श्री गोकर्ण महादेव जी
श्री मथुरा जी के चार महादेवो में से एक श्री गोकर्ण महादेव भी है। इनका लेख भागवतम में भी मिलता है। श्री गोकर्ण जी के पिता का नाम आत्मदेव और माता का नाम धुंदली था। उनकी कोई संतान नहीं थी। एक ऋषि ने श्री गोकर्ण जी के माता पिता को पुत्र प्रप्ति के लिए एक फल दिया और कहा इस फल को खा कर आप को एक परम ज्ञानी पुत्र की प्रप्ति होगी। श्री गोकर्ण जी की माता धुंदली को ऋषि की बातों पर विश्वास नही हुआ और धुंदली ने उस फल को अपनी गाय को खीला दिया। गाय की द्वारा फल खाने के पश्चात, गाय के कान से श्री गोकर्ण महादेव जी का जन्म होता है। गाय के कान से जन्म होने के कारण इन महादेव जी का नाम गो + कर्ण, गोकर्ण हुआ।
बचपन से ही गोकर्ण महादेव जी धार्मिक विचारों वाले थे। साधु-संतों की संगत करना, भगवान की पूजा करने में गोकर्ण जी को बड़ा आनंद मिलता था। गोकर्ण जी बचपन से ही परम ज्ञानी थे।
गोकर्ण जी की माता अपना वंस आगे बढाने के लिए अपनी बहन का पुत्र गोद ले लेती है। उसका नाम धुंधकारी था। धुंधकारी का स्वभाव बचपन से ही राक्षस पर्वती का था। राक्षस प्रवत्तिओं की बजह से धुंधकारी की अकाल मृत्यु हो जाती है और धुंधकारी को प्रेत योनी मिलती है। जिसके कारण धुंधकारी की आत्मा भटकती है। एक रात धुंधकारी, श्री गोकर्ण जी के सपने में आकर उनसे प्रार्थना करता है कि गोकर्ण भईया मुझे इस योनी से मुक्ति दिलाओ। अपने भाई की मुक्ति के लिए श्री गोकर्ण जी सात दिनों तक भागवत गीता का पाठ करते है। तब जाकर धुंधकारी को प्रेत योनी से मुक्ति मिलती है।
इस घटना के बाद श्री गोकर्ण जी यमुना किनारे आकर भगवान शिव की तपस्या करते है। श्री गोकर्ण की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव, गोकर्ण जी को वरदान देते है। कि आप कलयुग में श्री गोकर्ण महादेव जी के नाम से पूजे जाओगे।
श्री गोकर्ण महादेव जी का उल्टा हाथ लिंग के ऊपर है और सीधा हाथ मन के ऊपर है। मनुष्य में दो ही चीजें चलाये मान होती है। काम और मन, इन दोनों को श्री गोकर्ण महादेव जी वश में करके बैठे हुए है।
श्री गोकर्ण महादेव जी मंदिर की ऐसी मान्यता है। कि जिस किसी के संतान नही होती है। वह व्यक्ति 16 सोमवार तक श्री गोकर्ण महादेव जी की पूजा और व्रत करे, तो उसको निश्चय ही संतान प्रप्ति होती है। क्योंकि श्री गोकर्ण महादेव जी भी, फल की प्राप्ति से हुए थे।
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