भगवान का भरोसा
एक राजा काफी दिनों से पुत्र प्राप्ति के लिये आशा लगाये बैठा था, परन्तु पुत्र नही हुआ। उनके सलाहकारों ने तांत्रिकों से सहयोग की बात कही। सुझाव मिला कि किसी एक बच्चे की बलि दे दी जाये तो पुत्र की प्राप्ति हो जायेगी। राजा ने यह बात अपने राज्य में फैलाई कि जो अपना बच्चा देगा उसे बहुत सारा धन दिया जायेगा। उस राज्य में एक परिवार में कई बच्चें थे, गरीबी भी थी, एक ऐसा बच्चा भी था जो भगवान पर बड़ी आस्था रखता था तथा भगवान के भक्तों के सत्संग में ज्यादा समय बिताता था।
परिवार ने सोचा कि इस बच्चें को राजा को दे दिया जाये क्योंकि ये कुछ काम भी नही करता है, और यह हमारे किसी काम का भी नही। इससे राजा प्रसन्न होकर हमे बहुत सारा धन देगा। उस परिवार ने ऐसा ही किया और बच्चा राजा को दे दिया गया। राजा के तात्रिकों द्वारा बच्चे की बलि की तैयारी हो गई, राजा को भी बुलाया गया। तब बच्चे से पुछा गया कि तुम्हारी आखिरी इच्छा क्या है ? क्योंकि बच्चें आज तुम्हारा जीवन का अन्तिम समय है।
बच्चे ने कुछ देर सोचा और कहा कि ठीक है मेरे लिये कुछ रेत मंगा दिया जाये, और रेत आ गया। तब उस बच्चे ने रेत से चार ढ़ेर बनाये, एक-एक करके उसमें से तीन रेत के ढ़ेर तोड़ दिये और चौथे के सामने हाथ जोड़कर बैठ गया और तात्रिकों से कहा कि अब जो करना है करे। ये सब देखकर तॉत्रिक डर गये बोले कि तुमने ये क्या किया है पहले बताओं। राजा के पूछने पर बच्चे ने कहा कि पहली ढ़ेरी मेरे माता पिता की है, मेरी रक्षा करना उनका कर्तव्य था पर उन्होने सिर्फ पैसे के लिये मुझे बेच दिया।
इसलिये मैने पहली ढ़ेरी तोड़ी, दूसरी ढ़ेरी मेरे सगे-सम्बन्धियों का थी, उन्होंने भी मेरे माता-पिता को नही समझाया। तीसरा ढ़ेरी आपका है राजा, क्योंकि राज्य के सभी इंसानों की रक्षा करना राजा का ही कर्म होता है पर राजा ही मेरी बलि देना चाह रहे है तो ये तीसरी ढ़ेरी भी मैने तोड़ दी। अब सिर्फ भगवान पर मुझे भरोसा है इसलिये मैने ये एक ढ़ेरी छोड़ दी है।
राजा ने सोचा कि पता नही बच्चे की बलि से बाद भी पुत्र प्राप्त हो या न हो क्यों ना इसी बच्चे को ही अपना पुत्र बना ले, इतना समझदार और भगवान का सच्चा भक्त है। इससे अच्छा बच्चा और कहा मिलेगा। राजा ने उस बच्चे को अपना बेटा बना लिया और राजकुमार घोषित कर दिया।
कथा का भाव यही है कि जो भगवान पर यकीन रखते है, उनका कोई भी बाल बाँका नही कर सकता है। किसी भी मुश्किल में जो भगवान का ही आसरा लेते है उनका कभी भी किसी प्रकार का कोई अहित नही होता है।