कृष्ण की कृपा से आपका दिन मंगलमय हो।
श्री कृष्ण शरणम ममः