श्री बाँके बिहारी जी मंदिर वृंदावन
श्रीधाम वृंदावन । यह एक ऐसी पावन भूमि है। जिस भूमि पर आने मात्र से ही सभी पापो का नाश हो जाता है। श्री बाँके बिहारी जी मंदिर का निर्माण स्वामी श्री हरिदास जी के वंसजो के अतः प्रयास से 1629 में किया गया।
श्री हरिदास स्वामी जी वैष्णव थे। उनके जन कीर्तन से प्रसन्न हो निधिवन से श्री बाँके बिहारी प्रकट हुए थे। स्वामी श्री हरिदास जी का जन्म वृंदावन के पास राजापुर नामक गावं में हुआ था। उनके आराध्यदेव श्री बाँके बिहारी जी थे। इनके पिता का नाम गंगाधर एवं माता का नाम श्रीमती चित्रादेवी था। हरिदास जी स्वामी आशुधीर देवजी के शिष्य थे। इन्हें देख कर ही आशुधीर देवजी जान गये थे कि ये सखी ललिता जी के अवतार है। तथा राधाष्टमी के दिन भक्ति प्रदायनी श्री राधा जी के मंगल महोत्सव की दर्सन लीला हेतु यहाँ पर पधारी है। ये बचपन से ही संसार से ऊवे रहते थे।
किशोरवस्था में इन्होने आशुधीर जी से युगल मंत्र दीक्षा ली तथा यमुना समीप निकुंज में एकांत स्थान पर जाकर ध्यान मग्न रहने लगे। जब ये 25 वर्ष के हुए तब इन्होने अपने गुरूजी से विरक्ता वेष प्राप्त किया एवं संसार से दूर होकर निकुंज बिहारी जी के नित्य लीलाओ का चिंतन करने लगे। निकुंज वन में ही स्वामी हरिदास जी को बिहारी जी की मूर्ति निकालने का स्वप्नादेश हुआ था। तब उनकी आज्ञा अनुसार मनोहर श्यामवण छवि वाले श्री विग्रह को धारा की गोद से बाहर निकला गया। यही सुन्दर मूर्ति आगे चल कर श्री बाँके बिहारी जी के नाम से विख्यात हुई। श्री बाँके बिहारी जी की मूर्ति के प्राकट्य तिथि को हम बिहार-पंचमी के रूप में बड़े उल्लास के साथ मानते है।
श्री बाँके बिहारी निधिवन में ही बहुत समय तक स्वामी जी द्वारा सेवित होते रहे थे। फिर जब मंदिर का निर्माण कार्य संपन्न हो गया तब उनको वहा लाकर स्थापित कर दिया। श्री कृष्ण यतिजी, श्री बिहारी जी की सेवा किया करते थे। फिर यतिजी ने 1675 में हरगुलाल सेठ जी को श्री बिहारी जी की सेवा व्यवस्था सम्भालने हेतु नियुक्त किया। कालान्तर में स्वामी हरिदास जी के उपासना पद्धति में परिवर्तन लाकर एक नए सम्प्रदाय, निम्वार्क सम्प्रदाय से स्वतंत्र होकर सखी सम्प्रदाय बना।
इसी पद्धति अनुसार वृंदावन के सभी मंदिरों में सेवा एवं महोत्सव मनाये जाते है। श्री बाँके बिहारी मंदिर में केवल शरदपूर्णिमा के दिन ही श्री बिहारी जी वंशी धारण करते है। केवल श्रवण तीज के दिन ही ठाकुर जी झूले पर बैठते है। एवं जन्माष्टमी के दिन ही उनकी मंगला आरती होती है। जिसके दर्शन सौभाग्यशाली व्यक्ति को ही प्राप्त होते है। और चरण दर्शन केवल अक्षय तृतीया के दिन ही होता है। इन चरण कमलो का जो दर्शन करता है। उसका बेढ़ा ही पार लग जाता है। स्वामी हरिदास जी संगीत के प्रसिद्ध गायक तानसेन के गुरु थे।
एक दिन प्रातः काल स्वामी जी शोच करने गए एवं वापस आकर देखने लगे की उनके विस्तर पर कोई रजाई ओढ़कर सो रहा है। यह देखकर स्वामी जी बोले, अरे मेरे विस्तर पर कोन सो रहा है। वहा बिहारी जी स्वंय सो रहे थे। स्वामी जी शव्द सुनते ही बिहारी जी निकल भागे। किन्तु वे अपने चुडा एवं वंशी को विस्तर पर रखकर चले गये। स्वामी जी वृद्ध अवस्था में द्रष्टि जीर्ण होने के कारण उनको कुछ नजर नही आया। इसके पश्चात श्री बाँके बिहारी मंदिर के पुजारी ने जब मंदिर के कपाट खोले तो उन्हें श्री बाँके बिहारी जी पालने में चुडा एवं वंशी नजर नही आये। किन्तु मंदिर का दरवाजा बन्द था।
आश्चर्य चकित होकर पुजारी जी निधिवन के स्वामी जी के पास आये एवं स्वामी जी को सभी बाते बताई। स्वामी जी बोले की प्रातःकाल कोई मेरे पलंग पर सोया हुआ था। वह जाते वक्त कुछ छोड़ गया है। तब पुजारी जी ने प्रत्कछय देखा की पलंग पर श्री बिहारी जी के चुडा एवं बंसी विराजमान है। इससे प्रमाणित होता है कि श्री बिहारी जी रात को रास करने के लिए निधिवन जाते है। इसी कारण से प्रातः श्री बिहारी जी की मंगला आरती नही होती है। कारण रात में बिहारी जी रास करके यहाँ पर आते है। अतः प्रातः शयन में बाधा डालकर उनकी आरती करना अपराध है। स्वामी हरिदास जी के दर्शन करने के लिए अनेको सम्राट यहाँ आया करते थे। एक बार देल्ही सम्राट अकबर, स्वामी जी के दर्शन हेतु यहाँ आये थे।
श्री बाँके बिहारी जी मंदिर में झांकी का अर्थ
श्री बिहारी जी के सामने एक दरबाजे पर एक पर्दा लगा रहता है। और वो पर्दा एक-दो मिनट के अंतराल पर बन्द एवं खोला जाता है।
एक बार एक भक्त एक तक देखता रहा कि उसकी भक्ति के बसीभूत होकर श्री बिहारी जी भाग गए। पुजारी जी ने जब मंदिर के कपाट खोले तो उन्हें बिहारी जी नही दिखाई दिए। पता चला की वे अपने एक भक्त की गवाही देने अलीगढ़ चले गए है। तभी से ऐसा नियम बना दिया कि झलक दर्शन में ठाकुर जी का पर्दा खुलता एवं बन्द होता रहेगा।
Bihari gi ko me koti koti naman karta or agar bo jara si kripa me uper kar de to me jeevan bhar k liye unka sevak ban kar rahna chahunga banke Bihari ki jay ho
Her har
Banke Bihari Jai ho Tumhari.
Banwari Tum Bin Jeena Bekar Sanware
Hai Koi Patwari, Ye Jeewan Bihari ke Naam Karna hai
Jai Shri Krishna
“Hare ram hare rama rama rama hare hare hare Krishna hare Krishna krishna krishna hare hare”
Shri Krishna gobind hare murari he nath narayan vasudeva…
radhey radhey
Jai ShriRadheKrishna Surendra Gupta Ji
Really Helpful Information.
sri krishn govind hare murari hai nath narayan vasudev…acha likha hai parhne mai anand aya….
Bankey Bihari lal ki jai ho
Jai Shree Radhey
BAHUT JANKARI MILE SHREE BANKEY BIHARI LAL KE BARE MAINE PADNEY ME ANAND BHI AYA
श्री जी के चरणों का एक पल का दर्शन कई जन्मों के संचित अघ से तत्काल मुक्ति दिलाता है..जय श्री बांके बिहारी जी.