Shrimad Bhagavad Gita Chapter-05 (Part-05) in Hindi.mp3

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Geeta Updesh Shri Krishna
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भागवत गीता भाग ५ सारांश / निष्कर्ष :- यज्ञभोक्ता महापुरुषस्थ महेश्वर

इस अध्याय के आरम्भ में अर्जुन ने प्रश्न किया कि कभी तो आप निष्कर्म कर्मयोग की प्रशंसा करते है और कभी आप सन्यास मार्ग से कर्म करने की प्रशंसा करते है, अत: दोनों में एक को, जो आपने सुनिश्चित किया हो, परमकल्याणकारी हो, उसे कहिये। श्रीकृष्ण ने बताया – अर्जुन परमकल्याण तो दोनों में है। दोनों में वही निर्धारित यज्ञ की क्रिया ही की जाती है, फिर भी निष्काम कर्मयोग विशेष है। बिना इसे किये सन्यास ( (शुभाशुभ कर्मो का अंत ) नहीं होता।

सन्यास मार्ग नहीं, मंजिल का नाम है। योगयुक्त ही सन्याशी योगयुक्त के लक्षण बताये की वही प्रभु है। वह न कुछ करता है, न कुछ करता है, बल्कि स्वभाव में प्रकृति के दबाव के अनुरूप लोग व्यस्त है। जो साक्षात् मुझे जान लेता है वही ज्ञाता है, वही पंडित है। यज्ञ के परिणाम में लोग मुझे जानते है। श्वास-प्रश्वास का जप और यज्ञ – तप जिसमें विलय होते है, मैं ही हूँ अर्थात् श्रीकृष्ण जैसा, महापुरुष – जैसा स्वरूप उस प्राप्ति वाले को भी मिलता है।

वह भी ईश्वरों का ईश्वर, आत्मा का भी आत्मस्वरूपमय हो जाता है, उस परमात्मा के साथ एकीभाव पा लेता है। ( एक होने में जन्म चाहे जितने लगे। ) इस अध्याय मे स्पष्ट किया कि यज्ञ-तपो का भोक्ता, महापुरुषो के भी रहने वाली शक्ति महेश्वर है, अत:

इस प्रकार श्रीमद्भगवद्गीतारूपी उपनिषद् एवं ब्रह्मविद्या तथा योगशास्त्र विषयक श्रीकृष्ण और अर्जुन के संवाद में “यज्ञभोक्ता महापुरुषस्थ महेश्वर” नामक पंचम अध्याय पूर्ण होता है।

Swami Shri Adgadanand Ji Maharaj
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3 COMMENTS

  1. The bhagvat Gita teaches us that how to live life and getting joyful of whole life? we would like to insist of Bhagvat Gita followers its the better way for developing yourself & going to heaven.
    Big thanks of Bhagvat Gita followers.

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