तीनों देव वैद्य
एक ही तत्त्व उत्पत्ति, स्थिति और संहार के लिए ब्रह्मा, विष्णु और शिव – इन तीन रूपों में आया है । इस दृष्टि से ब्रह्मा को जब आयुर्वेद का आविर्भावक माना जाता है, तो रुद्र और विष्णु को भी आयुर्वेद का आविर्भावक मानना ही पड़ता है । सृष्टि के आदि में एक ऐसी घटना घटी, जिससे इस सिद्धांत का पूरा समर्थन होता है । ब्रह्मा जी ने अपने मानसपुत्र अत्रि को सृष्टि बढ़ाने के लिए आज्ञा दी । श्रेष्ठ महर्षि अत्रि अच्छी संतति हो, इस उद्देश्य से अपनी पत्नी के साथ तप करने के लिए ऋक्ष नामक पर्वत पर गए । वहां सौ वर्षों तक केवल वायु पीकर एक ही पैर पर खड़े होकर भगवान की उपासना करने लगे । वे मन – ही – मन भगवान से प्रार्थना कर रहे थे कि ‘जो सम्पूर्ण जगत के ईश्वर – जगदीश्वर हैं, मैं उनकी शरण में हूं, वे अपने समान ही मुझे पुत्र प्रदान करें ।’
तपस्या जब सीमापर पहुंच गयी, तब ब्रह्मा, विष्णु औक महेश – ये तीनों देव अत्रि के आश्रम पर पधारे । अत्रि ने पृथ्वी पर लेटकर उन्हें प्रणाम किया, फिर अर्घ्य – पुष्पादि से उनकी पूजा की । इस पूजा से वे तीनों देव बहुत प्रसन्न हुए, उनकी आंखों से कृपा की वर्षा होने लगी । वे मंद – मंद मुस्करा रहे थे, उनके तेज से महर्षि अत्रि की आंखें मुंद गयीं और हृदय में हर्ष का सागर लहरा गया । उन्होंने तीनों देवताओं की स्तुति की । अंत में पूछा – मैं जिन जगदीश्वर को बुला रहा था, आप तीनों में से वे कौन हैं ? क्योंकि मैंने एक ही जगदीश्वर चिंतन किया था, फिर आप तीनों ने यहां पधारने की कृपा की ? इस रहस्य को मैं जानना चाहता हूं ।’
इस प्रश्न को सुनकर तीनों देव हंस पड़े और बोले – तुम सत्यसंकल्प हो, अत: तुम्हारे संकल्प के विपरीत कैसे हो सकता है ? तुम जिन जगदीश्वर का ध्यान कर रहे थे, उन्हीं जगदीश्वर की हम तीन विभूतियां हैं । हम तीनों ही जगदीश्वर हैं । इस घटना से स्पष्ट हो जाता है कि ब्रह्मा, विष्णु और महेश में कोई अंतर नहीं है । इस तरह ये तीनों देवता चिकित्सा शास्त्र के प्रवर्तक माने जाते हैं । फिर भी वेद और पुराण ने भगवान शंकर को वैद्यों का वैद्य कहा है ।
बोलिये वृन्दावन बिहारी लाल की जय।
जय जय श्री राधे।
श्री राधा- कृष्ण की कृपा से आपका दिन मंगलमय हो।
श्री कृष्ण शरणम ममः