Shri Radhavallabh Lal Ji Temple Vrindavan

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Shri Radhavallabh Lal Ji Temple Vrindavan
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श्री राधावल्लभ लाल मंदिर वृंदावन

श्री राधावल्लभ लाल जी का मंदिर वृंदावन के अति प्राचीन मंदिरों में से एक है।

स्थापना – हरिवंश महाप्रभु 31 वर्षो तक देववन में रहे । अपनी आयु के 32 वें वर्ष में उन्होंने दैवीय प्रेरणा से वृंदावन के लिए प्रस्थान किया । मार्ग में उन्हें चिरथावलग्राम में रात्रि विश्राम करना पडा। वहां उन्होंने स्वप्न में प्राप्त राधारानी जी के आदेशानुसार एक ब्राह्मण की दो पुत्रियों के साथ विधिवत विवाह किया। बाद में उन्होंने अपनी दोनों पत्नियों और कन्यादान में प्राप्त “श्री राधा वल्लभ लाल” के विग्रह को लेकर वृंदावन प्रस्थान किया। हिताचार्य जब संवत् 1591 में वृंदावन आए, उस समय वृंदावन निर्जन वन था। वह सर्वप्रथम यहां के कोयलिया घाट पर रहे। बाद में उनके शिष्य बने दस्यु सम्राट नरवाहन ने राधावल्लभलाल का मंदिर बनवाया, जहां पर हित जी ने राधावल्लभके विग्रह को संवत् 1591 की कार्तिक शुक्ल त्रयोदशी को विधिवत् प्रतिष्ठित किया।

Shri Radhavallabh Lal Ji Temple Vrindavan
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कार्तिक सुदी तेरस श्री “हित वृन्दावन धाम का प्राकट्य दिवस” है। सर्व प्रथम इसी दिन श्री हित हरिवंश महाप्रभु श्री राधा वल्लभ लाल को लेकर पधारे और मदन टेर [ ऊँची ठौर ] पर श्री राधा वल्लभ लाल को विराजमान कर लाड-लड़ाया। उन्होंने पंचकोसी वृन्दावन में रासमण्डल, सेवाकुंज, वंशीवट, धीर समीर, मानसरोवर, हिंडोल स्थल, श्रृंगार वट और वन विहार नामक लीला स्थलों को प्रकट किया। मन्दिर का निर्माण संवत 1585 में अकबर बादशाह के खजांची सुन्दरदास भटनागर ने करवाया था।

मुगल बादशाह अकबर ने वृंदावन के सात प्राचीन मंदिरों को उनके महत्व के अनुरूप 180 बीघा जमीन आवंटित की थी जिसमें से 120 बीघा अकेले राधा वल्लभ मंदिर को मिली थी। मन्दिर लाल पत्थर का है और मन्दिर के ऊपर शिखर भी था, जिसे औरंगजेब ने तुड़वा दिया था।

Shri Radhavallabh Lal Ji Temple Vrindavan
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विग्रह – श्री राधा वल्लभ लाल जी का विग्रह है और राधावल्लभ के साथ में श्रीजी नहीं हैं केवल वामअंग में मुकुट की सेवा होती है। हरिवंश गोस्वामी श्री राधाजी के परम भक्त थे, और वंशी के अवतार थे। उनका मानना था कि राधा की उपासना और प्रसन्नता से ही कृष्ण भक्ति का आनंद प्राप्त होता है। अतः उन्हें राधाजी के दर्शन हुए एवं एकादशी के दिन राधाजी ने उन्हें पान दिया था, अतः उनके सम्प्रदाए में एकादशी को पान वर्जित नहीं है।

हितहरिवंश जी की इस प्रेममई उपासना को सखी भाव की उपासना माना गया है। और इसी भाव को श्री राधा वल्लभ लाल जी की प्रेम और लाड भरी सेवाओं में भी देखा जा सकता है। जिस प्रेम भाव तथा कोमलता से इनकी सेवा पूजा होती है वह देखते ही बनती है। श्री राधावल्लभ लाल जी आज भी अपनी बांकी अदाओं से अपने भक्तों के मन को चुरा रहे हैं। ठाकुर जी की जो सेवाएं मन्दिर में होती हैं उन्हें “नित्य सेवा” कहा जाता है, जिनमें “अष्ट सेवा” होती हैं। “अष्ट आयाम” का अर्थ एक दिन के आठ प्रहर से है। एक दिन में आठ प्रहर होते हैं।

Shri Radhavallabh Lal Ji Temple Vrindavan
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1 प्रहर = 3 घंटे इस हिसाब से 8 प्रहर = 24 घंटे अर्थात एक दिन ये आठ सेवाएं इस प्रकार से हैं :-

  • मंगला आरती
  • हरिवंश मंगला आरती
  • धूप श्रृंगार आरती
  • श्रृंगार आरती
  • राजभोग आरती
  • धूप संध्या आरती
  • संध्या आरती
  • शयन आरती

यहाँ पर सात आरती एवं पाँच भोग वाली सेवा पद्धति का प्रचलन है। यहाँ के भोग, सेवा-पूजा श्री हरिवंश गोस्वामी जी के वंशजों द्वारा सुचारू रूप से की जाती है। वृंदावन के मंदिरों में से एक मात्र श्री राधा वल्लभ मंदिर ही ऐसा है जिसमें नित्य रात्रि को अति सुंदर मधुर समाज गान की परंपरा शुरू से ही चल रही है। इसके अलावा इस मन्दिर में व्याहुला उत्सव एवं खिचड़ी महोत्सव विशेष है।

Mangla Aarti Shri Radha Vallabh Lal Ji Temple Images

Mangla Aarti Shri Radha Vallabh Lal Ji Video

Shri Radhavallabh Lal Mandir Vrindavan Address and Location with Google Map

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