योगमाया का आश्रय लेकर भगवान रास की भूमिका बनाते है
रास लीला के आरंभ में शुकदेव जी कहते है
भगवानपि ता रात्री: शरदोत्फुल्लामल्लिका
वीक्ष्य रन्तुं मश्रच्क्रे योगमायामुपाश्रित:
अर्थात – शरद ऋतु थी उसके कारण बेला चमेली आदि सुगन्धित पुष्प खिलकर महँ-महँक रहे थे। भगवान ने चीर हरण के समय गोपियों को जिन रात्रियो का संकेत किया था। वे सब की सब पुंजीभूत होकर एक ही रात्रि के रूप में उल्लसित हो रही थी। भगवान ने उन्हें देखा, देखकर दिव्य बनाया, गोपियां तो चाहती ही थी। अब भगवान ने भी अपनी अचिन्त्य महाशक्ति योगमाया के सहारे उन्हें निमित्त बनाकर रसमयी रास क्रीडा करने का संकल्प किया। अमना होने पर भी उन्होंने अपने प्रेमियों की इच्छा पूर्ण करने के लिए मन स्वीकार किया।
वीक्ष्यरन्तुं – वीक्ष्य रन्तुं का अर्थ है रमण करने वाला। जो अपने में ही रमण करते है। श्री कृष्ण ने वृंदावन देखा, क्योकि वृंदावन में ही रास की इच्छा होती है अन्यत्र नहीं। वृंदावन के १२ वनों में अलग अलग रास नित्य चलता रहता है, वृंदावन के अतिरिक्त कही नहीं होता। एक बार जब द्वारिका में रानियों ने रास के बारे में सुना तो उनकी भी इच्छा रास करने की हुई तब श्री कृष्ण ने व्रज गोपियों को बुलाया भगवान के कहने से गोपियाँ आई तो पर उनकी केवल उपस्थिति ही हुई, रास नहीं हुआ।
मश्रच्क्रे – मन रास लीला का हिस्सा है भगवान ने गोपियों के घर घर जाकर माखन नहीं चुराया है, मन चुराया है। माखन में से “ख” को निकाल दो तो मन बन जायेगा, पर बात ये है कि मन ही क्यों चुराया ? क्योकि ठाकुर जी के पास सबकुछ है मन ही नहीं है इसलिए रास लीला के आरंभ में वंशी बजाकर गोपियो के मन के चुराकर इकठ्ठा करके जब वह मन का चक्र बन गया तब उसे अपने अन्दर रखा। और ठाकुर जी मन की ही चोरी करते है. मन बस इनको दे दो, क्योकि यदि मन इनको दिया तो ये मोर पंख बनाकर शीश पर धारण कर लेगे। और यदि संसार को दिया तो संसार तो इसे मसल कर फेक देगा इसलिए तन संसार को दे देना धन संसार को दे देना सब कुछ संसार को दे देना चलेगा परन्तु मन तो केवल ठाकुर जी को ही देना।
योगमायामुपाश्रित: – माया तीन प्रकार की होती है
एक “विमुख-जन मोहिनी माया” दूसरी “वैष्णव-जन मोहिनी”, तीसरी “स्वजन मोहिनी माया”
विमुख-जन मोहिनी माया
दुर्योधन, कंस, हिरण्यकश्यप, आदि पर विमुख-जन मोहिनी माया थी.इस माया के फेर से व्यकित संसार की चीजो में ही फसे रहते है. परमात्मा के समक्ष आने पर भी प्रभु को पहचाना नहीं।
वैष्णव-जन मोहिनी
कभी-कभी भगवान अपने भक्तो पर भी माया फेकते है भक्ति में भोग बाधक है इसलिए परमात्मा भक्तो को भोग देते है यह वैष्णव-जन मोहिनी माया है. जैसे मृतिका भक्षण के समय यशोदा माता ने जब लाला के मुख में चराचर ब्रह्माण्ड देखा तो वे सोचने लगी ये तो ईश्वर है, भगवान ने सोचा यदि मईया मुझे ईश्वर मान बैठी तो लीला कैसे होगी? और तब भगवान की इस वैष्णव जन मोहिनी माया ने अपना काम किया और माता डर गई और सोचने लगी
ये इतना बखेडा मेरे लाला के मुख में कहाँ ते आय गयों? कोई भूत प्रेत तो नाय घुस गयों? ममता में फस गई. इसी तरह गोपियों में सात्विक अहंकार आ गया था। श्रीदामा पर भी कालिया दमन के समय भगवान ने इसी माया का प्रयोग किया और वह अड गया कि मेरी गेंद अभी लाकर मुझे दो।
स्वजन मोहिनी माया
इस को देखकर परमात्मा स्वयं मोहित हो जाते है यह अति सुंदर है यह कौन है?
कोटिन्ह रूप धारे मन मोहन तोउ ना पावे पार
यह राधारानी है राधा को देखकर प्रभु मोहित हो जाते है. भगवान गीता में कहते है – हे अर्जुन ! मेरी माया को पार करना कठिन है. इस सारे जगत का सञ्चालन माया करती है। इसलिए भगवान ने रास में आरंभ में योगमाया का आश्रय लिया है। किस गोपी को रास में कहाँ खड़ा रखना है। जितनी गोपियाँ है, उतने श्रीकृष्ण के रूप कर दिए, कहाँ श्रुतिरूपा गोपियों को खड़ा करना है। कहाँ साधन-सिद्धा गोपियों को खड़ा करना है, कहाँ नित्य-सिद्धा गोपियों को खड़ा करना है। किस गोपी को कैसे कृष्ण पसंद है,ऐसे कृष्ण को उस गोपी के पास खड़ा करना योगमाया का काम है।
श्री राधा- कृष्ण की कृपा से आपका दिन मंगलमय हो।
श्री कृष्ण शरणम ममः
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