Shri Dauji Maharaj Temple Murti Prakatya

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Shri Dauji Maharaj Darshan Dauji Gaon Mathura
Shri Dauji Maharaj Darshan Dauji Gaon Mathura

दाउजी जी महाराज मूर्ति का प्राकट्य

एक दिन श्री कल्याण-देवजी को ऐसी अनुभूति हुई कि उनका मथुरा तीर्थाटन का आदेश दे रहा है। कुछ समय सोच-विचार में ही बीत गया। परन्तु श्री कल्याण-देवजी के मन से मथुरा तीर्थाटन की बात जी ही नही रही थी। अत: कल्याण देवजी ने मथुरा तीर्थाटन का निश्चय कर घर से प्रस्थान कर दिया श्री गिर्राज परिक्रमा कर के मानसी गंगा में स्नान किया और फिर पहुँचे मथुरा नगरी, यहाँ श्री कल्याण देव जी ने श्री यमुना जी में स्नान किया और दर्शनकर आगे बढ़े और पहुँचे विद्रुमवन जहाँ आज का वर्तमान बल्देव नगर है। यहाँ रात्रि विश्राम किया। सघन वट-वृक्षों की छाया तथा यमुना जी का किनारा ये दोनों स्थितियाँ उनको भा गई। फलत: कुछ दिन यहीं तप करने का निश्चय किया।

Dauji Maharaj or Maa Ravti Maiya Ji Darshan Dauji Mathura
Dauji Maharaj or Maa Ravti Maiya Ji Darshan Dauji Mathura

एक दिन अपने नित्य कर्म से निवृत हुये ही थे कि दिव्य हल मूसलधारी भगवान श्री बलराम उनके सम्मुख प्रकट हुये तथा बोले कि मैं तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हूँ, वर माँगो। कल्याण देवजी ने करबद्ध प्रणाम कर निवेदन किया कि प्रभु आपके नित्य दर्शन के अतिरिक्त मुझे कुछ भी नहीं चाहिये। अत: आप नित्य मेरे घर विराजें। बलदेवजी ने तथास्तु कहकर स्वीकृति दी और अन्तर्धान हो गये। साथ ही यह भी आदेश किया कि ‘जिस प्रयोजन हेतु मथुरा यात्रा कर रहे हो, वे सभी फल तुम्हें यहीं मिलेंगे, और श्री दाउजी महाराज ने श्री कल्याण देवजी को बताया की, इसी वट-वृक्ष के नीचे मेरी एवं श्री रेवती जी की प्रतिमाएं भूमिस्थ हैं, उनका प्राकट्य करो। अब तो कल्याण-देवजी की व्यग्रता बढ गई और जुट गये भूमि के खोदने में, जिस स्थान का आदेश श्री बलराम, दाऊ जी ने किया था।

इधर एक और विचित्र आख्यान गोकुल उपस्थित हुआ कि जिस दिन श्री कल्याण-देवजी को साक्षात्कार हुआ उसी पूर्व रात्रि को गोकुल में गोस्वामी गोकुलनाथजी को स्वप्न हुआ कि जो श्यामा गौ (गाय) के बारे में आप चिन्तित हैं वह नित्य दूध मेरी प्रतिमा के ऊपर स्त्रवित कर देती है। जिस ग्वाले को आप दोषी मान रहे हो वो निर्दोष है। मेरी प्रतिमाएं विद्रुमवन में वट-वृक्ष के नीचे भूमिस्थ हैं उनको प्राकट्य कराओ।

Shri Dauji Maharaj Temple Baldeo Mathura
Shri Dauji Maharaj Temple Baldeo Mathura

यह श्यामा गौ सद्य: प्रसूता होने के बावजूद दूध नहीं देती थी। क्योकि ग्वाला जब सभी गयो को लेकर वन में चराने ले जाता था। तभी ये श्यामा गाय, एक अमुख स्थान पर जा खड़ी हो जाती थी। और श्यामा गाय के थनों से स्वतः दूध उस स्थान पर गिरने लगता था। जहा पर श्री दाउजी और रेवती माया की मुर्तिया भूमिस्थ थी। और गाय के थनों में दूध नही होता था। इसी कारण महाराज श्री को दूध के बारे में ग्वाला के ऊपर सन्देह होता था। प्रभु की आज्ञा से गोस्वामीजी ने उपर्युक्त स्थल पर जाने का निर्णय किया। वहाँ जाकर देखा कि श्री कल्याण देवजी मूर्तियुगल को भूमि से खोदकर निकाल चुके हैं। वहाँ पहुँच नमस्कार अभिवादन के उपरान्त दोनों ने अपने-अपने वृतान्त सुनाये।

और निश्चय किया कि इस घोर जंगल से मूर्तिद्वय को हटाकर क्यों न श्री गोकुल में प्रतिष्ठित किया जाय। कहते हैं कि चौबीस बैल और अनेक व्यक्तियों के द्वारा हटाये जाने पर भी, मूर्तिया टस से मस न हुई और इतना श्रम व्यर्थ गया। हार मानकर सभी यही निश्चय किया गया कि दोनों मूर्तियों को अपने प्राकट्य के स्थान पर ही प्रतिष्ठित कर दिया जाय। अत: जहाँ श्रीकल्याण-देव तपस्या करते थे उसी पर्णकुटी में सर्वप्रथम स्थापना हुई जिसके द्वारा कल्याण देवजी को नित्य घर में निवास करने का दिया गया, वरदान सफल हुआ।

Dauji Huranga Darshan Baldau Mathura
Dauji Huranga Darshan Baldau Mathura

यह दिन संयोगत: मार्गशीर्ष मास की पूर्णमासी थी। षोडसोपचार क्रम से वेदाचार के अनुरूप दोनों मूर्तियों की अर्चना की गई तथा सर्वप्रथम श्री ठाकुरजी को खीर का भोग रखा गया, अत: उस दिन से लेकर आज तक प्रतिदिन खीर भोग में अवश्य आती है। गोस्वामी गोकुलनाथजी ने एक नवीन मंदिर के निर्माण का भार वहन करने का संकल्प लिया तथा पूजा अर्चना का भार श्रीकल्याण-देवजी ने। उस दिन से अद्यावधि कल्याण वंशज ही श्री ठाकुरजी की पूजा अर्चना करते आ रहे हैं। यह दिन मार्ग शीर्ष पूर्णिमा सम्वत् 1638 विक्रम था। एक वर्ष के भीतर पुन: दोनों मूर्तियों को पर्णकुटी से हटाकर श्री गोस्वामी महाराज श्री के नव-निर्मित देवालय में, जो कि सम्पूर्ण सुविधाओं से युक्त था, मार्ग शीर्ष पूर्णिमा संवत 1639 को प्रतिष्ठित कर दिया गया। यह स्थान कहते हैं भगवान बलराम की जन्म-स्थली एवं नित्य क्रीड़ा स्थली है पौराणिक आख्यान के अनुसार यह स्थान नन्द बाबा के अधिकार क्षेत्र में था। यहाँ बाबा की गौ के निवास के लिये बड़े-बड़े खिरक निर्मित थे।

मुग़लकाल में  धर्माद्वेषी शंहशाह औरंगज़ेब को श्री दाउजी महाराज का सक्छात्कर

धीरे-धीरे समय बीत गया बलदेव जी की ख्याति एवं वैभव निरन्तर बढ़ता गया और समय आ गया धर्माद्वेषी शंहशाह औरंगज़ेब का। जिसका मात्र संकल्प समस्त हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्ति भंजन एवं देव स्थान को नष्ट-भ्रष्ट करना था। मथुरा के केशवदेव मन्दिर एवं महावन के प्राचीनतम देव स्थानों को नष्ट-भ्रष्ट करता आगे बढा तो उसने बलदेव जी की ख्याति सुनी व निश्चय किया कि क्यों न इस मूर्ति को तोड़ दिया जाय। फलत: मूर्ति भंजनी सेना को लेकर आगे बढ़ा। कहते हैं कि सेना निरन्तर चलती रही जहाँ भी पहुँचते बलदेव की दूरी पूछने पर दो कोस ही बताई जाती जिससे उसने समझा कि निश्चय ही बल्देव कोई चमत्कारी देव विग्रह है,

किन्तु अधमोन्मार्द्ध सेना लेकर बढ़ता ही चला गया जिसके परिणाम-स्वरूप कहते हैं कि भौरों और ततइयों (बेर्रा) का एक भारी झुण्ड उसकी सेना पर टूट पडा जिससे सैकडों सैनिक एवं घोडे उनके देश के आहत होकर काल कवलित हो गये। औरंगजेब के अन्तर ने स्वीकार किया देवालय का प्रभाव और शाही फ़रमान ज़ारी किया जिसके द्वारा मंदिर को 5 गाँव की माफी एवं एक विशाल नक्कारखाना निर्मित कराकर प्रभु को भेंट किया एवं नक्कारखाना की व्यवस्था हेतु धन प्रतिवर्ष राजकोष से देने के आदेश प्रसारित किया। वहीं नक्कारखाना आज भी मौजूद है और यवन शासक की पराजय का मूक साक्षी है।

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इसी फरमान-नामे का नवीनीकरण उसके पौत्र शाह आलम ने सन् 1196 फसली की ख़रीफ़ में दो गाँव और बढ़ाकर यानी 7 गाँव कर दिया। जिनमें खड़ेरा, छवरऊ, नूरपुर, अरतौनी, रीढ़ा आदि जिसको तत्कालीन क्षेत्रीय प्रशासक (वज़ीर) नज़फ खाँ बहादुर के हस्ताक्षर से शाही मुहर द्वारा प्रसारित किया गया तथा स्वयं शाह आलम ने एक पृथक से आदेश चैत सुदी 3 संवत 1840 को अपनी मुहर एवं हस्ताक्षर से जारी किया। शाह आलम के बाद इस क्षेत्र पर सिंधिया राजवंश का अधिकार हुआ। उन्होंने सम्पूर्ण जागीर को यथास्थान रखा एवं पृथक से भोगराग माखन मिश्री एवं मंदिर के रख-रखाव के लिये राजकोष से धन देने की स्वीकृति दिनाँक भाद्रपद-वदी चौथ संवत 1845 को गोस्वामी कल्याण देवजी के पौत्र गोस्वामी हंसराजजी, जगन्नाथजी को दी।

यह सारी जमींदारी आज भी मंदिर श्री दाऊ जी महाराज एवं उनके मालिक कल्याण वंशज, जो कि मंदिर के पण्डा पुरोहित कहलाते हैं, उनके अधिकार में है। मुग़ल काल में एक विशिष्ट मान्यता यह थी कि सम्पूर्ण महावन तहसील के समस्त गाँवों में से श्री दाऊजी महाराज के नाम से पृथक देव स्थान खाते की माल गुजारी शासन द्वारा वसूल कर मंदिर को भेंट की जाती थी, जो मुग़लकाल से आज तक शाही ग्रांट के नाम से जानी जाती हैं, सरकारी खजाने से आज तक भी मंदिर को प्रतिवर्ष भेंट की जाती है।

Shri Dauji Maharaj Temple Dauji Address and Location with Google Map

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