Jab Bhagwan Bane Bhakt Ke Sakshi Katha Shri Sakshigopal Ji

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Jab Bhagwan Bane Bhakt Ke Sakshi Katha Shri Sakshigopal Ji
Jab Bhagwan Bane Bhakt Ke Sakshi Katha Shri Sakshigopal Ji

जब भगवान बने भक्त के साक्षी कथा श्री साक्षीगोपाल जी

ईश्वर है या नहीं इस विषय पर आज भी तर्क-वितर्क होते रहते हैं। जो मानते हैं कि ईश्वर है उनके लिए उनका निराकार रूप भी उतना ही महत्व रखता है, जितना कि ईश्वर का साकार रूप। इसलिए ईश्वर को हर हाल में मानने वालों को आस्तिक और उन्हें न मानने वालों को नास्तिक कहते हैं। ऐसे कुछ आस्तिक भक्तों का मत है कि जब कभी हम विपदा में होते हैं ईश्वर हमारी सहायता जरूर करने आते हैं। पुराणों में भक्त और ईश्वर के अटूट प्रेम से संबंधित बहुत सी कहानियाँ आज भी लोकप्रिय है। ऐसी ही एक कहानी जिसके द्वारा आपको भक्त और भगवान का रिश्ता कितना अटूट है पता चलेगा।

हमारे देश में साक्षी गोपाल नामक एक मन्दिर है। एक बार दो ब्राह्मण वृंदावन की यात्रा पर निकले जिनमें से एक वृद्ध था और दूसरा जवान था। यात्रा काफी लम्बी और कठिन थी जिस कारण दोनों यात्रियों को यात्रा करने में कई कष्टों का सामना करना पड़ा उस समय रेलगाड़ियों की भी सुविधा उपलब्ध नहीं थी। वृद्ध व्यक्ति ब्राह्मण युवक का अत्यन्त कृतज्ञ था क्योंकि उसने यात्रा के दौरान वृद्ध व्यक्ति की सहायता की थी। वृंदावन पहुँचकर उस वृद्ध व्यक्ति ने कहा” हे युवक! तुमने मेरी अत्यधिक सेवा की है। मैं तुम्हारा अत्यन्त कृतज्ञ हूँ। मैं चाहता हूँ कि तुम्हारी इस सेवा के बदले में मैं तुम्हे कुछ पुरस्कार दूँ।” उस ब्राह्मण युवक ने उससे कुछ भी लेने से इन्कार कर दिया पर वृद्ध व्यक्ति हठ करने लगा। फिर उस वृद्ध व्यक्ति ने अपनी जवान पुत्री का विवाह उस ब्राह्मण युवक से करने का वचन दिया।

ब्राह्मण युवक ने वृद्ध व्यक्ति को समझाया कि ऐसा नहीं हो सकता क्योंकि आप बहुत अमीर हैं और मैं तो बहुत ही गरीब ब्राह्मण हूँ। यह वार्तालाप मन्दिर में भगवान गोपाल कृष्ण के श्रीविग्रह समक्ष हो रहा था लेकिन वृद्ध व्यक्ति अपनी हठ पर अड़ा रहा और फिर कुछ दिन तक वृंदावन रहने के बाद दोनों घर लौट आये। वृद्ध व्यक्ति ने सारी बातें घर पर आकर बताई कि उसने अपनी बेटी का विवाह एक ब्राह्मण से तय कर दिया है पर पत्नी को यह सब मंजूर नहीं था। उस वृद्ध पुरुष की पत्नी ने कहा, “यदि आप मेरी पुत्री का विवाह उस युवक से करेंगे तो मैं आत्महत्या कर लूँगी।” कुछ समय व्यतीत होने के बाद ब्राह्मण युवक को यह चिंता थी कि वृद्ध अपने वचन को पूरा करेगा या नहीं।

फिर ब्राह्मण युवक से रहा न गया और उसने वृद्ध पुरुष को उसका वचन याद करवाया। वह वृद्ध पुरुष मौन रहा और उसे डर था कि अगर वह अपनी बेटी का विवाह इससे करवाता है तो उसकी पत्नी अपनी जान दे देगी और वृद्ध पुरुष ने कोई उत्तर न दिया। तब ब्राह्मण युवक उसे उसका दिया हुआ वचन याद करवाने लगा और तभी वृद्ध पुरुष के बेटे ने उस ब्राह्मण युवक को ये कहकर घर से निकाल दिया कि तुम झूठ बोल रहे हो और तुम मेरे पिता को लूटने के लिए आए हो।

ब्राह्मण युवक ने उसके पिता द्वारा दिया गया वचन याद करवाया। ब्राह्मण युवक ने कहा कि यह सारे वचन तुम्हारे पिता जी ने श्रीविग्रह के सामने दिए थे तब वृद्ध व्यक्ति का ज्येष्ठ पुत्र जो भगवान को नहीं मानता था युवक को कहने लगा अगर तुम कहते हो भगवान इस बात के साक्षी है तो यही सही। यदि भगवान प्रकट होकर यह साक्षी दें कि मेरे पिता ने वचन दिया है तो तुम मेरी बहन के साथ विवाह कर सकते हो। तब युवक ने कहा, “हाँ, मैं भगवान श्रीकृष्ण से कहूँगा कि वे साक्षी के रूप में आयें। उसे भगवान श्रीकृष्ण पर पूरा विश्वास था कि भगवान श्रीकृष्ण उसके लिए वृंदावन से जरूर आयेंगे। फिर अचानक वृंदावन के मन्दिर की मूर्ति से आवाज सुनाई दी कि मैं तुम्हारे साथ कैसे चल सकता हूँ मैं तो मात्र एक मूर्ति हूँ, तब उस युवक ने कहा, “कि अगर मूर्ति बात कर सकती है तो साथ भी चल सकती है।”

तब भगवान श्रीकृष्ण ने युवक के समक्ष एक शर्त रख दी कि “तुम मुझे किसी भी दिशा में ले जाना मगर तुम पीछे पलटकर नहीं देखोगे तुम सिर्फ मेरे नूपुरों की ध्वनि से यह जान सकोगे कि मैं तुम्हारे पीछे आ रहा हूँ।” युवक ने उनकी बात मान ली और वह वृंदावन से चल पड़े और जिस नगर में जाना था वहाँ पहुँचने के बाद युवक को नूपुरों की ध्वनि आना बन्द हो गयी और युवक ने धैर्य न धारण कर सकने के कारण पीछे मुड़ कर देख लिया और मूर्ति वहीं पर स्थिर खड़ी थी अब मूर्ति आगे नहीं चल सकती थी क्योंकि युवक ने पीछे मुड़ कर देख लिया था।

वह युवक दौड़कर नगर पहुँचा और सब लोगों को इक्ट्ठा करके कहने लगा कि देखो भगवान श्रीकृष्ण साक्षी रूप में आये हैं। लोग स्तंभित थे कि इतनी बड़ी मूर्ति इतनी दूरी से चल कर आई है। उन्होंने श्रीविग्रह के सम्मान में उस स्थल पर एक मन्दिर बनवा दिया और आज भी लोग इस मन्दिर में साक्षी गोपाल की पूजा करते हैं।

श्री राधे श्री राधे श्री राधे

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