लीला तेरी तू ही जाने
भक्त भगवान श्री कृष्ण के ह्रदय में उसी तरह रहते है जैसे कंजूस के ह्रदय मै धन, भक्ति भगवान से भी बड़ी है क्योंकि यह भगवान को आकर्षित करती है। भगवान अपने किये गये बड़े कार्य को भी छोटा समझते है लकिन भक्त की छोटी सी सेवा को भी बड़ी समझते है। गोकुल में एक बार फल बेचने वाली आई, श्री कृष्ण अपनी नन्ही हथेलियों में अनाज लेकर तेजी से फल बेचने वाली के पास पहुचे लेकिन उनकी हथेलियों में अनाज के केवल कुछ दाने ही बचे। फिर भी फल बेचने वाली ने उनके दोनों हाथो में फल भर दिए। उधर उसकी फल टोकरी तुरंत रत्नों तथा सोने से भर गयी। भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन के लिए सारथि का कार्य किया, उन्होंने एक हाथ में चाबुक तथा दुसरे में घोड़ो की लगाम पकड़ कर अर्जुन की सेवा की तथा पांडवो के दूत के रूप में धृतराष्ट्र के दरबार में पांडवो के लिए 5 गाँव मांगने गये।
वहशी दु:शासन ने कुरु सभा में महारानी द्रोपदी को निर्वस्त्र करने का अथक प्रयास किया किन्तु श्रीकृष्ण ने द्रोपदी के तन को ढकते हुए उसकी साड़ी को असिमित मात्रा में इतना बढ़ा दिया की हजारो हाथियों का बल रखने वाला दु:शासन भी थक कर चूर हो गया और सभासदों की वासनाभरी आँखे द्रोपदी का स्पर्श नहीं कर सकी। श्री राम चन्द्र जी के रूप में, अपनी भक्त शबरी के झूठे फल खाये।
इसी प्रकार, वृन्दावन में जब भगवान श्री कृष्ण, गाय व बछड़े चराते समय, जब अपने गोपसखाओं के साथ खेलते थे तो वे हारने पर उन्हें अपनी पीठ पर सवारी कराते थे। उनका झूठा खाना खा लेते थे। जब सुदामा द्वारिका पहुचे तो भगवान ने दौड़ कर उनका स्वागत किया, उन्हें गले लगाया, उनके चरण पखारे तथा उस जल को अपने सिर पर छिड़का फिर उन्हें अपने बिस्तर पर सुलाया, तथा उनकी भलीभांति सेवा की, सुदामा द्वारा लाये गए थोड़े से सूखे चावल खा कर, बिना मांगे ही उनको इन्द्र के तुल्य सम्पति दी। बकासुर की बहन पूतना अपने स्तनों में घातक विष का लेप करके और स्तनपान करा कर कृष्ण को मारना चाहती थी फिर भी भगवान श्री कृष्ण ने उसे अपनी माता के योग्य गति प्रदान की।
अजामिल ने मृत्यु के समय यमदूतो को देख कर भय तथा घबरा कर अपने पुत्र नारायण को पुकारा लेकिन भगवान ने उसको अपना नाम समझा और तुरंत ही बिष्णु दूतो को उसका उद्धार करने के लिए भेज दिया। इसी प्रकार वाल्मीकि जी ने “मरा मरा” का जाप किया, लेकिन उनको भगवान के नाम “राम राम” के जाप का फल मिला। भगवान कृष्ण अपने भक्तो के प्रति इतने दयालु है कि वे अपने दिये गये वचन को तोड़ सकते है लेकिन भक्तो के दिये गये वचन को झूठा नहीं होने देते। कुरुक्षेत्र के युद्ध के शुरू होने से पहले ही वे शास्त्र नहीं उठाने की घोषणा कर चुके थे। लेकिन एक दिन भीष्म पितामह ने दुर्योधन को वचन दिया की वो आज कृष्ण को हथियार उठाने पर मजबूर कर देगे और इतना भीषण युद्ध किया कि भगवान कृष्ण पांडवो की रक्षा में रथ का पहिया उठा कर भीष्म की तरफ दोड़े तथा अपना वचन तोड़ दिया।
ह्रिन्याकश्यप के पूछने पर प्रह्लाद ने कहा की हाँ इस खम्बे में भगवान है तो भगवान तुरंत खम्बे से नरसिंह के रूप में प्रकट हो गये । इसीलिए कृष्ण खुद कहने के बजाय, अर्जुन से कहते है : हे कुंतीपुत्र ! निडर होकर घोषणा करदो की मेरे भक्त का कभी विनाश नहीं होता है। श्री कृष्ण कहते है : यदि कोई मुझे अपना पुत्र, मित्र या प्रेमी मान कर अपने आप को बड़ा एवं मुझको अपने समान या अपने से निम्न मान कर मेरी शुद्ध भक्ति करता है तो मैं उसके आधीन हो जाता हूँ।
श्री कृष्ण वृन्दावन की गोपियों के इतने अनुग्रहित थे कि वे अपने आप को उनके प्रेम का बदला देने में असमर्थ अनुभव करते थे। भगवान,दुर्वाषा ऋषि से कहते है“ मै पूरी तरह से अपने भक्तो के नियंत्रण में हूँ, मै बिलकुल भी स्वतंत्र नहीं हूँ। चूँकि मेरे भक्त भौतिक इच्छाओ से मुक्त होते है, मै उनके हृदय में निवास करता हूँ। भक्तो की बात तो दूर रही, जो मेरे भक्तो के भक्त है वे भी मुझे अत्यंत प्रिय है। भक्त होना भगवान कृष्ण की समता से बढ़ कर है, क्योंकि भक्तगण भगवान श्री कृष्ण को अपने से भी अधिक प्रिय है।
श्री कृष्ण कहते है: भक्तगण मेरे हृदय है और मैं भक्तों का हृदय हूँ। मेरे भक्त मेरे अतिरिक्त अन्य किसी को नहीं जानते। श्री कृष्ण अपने भक्तो को अपने से भी बढकर मानते है और कहते है। हे उद्धव तुम्हारे समान मुझे न ब्रह्मा न शंकर न संकर्षण न लक्ष्मी न स्वयं मैं ही प्रिय हूँ। भगवान श्री कृष्ण इतने दयालु हैं कि वो जीव की प्रत्येक योनी में हृदय में आत्मा के सखा के रूप में हमेशा साथ रहते है चाहे हम मनुष्य योनी में है या मल के कीड़े की योनी में, परमात्मा जीव के सभी कर्मो के साक्षी बने रहते हैं तथा जीव को उसकी इच्छा अनुसार भोग भोगने देते है।
हमारा कोई भी कार्य केवल समय का अपव्यय है जब तक वह भगवान श्री कृष्ण के प्रति हमारी सेवा भावना जागृत नहीं करता। जो लोग भौतिक विश्व में भटक रहे है उनके लिए भगवान श्री कृष्ण की भक्ति से बढ़ कर मोक्ष का कोई अधिक कल्याणकारी साधन नहीं है।
बोलिये वृन्दावन बिहारी लाल की जय।
जय जय श्री राधे।
श्री राधा- कृष्ण की कृपा से आपका दिन मंगलमय हो।
श्री कृष्ण शरणम ममः