विकारों पर नियंत्रण हेतु
अपने में जो कमजोरी है, जो भी दोष हैं उस कमजोरी को, उन दोषों को निम्न मंत्र द्वारा स्वाहा कर दो। दोषों को याद करके मंत्र के द्वारा मन-ही-मन उनकी आहुति दे डालो, उन्हें स्वाहा कर दो।
मंत्र: ॐ अहं तं जुहोमि स्वाहा। ‘तं’ की जगह पर विकार या दोष का नाम लें।
जैसे: ॐ अहं वृथावाणीं जुहोमि स्वाहा।
ॐ अहं कामविकार’ जुहोमि स्वाहा।
ॐ अहं चिन्तादोषं जुहोमि स्वाहा।
जो विकार तुम्हें आकर्षित करता है उसका नाम लेकर मन में ऐसी भावना करो कि ‘मैं अमुक विकार को भगवत्-कृपा में स्वाहा कर रहा हूँ। इस प्रकार अपने दोषों को नष्ट करने के लिए मानसिक यज्ञ अथवा वस्तुजन्य (यज्ञ-सामग्री से)यज्ञ करो। इससे थोड़े ही समय में अंत:करण पवित्र होने लगेगा, चरित्र निर्मल होगा, बुद्धि फूल जैसी हलकी व निर्मल हो जायेगी, निर्णय ऊँचे होंगे। थोड़े-से इस श्रम से ही बहुत लाभ होगा।आपका मन निर्दोषता में प्रवेश पायेगा और ध्यान-भजन में बरकत आयेगा।
जय श्री कृष्ण
बोलिये वृन्दावन बिहारी लाल की जय।
जय जय श्री राधे।
श्री राधा- कृष्ण की कृपा से आपका दिन मंगलमय हो।
श्री कृष्ण शरणम ममः